Written by: Dr.Virendra Singh & Pratibha Thakur
विषय सूची(Table of contents)
1.गर्भावस्था क्या है?(What is Pregnancy?)
2.गर्भावस्था होने के लक्षण(Symptoms of Pregnancy)
3.गर्भावस्था के मासिक लक्षण(Monthly pregnancy symptoms)
4.गर्भस्थ शिशु का दूसरे महीने में विकास(Development of the fetus in the second month)
5.पहले महीने के लक्षण(First month symptoms)
6.गर्भस्थ शिशु का प्रथम महीने में विकास(Development of the fetus in the first month)
7.दूसरे महीने के लक्षण(Second month symptoms)
8.तीसरे महीने के लक्षण(Symptoms of third month)
9.गर्भस्थ शिशु का तीसरे महीने में विकास(Development of the fetus in the third month)
10.चौथे महीने के लक्षण(Fourth month symptoms)
11.चौथे महीने में गर्भस्त शिशु का विकास(Development of the fetus in the fourth month)
12.पांचवे महीने के लक्षण(Fifth month symptoms)
13.गर्भस्थ शिशु का पाँचवें महीने में विकास(Development of the fetus in the fifth month)
14.छठे महीने के लक्षण(Sixth month symptoms)
15.छठे महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the sixth month)
16.सातवें महीने के लक्षण(Symptoms of Seventh month)
17.सातवे महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the seventh month)
18.आठवें महीने के लक्षण(Symptoms of the Eighth month)
19.आठवें महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the eighth month)
20.नौवें महीने के लक्षण(Symptoms of the Nine month )
21.गर्भस्थ शिशु का नौवें महीने में विकास(Development of the fetus in the ninth month)
22.गर्भावस्था में क्या करना चाहिए?(What should be done during pregnancy?)
23.गर्भावस्था में क्या नहीं करना चाहिए(What should not be done during pregnancy)
24.गर्भावस्था के प्रकार(Types of pregnancy)
25.अंतर्गर्भाशयी गर्भावस्था(Intrauterine pregnancy)
26.मोलर गर्भावस्था(Molar pregnancy)
27.एक्टॉपिक या ट्यूबल गर्भावस्था(Ectopic or tubal pregnancy)
28.इंट्रा-एब्डॉमिनल गर्भावस्था(Intra-abdominal pregnancy)
29.सिंगल गर्भावस्था(Single pregnancy)
30.एकाधिक या मल्टीप्ल गर्भावस्था(Multiple pregnancy)
31.हाई रिस्क गर्भावस्था(High risk pregnancy)
32.लूपस गर्भावस्था(Lupus pregnancy)
33.केमिकल गर्भावस्था(Chemical pregnancy)
34.ब्रीच गर्भावस्था(breech pregnancy)
35.प्रीनेटल योग(Prenatal Yoga)
36.आसन(Asana)
37.प्राणायाम(Pranayam)
38.मुद्रा(Mudra)
गर्भावस्था क्या है?(What is Pregnancy?)
गर्भावस्था एक महिला के शरीर में गर्भ के विकास की स्थिति है, जो गर्भधारण से लेकर बच्चे का जन्म होने तक का समय होता है। गर्भधारण की प्रक्रिया महिला के गर्भ में पुरूष का एक शुक्राणु और महिला का एक अंडा मिलकर गर्भाधान करके भ्रूण का निर्माण करते है जो गर्भावस्था की शुरुआत कहते है।धीरे धीरे यह भ्रूण शिशु का रूप ले लेता है,गर्भावस्था, या गर्भधारण, महिला के शरीर में एक नये जीवन के विकास का समय होता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर 40 हफ्तों या नौ मास तक चलती है, जिसमें गर्भाशय में एक भ्रूण बच्चा विकसित होता है। इसके दौरान, महिला के शरीर में होने वाले बदलाव, रोगानुकूल, और मानसिक परिवर्तन सहित कई प्रकार के परिवर्तन होते हैं। गर्भावस्था के दौरान उच्चतम स्वास्थ्य स्तर बनाए रखने के लिए उचित पोषण, नियमित चेकअप, और स्वस्थ जीवनशैली का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।
बहुत सारी महिलाये पहली बार गर्भवती होती है तो उनको बहुत सारी प्रेगनेंसी से संबंधित जानकारी की कमी होती है जिससे उनको अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।उन्हें ज्ञात नहीं होता कि किन चीजों को उन्हें ध्यान रखना है क्या करना , क्या नहीं करना है, क्या खाना है क्या नहीं खाना है, क्या क्या सावधानियाँ रखनी होती है प्रेगनेंसी के दौरान, ऐसी कौन सी चीजें है जो इस समय वर्जित है।अपने और गर्भस्थ शिशु की देख रेख कैसे करनी है कुछ महिलाओं को तो यह भी पता नहीं रहता कि वो गर्भवती हैं भी या नहीं ऐसी बहुत सारी समस्याएँ देखने को मिलती है इस लेख में इन सारी समस्या को विस्तार पूर्वक बताया गया है।इस लेख में हमने बताया है कि गर्भावस्था के दौरान कौन कौन सी सावधानियाँ रखनी चाहिए, गर्भावस्था के लक्षण क्या है, गर्भवती महिलाओं को क्या खाना चाहिए और किन चीजों से परहेज करना चाहिए, जीवन शैली कैसी होना चाहिए, उत्तम शिशु के जन्म के लिये क्या करना चाहिए, गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु को स्वस्थ कैसे रखा जाये, अपने मन को शांत और शरीर को निरोग कैसे रखें तथा तेजस्वी, ओजस्वी, प्रतिभावान और शौर्यवान, बुद्धिवान संतान की उत्पत्ति कैसे हो और इसमें हमने यह भी आगे बताया है कि गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु के उत्तम स्वास्थ्य के लिए कौन-कौन से योग अभ्यास अपनाए जायें जो दोनों को उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करे और माँ के सामान्य प्रसव में सहायक हो। कोई महिला गर्भवती हैं या नहीं, यह जानने का सबसे सही तरीका प्रेग्नेंसी टेस्ट ही है। लेकिन पीरियड्स ना होने से पहले कुछ सामान्य लक्षणों का दिखना गर्भावस्था के पहले संकेत हो सकते हैं
गर्भावस्था होने के लक्षण(Symptoms of Pregnancy)
गर्भावस्था का होना कुछ सामान्यतः लक्षण इस लेख में आगे बताये गये है जो इस प्रकार है:
पीरियड बंद होना(Missed Period)
गर्भधारण की सबसे बड़ी पहचान है पीरियड्स का बंद होना मासिक चक्र की अवधि के एक या दो सप्ताह तक यदि पीरियड्स नहीं आते तो समझना चाहिए कि गर्भधारण हो सकता है जो महिलाओं के पीरियड अनियमित रहते है उनको पीरियड्स मिस होने के बाद कुछ समय भ्रामक हो सकते है कि में गर्भवती हूँ या नहीं।इसका सही से पता मेडिकल चेकअप से पता चलता है क्योंकि कभी कभी अन्य कारण से भी पीरियड बंद हो जाते है।इसीलिए मासिक चक्र बंद होने के बाद एक बार प्रेगनेंसी चेकअप अवश्य कराये जिससे पूर्णता जानकारी प्राप्त हो सके कि आप गर्भवती है या नहीं।
भोजन के प्रति अरुचि होना(Aversion to Food)
गर्भावस्था के समय अधिकतम महिलाओं में खाने के प्रति अरुचि हो जाती है अक्सर खट्टे खाने की इच्छा तीव्र हो जाती है, सादा घर के खाने से अरुचि हो सकती है।
सांस लेने में भारीपन महसूस होना(Feeling Heavy in Breathing)
गर्भवती महिलाओं को सांस लेना में परेशानी होती है गर्भधारण के प्रारंभिक समय में जब वो सांस भारती है तब भारीपन महसूस होता है यह समस्या इसलिए आती है क्योंकि गर्भ में पल रहे भ्रूण को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन चाहिए होती है जो माँ के द्वारा प्राप्त होती है इस कारण माँ को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और सांस चढ़ने लगती है अर्थात सांस लेने में परेशानी जाती है उनको हमेशा येसा प्रतीत होता है जैसे वो घर की सीढ़ियाँ चढ़ रहीं हों यह अवस्था पूरे गर्भावस्था के दौरान बनी रह सकती है।प्रसव के पश्चात सामान्य अवस्था हो जाती है।
स्तनों में भारीपन और झुनझुनाहट महसूस होना(Feeling of Heaviness and tingling in the Breasts)
गर्भावस्था के प्रारंभिक दिनों से ही स्तनों में भारीपन महसूस होने लगता है ,स्तनों में झुनझुनाहट महसूस हो सकती है, दर्द भी महसूस हो सकता है।स्तनों के चारो तरफ स्वेलिंग भी देखने को मिल सकती है,और उनके आकार में परिवर्तन देखने को मिल सकता है निप्पलस के चारों तरफ जिसे एलोरा कहा जाता है उसमे कलापन हो सकता है साथ ही स्तनों की नस्सें फूल जाती है।
शरीर का तापमान बढ़ना(Increased Body temperature)
गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में शरीर का तापमान अचानक बढ़ और घटता रहता है, यह प्रक्रिया गर्भावस्था के दौरान लम्बे समय तक बनी रह सकती है क्योंकि गर्भस्थ महिला के शरीर में निरंतर परिवर्तन चलता रहता है जिससे शरीर का तापमान परिवर्तित होता रहता है।
उल्टी आना(Vomiting)
गर्भावस्था के प्रारंभिक दिनों में अधिकतर महिलाओं में उल्टी आने की समस्या देखी गई है इसमें कुछ महिलाओं को उल्टी होती है।यह समस्या प्रत्येक महिलाओं में अलग अलग देखने को मिलती है। कुछ महिलाओं में एक महीने तक, कुछ को तीन महीने और कुछ को गर्भावस्था के अंतिम चरण तक देखी गई है।
भूख न लगना(Loss of Appetite)
गर्भधारण की प्रारंभिक दिनों में बहुत सारी महिलाओं को भूख नहीं लगती है
चक्कर आना(Dizziness)
गर्भधारण के पश्चात अधिकतर महिलाओं में चक्कर की समस्या देखने को मिलती है जो पाँच से छः माह बाद ठीक हो जाती है।
नाक बंद(Nasal Congestion)
गर्भधारण के प्रारंभिक दिनों में अनेक महिलाओं में बार बार नाक बंद होना और ठीक होने की समस्या देखने को मालती है।
कब्ज(Constipation)
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में बहुत सारे हार्मोनल बदलाव होते है और डॉक्टर आयरन और कैल्शियम की दवाई देते है जिस कारण पेट में कब्ज की समस्या देखने को मिल सकती है।
स्वभाव बदलना(changing nature)
गर्भावस्था के दिनों में महिलाओं का स्वभाव पल पल में बदलता रहता है कभी तो वो बहुत खुश होंगी, कभी कभी अचानक चिड़चिड़ापन देखने को मिलता है प्रेगनेंसी के प्रारंभिक दिनों में मूड स्विंग आम बात मानी गई है।
पेट फूलना(Abdominal distension)
गर्भधारण के दौरान अनेक महिलाओं में पेट फूलने की समस्या देखने को मिलती है और कुछ समय पश्चात यह समस्या ठीक भी हो जाती है।
थकान महसूस होना(Feeling tired)
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में अक्सर थकान महसूस होती है।इस दौरान हार्मोन्स में परिवर्तन होने के कारण शरीर में थकान महसूस होने लगती है।अनेक महिलाओं को गर्भधारण के प्रारंभिक कुछ महीनों में बहुत अधिक थकान महसूस होती है क्योंकि समय के साथ धीरे धीरे भ्रूण के परिपक्व होने पर समस्याएँ बढ़ने लगती है।
मतली(Nausea)
बहुत सारी महिलाओं को प्रेगनेंसी के प्रारंभिक दौर में चार से पाँच महीने तक मतली आने की समस्या अक्सर देखी गई है इस दौरान दिन में प्रत्येक महिलाओं की स्थिति अलग अलग हो सकती है यह समस्या शरीर में होने वाले परिवर्तन के कारण होती है। यह समस्या पाँचवे महीने से धीरे धीरे कम होती जाती है।इस स्थिति में हमें सन्तुलित आहार की अति आवश्यकता होती है जिससे समस्या ओर अधिक न बढ़ें।
बार बार पेशाब की इच्छा होना(Frequent Urge to Urinate)
प्रेगनेंसी के प्रारंभिक दौर में बार बार पेशाब आती है या पेशाब करने की इच्छा महसूस होने लगती है क्योंकि जैसे जैसे गर्भाशय का आकार बढ़ता है मूत्राशय में दबाव पड़ता है इस कारण बार बार पेशाब जाना पड़ता है।
गर्भावस्था में सिर दर्द की समस्या(Headache Problem during Pregnancy)
प्रेगनेंसी के प्रारंभिक दिनों में शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते है जो सिर दर्द की समस्या का कारण बन सकते है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में बदलाव सिर दर्द का कारण बन सकता है।इस अवस्था में रक्त की मात्रा बढ़ने से रक्त संचरण में परिवर्तन के कारण सिर में दर्द होने की संभावना रहती है।
गर्भावस्था में कमर दर्द(Back Pain during Pregnancy)
गर्भावस्था में अक्सर कमर दर्द या पीठ दर्द की समस्या देखने को मिलती है क्योंकि जैसे जैसे प्रेगनेंसी का दौर आगे बढ़ता है गर्भस्थ माँ के शरीर का वजन बढ़ता है जिससे रीड की हड्डी में अधिक दबाव पड़ता है और कमर के निचले हिस्से में दर्द शुरू हो जाता है जैसे जैसे गर्भस्थ शिशु का विकास होगा और पेट का वजन बढ़ेगा ये समस्या ओर अधिक महसूस हो सकती है। इसके अतिरिक्त गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में रिलेक्सिन हार्मोन्स बनता है जो जोड़ों को ढीला करता है किन्तु कमर दर्द का कारण बन सकता है।प्रेगनेंसी के बाद यह समस्या पूर्णतः ठीक हो जाती है।
गर्भावस्था में ऐंठन(Pregnancy Cramps)
गर्भावस्था में दूसरे तिमाही से गर्भस्थ शिशु के विकास के कारण पेट और पैरों में ऐंठन महसूस होने लगती है क्योंकि गर्भस्थ शिशु का विकास जैसे जैसे होता उसका आकार बढ़ता जाता है जिससे पेट की मांसपेशियों में खिचाव होता है इसलिए पेट में ऐंठन महसूस होने लगती है और पैरों में ऐंठन शिशु के बड़ते हुए वजन और पेट के बढ़ते हुए फैट के कारण महसूस होती है।
गर्भावस्था में ब्लड स्पॉटिंग(Blood spotting during pregnancy)
इस अवस्था में पहली तिमाही में बीस से तीस प्रतिशत महिलाओं में ब्लड स्पॉटिंग या हल्का ब्लीडिंग होना सामान्य बात मानी गई है या महिलाओं के मासिक चक्र के दिन नजदीक है और गर्भधारण कर लिया है तो उस स्थिति में हल्का ब्लड स्पॉटिंग दिखायी दे सकता है यह सामान्य ब्लड स्पॉट से काफी हल्का होता है इसे इम्प्लांटेशन कहा जाता है।
गर्भावस्था के मासिक लक्षण(Monthly pregnancy symptoms)
गर्भावस्था के समय नौ महीनों में कुछ अलग अलग लक्षण बताये है जो मुख्यतः गर्भवती महिलाओं में देखने को मिलते है और इस दौरान गर्भस्थ शिशु के विकास के बारे में भी बताया जाएगा कि माँ के साथ साथ गर्भस्थ शिशु की विकास की प्रक्रिया नौ महीने में कैसे होती है इन सभी का उल्लेख किया गया है-
पहले महीने के लक्षण(First month symptoms)
इस महीने में महिलाओं के स्तनों में सूजन व दर्द, अचानक थकान, अस्वस्थता,उल्टी, पेट के निचले हिस्से में हल्का दर्द या ऐंठन महसूस हो सकती है।सूंघने की क्षमता में वृद्धि देखने को मिल सकती है क्योंकि इन दिनों महिलाओं के हार्मोन्स में बदलाव होते है जो नाक को अधिक सेंसिटिव बना देता है इस कारण सूंघने की क्षमता में वृद्धि हो जाती है इस कारण बहुत सी महिलाओं को बहुत सारी चीजें अच्छी भी लगती है ओर बहुत सारी चीजों से घृणा भी हो जाती, फुंसी और मुँहासे हो जाना, याददाश्त कमजोर हो सकती है, मॉर्निंग सिकनेस होना, बहुत सारी महिलाओं के सीने में जलन होता है क्योंकि शरीर में हार्मोनल बदलाव से एसिड रिलैक्स होता है और सीने में जलन महसूस होती है ,इसके साथ ही मासिक धर्म में ब्लड स्पॉटिंग या बंद हो जाना सामान्य लक्षण गर्भावस्था के प्रथम महीने में देखने को मिल सकते है।
गर्भस्थ शिशु का प्रथम महीने में विकास(Development of the fetus in the first month)
प्रथम महीने में गर्भ में शिशु का चेहरा आकर लेने लगता है।इस समय आँखें, मुँह, नीचे का जबड़ा, गला बनना शुरू हो जाता है साथ ही हृदय और रक्त कोशिकाएँ बनना शुरू हो जाती है साथ ही कोशिकाओं में रक्त प्रवाह भी शुरू हो जाता है।फेफड़े ,पेट और लिवर विकसित होने लगते है।भ्रूण को पोषण देने वाली नाल बनने लगती है।पहले महीने के अन्त तक भ्रूण का आकर चावल के दाने से भी छोटा रहता है
दूसरे महीने के लक्षण(Second month symptoms)
गर्भावस्था के दूसरे महीने में बड़ते हुए भ्रूण को सहारा देने के लिए महिला के शरीर में अनेक प्रकार के बदलाव देखने को मिलते है।इस अवस्था में डाइट में बदलाव आ जाता है,स्तन फैलता है,बार बार पेशाब आता है,पाचन तंत्र प्रभावित हो सकता है,अनेक प्रकार के हार्मोनल बदलाव होते है,रक्त प्रवाह में वृद्धि होती है,स्तन बड़े और कोमल हो जाते है निप्पल में काला पन देखने लगता है और छूने पर झनझनाहट होने लगती है।मूडस्विंग होने लगता है, मॉर्निंग सिकनेस होने लगती है
गर्भस्थ शिशु का दूसरे महीने में विकास(Development of the fetus in the second month)
शिशु आकर में आधे इंच से थोड़ा अधिक हो जाता है,दोनों हाथ पैर और उँगलियाँ बनना शुरू हो जाती है,नाक ,कान,पलकें बनने शुरू हो जाते है,शिशु का सिर धीरे धीरे दिखाई देने लगता है,स्पाइनल कॉर्ड और दिमांग बनने वाली न्यूरल ट्यूब बन जाती है।
तीसरे महीने के लक्षण(Symptoms of third month)
इस महीने में गर्भवती महिला का वजन और पेट बढ़ने लगता है।इस अवस्था में अनेक प्रकार के शारीरिक बदलाव देखने को मिलते है। इस अवधि में स्तनों में दूध का निर्माण शुरू हो सकता है जिससे ये भारी हो सकते है निप्पल के आस पास का रंग और गहरा हो सकता है, स्तनों में नसें दिखायी दे सकती है, पेट और स्तनों में स्ट्रेच मार्क्स दिखायी दे सकते है, हार्मोनल परिवर्तन से सुखी त्वचा हो सकती है जिससे खुजली की समस्या उत्पन्न हो सकती है, हार्मोनल बदलाव के चलते पेट में काली लकीर उभर कर आ सकती है इसे मेडिकल भाषा में लिनिया नाइग्रा कहते है और तीसरे महीने तक उल्टी और जी मिचलाने जैसी समस्याएँ अपने चरम तक देखने को मिल सकती है किन्तु महीने के अन्त तक फिर यह समस्या धीरे धीरे कम होने लगती है।बार बार पेशाब का अनुभव होता है, ,हार्मोनल स्तर में बदलाव के कारण थकान हो सकती है, इस महीने के दौरान प्रोजेस्टरोन हार्मोन के स्तर में वृद्धि होती है जिससे पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है जिससे कब्ज की समस्या हो सकती है, स्वभाव में बदलाव देखने को मिल सकता है, हार्मोनल परिवर्तन के कारण मसूड़ों में सूजन और खून आने की समस्या देखने को मिल सकता है, जैसे जैसे गर्भस्थ शिशु का विकास होता जाता है गर्भवती माँ के पाचन क्रिया को धीमा करता जाता है बढ़ता गर्भाशय पेट पर दबाव डालना प्रारंभ कर देता है जिससे माताओं के सीने में जलन महसूस होने लगती है, इस अवस्था में महिलाओं का बार बार खाने की इच्छा जागृत हो सकती है, एस्ट्रोजन के बड़े स्तर के कारण योनि स्राव में थोड़ी वृद्धि देखने को मिल सकती है, पैरो में ऐंठन महसूस हो सकती है, हार्मोन स्तर के बदलाव के कारण पीठ दर्द हो सकती है, बड़ते गर्भाशय में खिचाव होने से पेट के निचले हिस्से में दर्द महसूस कर सकती है गर्भवती महिलाएँ।
गर्भस्थ शिशु का तीसरे महीने में विकास(Development of the fetus in the third month)
तीसरे महीने के अन्त तक बच्चा लगभग दो इंच से ढाई इंच लम्बा हो सकता है उसका वजन लगभग 25 से 28 ग्राम हो सकता है।इस अवस्था में शिशु का दिल काम करना शिशु कर देता है, उँगलियो के निसान बनना शुरू हो जाते है, किडनी , जननांग और आँखो का विकास इस महीने होता है।बारह सप्ताह के अन्त में पहली तिमाही समाप्त हो जाती है।
चौथे महीने के लक्षण(Fourth month symptoms)
प्रेगनेंसी के चौथे महीने में गर्भवती महिलाओं को अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इस अवस्था में शरीर के अन्दर और बाहर दोनों में बदलाव होता है क्योंकि इस समय गर्भस्थ शिशु का विकास चल रहा होता है पेट में पल रहे बच्चे का आकर और वजन बढ़ना शुरू हो जाता है, शिशु के पोषण के लिये अधिक रक्त की आवश्यकता पड़ती है इसकी पूर्ति के लिए गर्भस्थ माँ के शरीर में रक्त अधिक मात्रा में बनता जिससे ब्लड शुगर और रक्त चाप पर प्रभाव देखने को मिलता है इसके साथ साथ महिलाओं के हार्मोन में भी भारी मात्रा में असंतुलन देखने को मिलता हैगर्भस्थ महिला की चौथे महीने में पेट में हलचल महसूस होने लगती है और चेहरे में चमक दिखने लगती है।हार्मोनल बदलाव के कारण सीने में जलन होना, भूख और प्यास का बढ़ना,कमजोरी और थकान होना, पाचन क्रिया खराब होना, गर्भस्थ शिशु का आकार और वजन बढ़ने के कारण गर्भाशय और मूत्र मार्ग में अधिक दबाव पड़ता है जिससे बार बार पेशाब जाना या पेशाब लीकेग होने की समस्या देखने को मिल सकती है। शरीर में अधिक ब्लड की वजह से नसों में अधिक दबाव पड़ना और वेरिकोज़ वेन्स की समस्या देखने को मिल सकती है।टिस्यूज़ में सूजन होने के कारण हाथ में झनझनाहट की समस्या हो सकती है,शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने के कारण त्वचा में झाई होने की समस्या हो सकती है,इस अवस्था में पाचन क्रिया कमजोर होने के कारण कब्ज की समस्या हो जाती है और कभी कभी तो इससे बवासीर की समस्या भी पैदा हो सकती है , इस अवस्था में नाक में सूजन आ जाती है जिससे नाक बंद हो जाती है कभी कभी तो नाक से खून बहने की समस्या भी हो सकती है,गर्भाशय का आकार बड़ने के कारण निचले वाले हिस्से पेट , पीठ , कमर के निचले हिस्से और जाँघ में दर्द हो सकता है, हार्मोनल बदलाव के कारण स्तनों का आकार बढ़ता है और निप्पल का रंग परिवर्तित होता है, पाचन क्रिया धीमी होने के कारण गैस की समस्या हो सकती है।
चौथे महीने में गर्भस्त शिशु का विकास(Development of the fetus in the fourth month)
गर्भावस्था के चौथे महीने में गर्भस्थ शिशु का तेजी से विकास होने लगता है इस अवस्था में शिशु का लगभग सारे भाग विकसित होने लगते है इस दौरान शिशु गर्भ में घूमना शुरू कर देता है इसका आकार लगभग पाँच इंच लम्बा और 150 ग्राम का हो सकता है, गर्भस्थ महिलाओं का बेबी बम्प भी पहले की तुलना में काफी अधिक दिखने लगता है, शिशु की हलचल और छोटी छोटी किक भी महसूस की जा सकती है किन्तु यदि किक महसूस नहीं हो रही है तो अभी चिंता करने की कोई बात नहीं है , प्रेगनेंसी के सोलह सप्ताह के दौरान शिशु के रबर की तरह लचीला एक हड्डियों का ढाँचा तैयार हो जाता है शरीर पर त्वचा की एक परत तैयार हो जाती है जिसे लानुगो के नाम से जाना जाता है इस अवस्था में शिशु के नाखून भी बनने शुरू हो जाते है और त्वचा पर एक मोटी परत बन जाती है जिसे वर्निक्स केसिओसा कहा जाता है यह मोटी परत होती है जो शिशु को एमनियोटिक फ्लूइड से बचाकर रखती है जो शिशु के जन्म तक रहती है, वर्निक्स केसिओसा शिशु को जन्म के समय बर्थ कैनाल में ले जाने में सहयोग करता है, इस अवस्था तक शिशु के दोनों कान विकसित होना शुरू हो जाते है और वह आपकी आवाज को आसानी से सुन सकता है, शिशु का बोन मैरो सफेद ब्लड सेल्स का निर्माण करना शुरू कर देता है।
पांचवे महीने के लक्षण(Fifth month symptoms)
गर्भावस्था के पाँचमे महीने में गर्भस्थ शिशु का हलचल अधिक हो जाती है इस अवस्था में महिलाओं को कमजोरी और थकान महसूस हो सकती है, शरीर में दर्द का अनुभव हो सकता है, शरीर में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन्स के उत्पादन और वजन बढ़ने से सांस लेने में मुस्किल हो सकती है,हार्मोनल बदलाव के कारण याददाश्त की कमी हो सकती है, शिशु के विकास के लिए ब्लड अधिक मात्रा में बनता है इससे पैरों में सूजन की समस्या देखने को मिलती है,इस दौरान नाखून कमजोर हो सकते है, मसूड़ों से खून निकलने की समस्या देखने को मिल सकती है,शिशु के वजन बढ़ने के कारण कमर के निचले हिस्से में दर्द महसूस हो सकता है, गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास और गर्भस्थ माँ के हार्मोनल परिवर्तन के चलते योनि से सफेद स्राव हो सकता है, शरीर में ब्लड सर्कुलेशन तेजी से होने के कारण नाक से खून गिरने की समस्या देखने को मिल सकती है।इस अवस्था में महिलाओं के अनेक प्रकार के शारीरिक बदलाव भी देखने को मिलते है इस महीने बेबी बम्प अच्छी तरह से दिखना शुरू हो जाता है, इस समय गर्भाशय का आकार बढ़ जाता है, इस महीने में पहले की तुलना में भूख अधिक लगने लगती है, पेट का आकार बढ़ने के कारण लिगामेंट में खिचाव और तनाव महसूस हो सकता है जिसके निसान पेट में देखे जा सकते है तथा पेट में स्ट्रेच मार्क्स काफी स्पष्ट देखने को मिल सकते है।इस समय हार्मोनल बदलाव के कारण बाल काफी मोटे और बालों का झड़ना काफी हद तक बंद हो जाता है, इस दौरान महिलाओं को तनाव और चिंता हो सकती है, गैस और कब्ज की समस्या हो सकती है, टखनों और पैरों में सूजन आ सकती है, शरीर में गर्माहट महसूस हो सकती है।
गर्भस्थ शिशु का पाँचवें महीने में विकास(Development of the fetus in the fifth month)
इस महीने गर्भस्थ शिशु का विकास तेजी से देखने को मिलता है इस दौरान उसकी लम्बाई लगभग आठ से दस इंच और वजन 400 से 500 ग्राम तक हो सकता है, गर्भस्त शिशु का विकास गर्भस्थ माँ के आहार और स्वस्थ पर भी निर्भर करता है इसीलिए गर्भस्थ माँ अपने खान पान और स्वस्थ का विशेष ध्यान रखें स्वस्थ संतान की प्राप्ति के लिये,इस समय शिशु के फिंगर प्रिंट बनने लगते है,शिशु का दिमाग तेज और मजबूत होना शुरू हो जाता है, इस अवस्था में शिशु यदि लड़का है तो टेस्टिकल और यदि लड़की है तो यूटेरस बनना शुरू हो जाता है, शिशु के सीने में निप्पल, किडनी बनने शुरू हो जाते है, इस समय हड्डियों और मांसपेशियों का विकास होना प्रारम्भ हो जाता है, भौहें, पलकें, दृष्टि, नाक,रोएँ, कान और नाखून बन जाते है, ब्लड वेसल्स दिखने लगती है, इस समय पेट में लात मार सकता है और पेट में घूम सकता है, जम्हाई और अंगड़ाई ले सकता है, चेहरा साफ दिखने लगता है, माता को गर्भस्थ शिशु की हरकत करना महसूस होने लगती है,यकृत अच्छी तरह बन जाता है, आँतों में कुछ मल जमा होने लगता है, समस्त शरीर पर बारीक बाल विकसित हो जाते है।
छठे महीने के लक्षण(Sixth month symptoms)
इस महीने शरीर में कुछ बदलाव आते है जिससे गुर्दे में दर्द महसूस होने लगता है, अनियमित रूप से सास फूलने की समस्या भी हो सकती है, इस अवस्था में गर्भस्त शिशु के विकास के साथ साथ गर्भस्थ माँ को भी प्रसव के लिए शारीरिक विकास करना होता है , शिशु के विकास से गर्भ का आकार बढ़ने लगता है जिससे पेट आगे की तरफ निकल आता है तथा शरीर में मौजूद हार्मोन्स पेल्विस क्षेत्र और मांसपेशियों को ढीला करते है जिसके कारण पीठ दर्द की समस्या सामने आती है, शरीर में सूजन देखने को मिल सकती है, इस महीने गर्भाशय का आकार बढ़ने के कारण पेट के निचले हिस्से पर दबाव पड़ने लगता है जिससे खाना हजम नहीं होता है और अपच जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है, इस महीने खर्राटे की समस्या शुरू हो सकती है, पेट के निचले हिस्से में खिचाव होने लगता है इसीलिए स्ट्रेच मार्क्स देखने को मिल सकते है, सीने में जलन की समस्या बढ़ सकती है, इस महीने महिलाओं में तेजी से हार्मोनल उतार चढ़ाव होता है इसीलिए मूड स्विंग की समस्या अत्यधिक देखने को मिल सकती है, इस महीने शिशु काफी बड़ा हो जाता है इसलिए उसकी किक काफी स्पष्ट महसूस की जा सकती है।
छठे महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the sixth month)
गर्भावस्था के बीस से चौबीस सप्ताह के बीच गर्भस्थ शिशु में बहुत सारे परिवर्तन गर्भस्थ माँ महसूस कर सकती है इसका आकार लगभग दस से बारह इंच और वजन 700 से 1किलोग्राम तक हो सकता है,इस समय आपका शिशु गर्भ में हलचल करना शुरू कर देता है और बाहर की आवाज को सुन सकता है और उसके अनुसार प्रतिक्रिया भी दे सकता है, इस समय त्वचा लाल और झुर्रीदार होती है जिसमे मुलायम बालों की एक परत होती है, सिर के बाल शरीर के अन्य स्थानों की तुलना अधिक लम्बे होते है, आँखों के ऊपर की भौंहें और बरौनियाँ बनने लगती है, इस समय शिशु अपना अंगूठा चूस सकता है, दिमांग तेजी से विकसित होता है, वास्तविक बाल और नाखून उगने शुरू हो जातें है, इस दौरान शिशु हिचकी ले सकता है,इस बक्त तक शिशु के लगभग समस्त अंग तैयार हो चुके होते है, किन्तु अभी शिशु के पूर्णतः फफड़े विकसित नहीं हुए होते ,उसके सोने और जागने का पैटर्न बन जाता है जो गर्भस्थ माँ महसूस कर सकती है, शिशु के पेट में मिकोनियम नामक काला पदार्थ जमा होना शुरू हो जाता है जो पहला मल बनता है, इस दौरान शिशु अपने आप सांस नहीं ले पाता यही कारण है कि प्रीमेच्योर जन्म लेने पर शिशु को इंक्यूबेटर में रखा जाता है जिससे वो सांस ले सके और धीरे धीरे विकास हो सके
सातवें महीने के लक्षण(Symptoms of Seventh month)
गर्भावस्था के सातवें महीने में पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है जो लेबर पेन जैसा दर्द महसूस होता है इस समय शरीर आपके वास्तविक लेबर पेन के लिए तैयार करता है इसके अतिरिक्त शरीर के अन्य हिस्सों में हाथ , पैर और चेहरे पर सूजन देखने को मिल सकती है।इस समय ज्यादा थकान महसूस होती है, इस दौरान कई बार नींद नहीं आती, स्तनों के छूनें पर दर्द और संवेदनशीलता महसूस हो सकती है, पीठ में दर्द, मूड स्विंग होना, बार बार पेशाब आना, योनि से स्राव, खाना न पचना, बेबी बम्प का आकार बढ़ने से आपको आगे झुकने में समस्या हो सकती है, शरीर में रक्त की मात्रा अधिक होने से नसों में दबाव होता है जिससे नसें फूल जाती है, स्तनों का आकार बढ़ जाता है और निप्पल पहले से ज्यादा काले रंग के हो जाते है, इस अवस्था में गर्भस्थ माँ शिशु से भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है।
सातवे महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the seventh month)
गर्भावस्था के सातवे महीने में गर्भस्थ शिशु के शरीर का तेजी से विकास होता है जिसे आप ठीक से महसूस कर सकते है,इस समय शिशु का आकार लगभग 12 से 15 इंच तक और वजन डेढ़ किलोग्राम तक हो सकता है, इस अवस्था में शिशु तेजी से पेट में लात मार सकता है, अँगड़ाई ले सकता है, पलकें और भौंहें बन जाती है,सिर पर लगभग एक इंच तक के बाल हो सकते है, आँतों में मल एकत्रित हो जाता है, बाहर की आवाज सुनकर शिशु रिस्पोंस दे सकता है, इस समय शिशु का 68 से 70 प्रतिशत विकास हो चुका होता है, इस अवस्था में शिशु संगीत, ध्वनि या गंध के प्रति अधिक संवेदनशील होता है, इस महीने में पैदा हुए बालक को यदि यत्नपूर्वक पालन पोषण करें तो जीवित रह सकता है अन्यथा येसे शिशु की प्रायः मृत्यु हो जाती है।
आठवें महीने के लक्षण(Symptoms of the Eighth month)
इस दौरान गर्भस्थ महिला के शरीर में हलचल और अस्वस्थता बढ़ जाती है, इस दौरान गर्मी महसूस होने लगती है, हाथ , पैर और चेहरे में सूजन आ जाती है, चिड़चिड़ापन होने लगता है, जल्दी जल्दी पेशाब लगती है, बेबी बम्प का आकार बड़ा हो जाता है, सीने में जलन होने से रात में नींद न आने की समस्या हो सकती है, कभी कभी पेशाब लिकेग भी हो सकती है, वजन बढ़ने से पीठ के निचले हिस्से में दर्द बढ़ जाता है, स्तनों से दूध का रिसाव देखने को मिल सकता है, सांस फूलने लगती है, कब्ज के कारण बवासीर की समस्या उत्पन्न हो सकती है, शिशु और गर्भाशय का आकार बढ़ने के कारण सांस लेने में परेशानी महसूस हो सकती है।
आठवें महीने में गर्भस्थ शिशु का विकास(Development of the fetus in the eighth month)
गर्भस्थ शिशु का आठवें महीने में बहुत तेजी से विकास होता है, इस समय विकास के आखिरी स्टेज में पहुच जाता है और इस दौरान जन्म के लिये शिशु तैयार होता है और उसके अन्दर होने वाले सभी बदलाओं को माँ महसूस कर सकती है, इस समय इसका लगभग लम्बाई सोलह से सत्रह इंच और वजन लगभग दो किलोग्राम हो सकता है। शिशु के सिर में बाल उग जाते है, गर्भ में यदि लड़का है तो उसके जननांग ( लिंग) और यदि लड़की है तो योनि का विकास शुरू हो जाता है, पलकें और आँखें पूर्णतः विकसित हो जाती है, फेफड़े विकास के आखिरी स्टेज में होते है, शिशु अपनी आँखें खोल और बंद कर सकता है, इस समय न्यूरॉन तेज़ी से बढ़तें है इस कारण शिशु का दिमाग तेजी से बढ़ता है, इस समय शिशु का आकार और वजन अधिक होने के कारण गर्भाशय में जगह की कमी हो जाती है जिस कारण वह कम हिल डुल और घूम पाता है ,इस दौरान पैदा हुआ शिशु यदि सावधानीपूर्वक पाला जाये तो जीवित रह सकता है।
नौवें महीने के लक्षण(Symptoms of the Nine month )
नौवें महीने में गर्भस्थ माँ को नियमित लेबर पेन होता है, जिस कारण कमर और पेट में दर्द होता है, इस समय स्तनों का आकार बढ़ जाता है, पेल्विस क्षेत्र खुलने लगता है, योनि स्राव अधिक मात्रा में होने लगता है, स्तनों से कोलोस्ट्रम का रिसाव होने लगता है,उठने और बैठने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, इस समय ब्रेक्सटन हिक्स का संकुचन बार बार आता जाता रहता है, वजन बढ़ने के कारण थकान बहुत जल्दी हो जाती है और सांस लेने में समस्या हो सकती है, इस दौरान आप पहले से ज़्यादा असहज महसूस कर सकती है, लेटने और बैठने में बेचैनी महसूस कर सकती है, ऊर्जा की कमी का अनुभव हो सकता है, इस समय प्रसव पीड़ा या डिलिवरी पेन हो सकता है, पेट दर्द के साथ रक्तस्राव हो सकता है, ब्लड प्रेशर अचानक से बढ़ सकता है, इस समय महिला का वजन ग्यारह किलो तक बढ़ सकता है, इस समय तंत्रिका में दबाव पड़ता है इसीलिए पीठ में दर्द उठ सकता है, महिलाओं के चलने के तरीके में बदलाव मिल सकता है, लेबर पेन के साथ साथ गर्भस्थ महिला के नाल से पानी आना संकेत देता है कि शिशु के जन्म का समय हो गया है।
गर्भस्थ शिशु का नौवें महीने में विकास(Development of the fetus in the ninth month)
नौवें महीने में गर्भस्थ शिशु का पूर्णतः विकास हो जाता है , इस समय शिशु जन्म के लिये तैयार हो जाता है, इसकी लम्बाई लगभग 19 इंच और वजन लगभग ढाई किलो के आसपास हो सकता है, इस महीने में शिशु का जब तक जन्म नहीं होता तब तक वजन बढ़ता है, नौवें महीने में शिशु श्रोणी के निचले हिस्से में आ जाता है इस दौरान शिशु सिर को नीचे की ओर ले जाता है, शिशु के कोहनियों , घुटनों और कंधों के आस पास की चर्बी जमा होती है, त्वचा गुलाबी और मुलायम हो जाती है , इस समय शिशु जन्म के लिये पूर्णतः तैयार हो जाता है।
गर्भावस्था महिला का एक येसा सुखाद पड़ाव होता है जिसके लिये प्रत्येक शादी सुदा महिला आतुर रहती है और प्रत्येक महिला इस दौर से गुजरना चाहतीं है, यह अवस्था महिला की बहुत ही नाजुक मानी गई है इसमें बहुत ही ध्यान रखना होता है, प्रत्येक क्रिया को ध्यान पूर्वक करते है खान पान का भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है बहुत सारी चीजें इस दौरान खाने में शामिल करते है और बहुत सारी चीजों से परहेज करते है, गर्भस्थ महिला के लिए क्या करना चाहिए , क्या नहीं करना चाहिए इन सभी बातों को विशेष रूप से ध्यान रखना अतिआवश्यक माना गया है नहीं तो अनेक सारे नुकसान देखने को मिल सकते है आगे इस लेख में हमने उल्लेख किया है कि गर्भावस्था में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
गर्भावस्था में क्या करना चाहिए?(What should be done during pregnancy?)
गर्भावस्था में क्या क्या करना चाहिए इन सभी बातों से प्रथम बार गर्भावस्था धारण करने वाली महिलायें अपरिचित रहती है आगे इस लेख में इन सभी बातों का उल्लेख किया गया है
अधिक मात्रा में पानी का सेवन करें(Drink plenty of water)
गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु के ठीक से विकास के लिए पानी की उचित मात्रा अतिआवश्यक माना गया है , इस समय महिला को दिन में पानी तीन से चार लीटर तक पी लेना चाहिए, पानी हमेशा सिप सिप करके पियें , पानी धीरे धीरे बैठ कर पीना लाभदायक माना गया है, दिन में एक ग्लास जूस अवश्य सामिल करें और हो सके तो नारियल पानी सप्ताह में दो से तीन बार ले
साबुत अनाज को अपने आहार में शामिल करें(Include whole grains in your diet)
गर्भावस्था में साबुत अनाज को अवश्य शामिल करें , इसमें कैलोरी भरपूर मात्रा में पायी जाती है जो गर्भस्थ माँ और शिशु दोनों की सेहत के लिए बहुत ही उपयोगी माना गया है अपने आहार में ब्राउन राइस, ओट्स और कीनोआ शामिल किया जा सकता है।
फ़ाइवर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करें(Eat fiber rich foods)
गर्भावस्था के दौरान पाचन क्रिया धीमी पड़ने से कब्ज और गैस होने समस्या काफी अधिक बढ़ जाती है इस कारण अधिक फ़ाइवर युक्त खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करने से पेट साफ रहता है ओर गैस नहीं बनती है।
डेयरी उत्पाद का सेवन करें(consume dairy products)
एक गर्भवती महिला को सामान्य मनुष्य की तुलना में डेयरी प्रॉडक्ट्स अधिक उपयोग में लाना चाहिए क्योंकि इस समय गर्भस्थ माँ के साथ साथ गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए दूध, दही , घी और पनीर की आवश्यकता होती है जो की प्रोटीन और कैल्शियम की जरूरत को पूरा करते है। इसलिए गर्भस्थ महिलाओं को पर्याप्त मात्रा में डेयरी उत्पाद अपने आहार में शामिल करना चाहिए।
हरे पत्ते दार सब्जियों का भरपूर मात्रा में सेवन करें(Eat plenty of green leafy vegetables)
किसी भी गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान सामान्य व्यक्ति से अधिक विटामिन , आयरन , प्रोटीन की आवश्यकता होती है इस कारण अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में अपने आहार में बिन्स, गोभी, दालें, ब्रॉकली, पालक, पत्तागोभी, गाजर इत्यादि हरि सब्जियों को सामिल करना चाहिए।
अपने आहार में सूखे मेवे को सामिल करें(Include dry fruits in your diet)
गर्भावस्था के दौरान सूखे मेवे हमारी बहुत सारी जरूरतों को पूरा कर सकते है इसीलिए अपने आहार में बादाम , काजू, किशमिस, अखरोट, मखाने, नारियल इत्यादि शामिल करें इसमें अनेक प्रकार के पोषक तत्व जैसे फाइबर , विटामिन, ओमेगा 3 फेटी एसिड पाये जाते है जो गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए उपयोगी माना गया है।
फल और जूस का सेवन करें(Consume fruits and juices)
गर्भावस्था के दौरान मौसमी फलों का सेव , संतरा, अनार, नाशपाती , अमरूद इत्यादि का सेवन करें, यह गर्भस्थ माँ और शिशु दोनों के लिए स्वास्थ्य वर्धक माना गया है।
सेक्स के मामलों में डॉक्टर से परामर्श लें(Consult a doctor in sex matters)
अपने डॉक्टर से सेक्स रूटीन के विषय में अवश्य जानकारी प्राप्त करें सामान्यतः डॉक्टर पहली तिमाही में सप्ताह में एक बार सेक्स करने की सलाह देते है किन्तु यदि कोई स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या है तो वो आपके स्वास्थ्य को देखते हुए सेक्स रूटीन बदल भी सकते है।ये मुख्यतः निर्भर करता है गर्भवती महिला का स्वास्थ्य कैसा है।
गर्भावस्था में कैसे बैठना चाहिए(How to sit during pregnancy)
गर्भावस्था में खान पान के साथ साथ आपने उठने बैठने के तरीके पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए इस अवस्था में महिला को अधिक समय तक एक स्थान पर या एक स्थिति में नहीं बैठना चाहिए अपनी स्थिति बदलते रहना चाहिए और कमर के निचले हिस्से हो सीधा करके बैठना चाहिए ताकि पेट के निचले हिस्से और गर्भाशय में दबाव न पड़े, कमर सीधा करके बैठे अन्यथा कमर और पेट दोनों में दर्द हो सकता है साथ साथ ब्लड सर्कुलेशन बाधित हो सकता है।
गर्भावस्था में सुबह कितने बजे उठना चाहिए(What time should one wake up in the morning during pregnancy?)
गर्भवती महिला को सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए क्योंकि जब ठीक से नियमित रूप से दिनचर्या पालन करेंगी तभी समय से खाना , समय से सोना , समय से जगाना हो पाएगा , प्रत्येक गर्भवती महिला को सुबह जल्दी बिस्तर छोड़ देना चाहिए।इससे सारे कम आपके समय से हो जायेगे, सुबह यदि मॉर्निंग वाक् कर सकते है तो करे अपनी रूटीन की एक्सरसाइज और प्राणायाम , ध्यान करें, कुछ अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें जो आपके लिए और गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए उपयोगी हो , समय से सो जाएँ, इससे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहेगी , गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा यदि आप जल्दी उठते है और अपनी दिनचर्या ठीक से पालन करते है।डॉक्टर भी यही परामर्श देते है कि समय से उठना चाहिए और अपना रूटीन समय से पूरा करें जो माँ और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य में सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
ढीले कपड़े पहने(Wear loose clothes)
गर्भावस्था के दौरान ढीले कपड़े पहना चाहिए महिला को क्योंकि इसमें कही भी शरीर में अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता, आपका शरीर रिलैक्स रहेगा , शरीर में ठीक से ऑक्सीजन की मात्रा पहुँचती है, रक्त संचरण ठीक से होगा, उठने बैठने में मुस्किल नहीं होगी , पेट आपका आरामदायक अवस्था में रहेगा।
हर महीने अपने गायनेकोलॉजिस्ट से परामर्श लें(Consult your gynecologist every month)
गर्भावस्था के दौरान प्रत्येक महीने अपने डॉक्टर से स्वास्थ्य सम्बंधित परामर्श अवश्य ले, जिससे स्वयं के विषय में और गर्भस्थ शिशु के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।
अधिक उल्टी होने पर क्या करें(What to do if there is excessive vomiting)
गर्भणी को जब अधिक उल्टी या घबराहट हो रही हो तो इस अवस्था में अपने डॉक्टर के पास अवश्य जाये और उनसे परामर्श ले जिससे समय नियंत्रित हो सके।
गर्भावस्था में क्या नहीं करना चाहिए(What should not be done during pregnancy)
गर्भावस्था के दौरान किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए क्या क्या नहीं करना चाहिए गर्भवती महिलाओं को इन सभी बातों की जानकारी इस लेख में आगे उल्लेख किया गया है
पपीते का सेवन न करें(Do not consume papaya)
गर्भावस्था के दौरान पपीते का सेवन नुकसान दायक हो सकता है क्योंकि पपीते में लेटेक्स कैमिकल पाया जाता है जो गर्भाशय को संकुचित करने का खतरा बढ़ा देता है जो होने वाले गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।
प्रिस्क्रिप्शन के बिना दबाई का सेवन न करें(Do not take medicine without prescription)
गर्भावस्था के दौरान बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के दवाइयों का सेवन न करें , जो आपके गायनोकोलोजिस्ट ने दबाइयाँ लिखीं है उनको समय से सेवन करें और नियमित रूप से जाँच कराते रहें।
अल्कोहल और धूम्रपान से बचें(Avoid alcohol and smoking)
गर्भावस्था के दौरान अल्कोहल और धूम्रपान नहीं करना करना चाहिए वैसे तो नशा कोई भी व्यक्ति हो सबके लिए हानिकारक माना गया है परन्तु गर्भावस्था में तो भूलकर भी नशा नहीं करना चाहिए क्योंकि यह गर्भस्थ माँ के साथ साथ गर्भ में पल रहे शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में अवरोध पैदा कर सकता है और नशे से गर्भपात होने के भी चांसेस बढ़ जाते है।
कैफीन के सेवन से बचें(Avoid caffeine consumption)
जो गर्भवती महिलायें चाय और कॉफी का अधिक सेवन करती है वो कम कर दे या बिल्कुल बंद कर दे क्योंकि चाय और कॉफी में क़ैफ़ीन नामक कैमिकल पाया जाता है जो अत्यधिक सेवन से गर्भपात का खतरा बढ़ा सकता है।
अंकुरित पदार्थों का सेवन न करें(Do not consume sprouted foods)
गर्भावस्था के दौरान अंकुरित पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि अंकुरित पदार्थों में अनेक प्रकार के सल्मोनेला बैक्टीरिया, लिस्टेरिया बैक्टीरिया, इकोलाई बैक्टीरिया उपस्थित होते है जो फूडपॉइजन का खतरा बन सकते है।
ऐलोवेरा जूस के सेवन से बचें(Avoid consuming aloe vera juice)
गर्भावस्था के दौरान पहली तिमाही में ऐलोवेरा जूस के सेवन से परहेज करना चाहिए क्योंकि कभी कभी इससे पेल्विस क्षेत्र में ब्लीडिंग की संभावना बढ़ जाती है जो महिला के स्वास्थ्य के लिए मुस्किल हो सकता है।
भारी व्यायाम से परहेज करें(Avoid heavy exercise)
इस दौरान भारी एक्सरसाइज से बचे जो आपके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल एक्सरसाइज हो उनका अभ्यास करें जिससे आप और गर्भस्थ शिशु दोनो स्वस्थ और निरोग बने रहे और दोनों का शारीरिक और मानसिक विकास हो सके।
हॉट ट्यूब या सॉना में न बैठे(Do not sit in hot tube or sauna)
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को हॉट ट्यूब या सॉना में नहीं बैठना चाहिए इससे उनको और गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुँच सकता है।
लम्बे समय तक खड़े रहने से बचें(Avoid standing for long periods of time)
गर्भावस्था के दौरान लम्बे समय तक खड़े होना हानिकारक हो सकता है इसीलिए बीच बीच में विश्राम करते जाना चाहिए जिससे आप स्वस्थ बने रहे।
गर्भावस्था के प्रकार(Types of pregnancy)
गर्भावस्था दस प्रकार के बताये गये है जिनका उल्लेख आगे इस लेख में बताया गया है
अंतर्गर्भाशयी गर्भावस्था(Intrauterine pregnancy)
मोलर गर्भावस्था(Molar pregnancy)
एक्टॉपिक या ट्यूबल गर्भावस्था(Ectopic or tubal pregnancy)
एक्टॉपिक गर्भावस्था या ट्यूबल गर्भावस्था एक स्थिति है जब गर्भाशय के बाहर गर्भवती होती है, आमतौर पर फैलोपियन ट्यूब के किसी अन्य हिस्से में। यह गर्भ का स्थान गलत होने का कारण हो सकता है, जिससे नये जीवन का विकास संभव नहीं होता और यह गर्भाशय की बाहरी सतह पर बढ़ सकता है।
एक्टॉपिक गर्भावस्था के कुछ सामान्य लक्षण शामिल हो सकते हैं, जैसे कि दर्द, रक्तस्राव, या आंतरिक हेडर। यह आपात स्थिति है जिसे मेडिकल पेन में तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है।
इंट्रा-एब्डॉमिनल गर्भावस्था(Intra-abdominal pregnancy)
इंट्रा-एब्डॉमिनल गर्भावस्था एक अद्वितीय प्रकार की गर्भावस्था है जिसमें गर्भवती महिला का गर्भ अंडाशय की बाहरी सतह के बजाय इंट्रा-एब्डॉमिनल स्थिति में होता है। इसमें गर्भ बुद्धिमान कई स्त्रीयों को संभालने की अधिकतम संभावना होती है और यह आमतौर पर एब्डॉमिनल और पेलविक अंडाशयों के बीच एक या दो गर्भग्रंथियों को समर्थित करता है।
यह गर्भावस्था उन महिलाओं के लिए अधिक सुरक्षित हो सकती है जिनमें कुछ ऐसी स्थितियाँ हो सकती हैं जिनमें एक्सट्रेम एब्डॉमिनल प्रेशर से गर्भनिरोध हो सकता है, जैसे कि सीजेरियन सार्जरी के बाद।
सिंगल गर्भावस्था(Single pregnancy)
सिंगल गर्भावस्था के दौरान, एकल भ्रूण गर्भाशय में बढ़ता है और उसका विकास स्थानीय होता है, जिससे सामान्यत: एक ही शिशु का जन्म होता है।
एकाधिक या मल्टीप्ल गर्भावस्था(Multiple pregnancy)
एकाधिक गर्भावस्था या मल्टीप्ल गर्भावस्था एक स्थिति है जब महिला के गर्भाशय में एक से अधिक भ्रूण विकसित होते हैं, जिससे एक से अधिक शिशुओं का जन्म हो सकता है। इसमें दो, तीन, चार या उससे अधिक शिशु हो सकते हैं, और इसे जितने भ्रूण होते हैं, उतनी ही गर्भग्रंथियां बन सकती हैं।
मल्टीप्ल गर्भावस्था में, यह सामान्यत: ट्विन्स, ट्रिप्लेट्स, या और भी अधिक शिशुओं के रूप में दिख सकता है। इसमें सम्भावना है कि शिशुओं को एक समय पर पैदा हो सकता है, और इसलिए मल्टीप्ल गर्भावस्था की देखभाल में विशेषज्ञता आवश्यक हो सकती है।
हाई रिस्क गर्भावस्था(High risk pregnancy)
हाई रिस्क गर्भावस्था एक स्त्री के गर्भावस्था को संकेतित करता है जिसमें जीवन या स्वास्थ्य की अधिकतम खतरा होता है, उत्पन्न हो सकता है। ऐसी स्थितियाँ शामिल हो सकती हैं जो स्वाभाविक गर्भावस्था के दौरान सामान्य नहीं होती हैं, जैसे कि महिला की आयु, आपत्तियों का इतिहास, या आणविक असमर्थता।
हाई रिस्क गर्भावस्था में, स्वास्थ्य पेशेवरों ने गर्भवती महिला को अधिक ध्यान, मानव संसाधन, और संपेक्ष देखभाल की आवश्यकता हो सकती है। इसमें मां और शिशु की स्वास्थ्य की निगरानी में विशेषज्ञों की सकारात्मक भूमिका होती है।
लूपस गर्भावस्था(Lupus pregnancy)
लूपस गर्भावस्था का संदर्भ लूपस (Lupus) नामक एक ऑटोइम्यून रोग से है, जिसमें शरीर का खुद का प्रतिरक्षा प्रणाली खुद के ऊपर हमला कर सकती है। गर्भावस्था में लूपस के साथ, महिलाओं को अधिक सतर्क रहना चाहिए क्योंकि इससे संभावित है कि यह गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है।
लूपस गर्भावस्था में, महिला की खुद की प्रतिरक्षा प्रणाली बच्चे के प्रति हमला कर सकती है और गर्भधारण को प्रभावित कर सकती है। इससे पैदा होने वाले बच्चे को सही धाराओं में दिखने में दिक्कत हो सकती है, और गर्भावस्था में अन्य समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं। महिलाओं को लूपस गर्भावस्था के बारे में अपने चिकित्सक से चर्चा करनी चाहिए ताकि सही और सुरक्षित देखभाल की जा सके।
केमिकल गर्भावस्था(Chemical pregnancy)
“केमिकल गर्भावस्था” एक ऐसी स्थिति को संकेतित कर सकता है जब गर्भाधारण के पहले चरण में कुछ तकनीकी असफलता होती है और गर्भावस्था नहीं बनती है। इसे कभी-कभी “अवकाशिक अबॉर्शन” भी कहा जाता है।
इस स्थिति में, गर्भावस्था की शुरुआती चरणों में एक या दो सप्ताहों के बाद, महिला गर्भावस्था को रोक देती है, जिसका परिणाम होता है कि गर्भावस्था पूर्ण नहीं हो सकती है और गर्भधारण का असफल परिणाम होता है।
यदि आप या कोई अन्य इस समस्या से प्रभावित हो रहा है, तो उचित स्वास्थ्य सेवाओं से सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
ब्रीच गर्भावस्था(breech pregnancy)
ब्रीच गर्भावस्था एक स्थिति है जब शिशु गर्भावस्था के दौरान सिर की बजाय पैर की दिशा में होता है। यानी, जब शिशु पेड़ के पैर की ओर मुड़ा हुआ होता है। आमतौर पर, गर्भावस्था के आखिरी सप्ताहों तक शिशु आमतौर पर सिर की ओर मुड़ता है, जिससे जन्म प्रक्रिया सरल होती है।
ब्रीच गर्भावस्था जन्म प्रक्रिया को थोड़ा साहसिक बना सकती है, और कई बार डॉक्टर्स किसी भी औऱ जन्म विधि को चुनने से पहले मातृ और शिशु की स्थिति का विश्लेषण करते हैं। ब्रीच पोजिशन में जन्म के लिए विशेष चिकित्सात्मक समर्थन और देखभाल की जरूरत हो सकती है।
प्रीनेटल योग(Prenatal Yoga)
ताड़ासन(Tadasana)
- ताड़ासन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम पैरों को मिलाकर खड़े हो जाएं या दोनों पैरों के बीच एक फिट का अंतर रखें।
- दोनों हाथों को कमर के बगल में रखें
- शरीर को स्थिर करें और वजन दोनों पैरों पर समान रखे।
- सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाएं।
- उंगलियों को आपस में फंसा लें और हथेलियों को ऊपर की ओर मोड़ें।सामने किसी एक बिंदु पर दृष्टि बना कर रखें।
- सांस भरते हुए यदि सम्भव है तो एड़ियों को पंजों तक ऊपर उठाएं।
- पूरे शरीर को ऊपर से नीचे तक खींचे बिना संतुलन खोए ।
- इसके बाद जितना संभव हो रोके इसके बाद सांस छोड़ते हुए धीरे धीरे अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाये और विश्राम करें ।
- यह हमारा एक चक्र संपन्न हुआ
- इसको सावधानीपूर्वक अपनी सुविधानुसार एक या दो बार प्रेगनेसी के समय किया जा सकता है।
लाभ(Benefit)
गर्भावस्था के दौरान ताड़ासन बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है इस समय किया गया यह आसन गर्भवती महिलाओं का रक्त संचरण ठीक करता है जिससे शरीर को मजबूती मिलती है।महिलाओं की रीड की हड्डी मजबूत होती है।एकाग्रता बड़ती है, कब्ज में लाभ मिलता है।गर्भवती महिलाओं को तनाव कम करने में मदद मिलती है।पेट, हाथ और पैरों की मांसपेशियाँ मजबूत होती है तथा कमर दर्द में राहत मिलती है।
तिर्यक ताड़ासन(Tiryaka Tadasana)
- गर्भवती महिलायें तिर्यक ताड़ासन का अभ्यास करने के लिए दोनों पैरों में डेढ़ से दो फीट का अन्तर रखकर खड़े हो जाये।
- सांस भरते हुए दोनों हाथों को अपने कंधों के समानांतर उठाये।
- सांस छोड़ते हुए दाहिने हाथ को दाहिने पैर में रखे जहां तक आप आसानी से जा सकते है और बाए हाथ को सिर के पास रखें।
- इसके बाद सांस भरते हुए पूर्वत स्थिति में आयें।
- फिर इसी प्रकार बाईं तरफ भी दोहरायें ।
- यह आपका एक चक्र सम्पन्न हुआ इसको पाँच से सात चक्र में किया जा सकता है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास करने से गर्भवती महिलाओं का पाचन क्रिया ठीक रहती है साथ ही साथ उनका मेटाबोलिज्म विकसित होता है जिससे कब्ज जैसी समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करने में मदद मिलती है।
- यह आसन पेट और कमर की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और ब्लड सर्कुलेशन ठीक करने में मददगार साबित होता है।
- तिर्यक ताड़ासन गर्भवती महिलाओं के कमर को लचीला बनाता है।
कटिचक्रासन(Katichkrasana)
- इस आसन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें दोनों पैरो में डेढ़ से दो फिट का अन्तर रखें।
- दोनों हाथों को सामने की तरफ कंधों के समानांतर सीधा रखें।
- सांस छोड़ते हुए दाहिनी तरफ कमर से घूमते हुए अपने दाहिने हाथ को कमर में और बाये हाथ को दाहिने कंधे पर रखें।
- ध्यान रखें कमर के साथ गर्दन और सिर भी दाहिनी तरफ घूमेगा कमर से नीचे का हिस्सा एक जगह स्थिर रहेगा।
- एक स्थिति में अपने शरीर को रोकें इसके बाद सांस भरते हुए सामने की तरफ आये और सांस छोड़ते हुए दूसरी तरफ समान क्रिया को दोहराए।इसमें आपका बाया हाथ कमर में और दाहिना हाथ बाये कंधे से स्पर्श करेगा।
- यह आपका एक चक्र सम्पन्न हुआ
- इस आसन को गर्भवती महिलाएँ अपनी शरीर की क्षमतानुसार चार से पाँच चक्र में कर सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के कमर के दर्द में आराम मिलता है,कमर, गर्दन, हाथ, पेट , कंधों की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली बनती है साथ साथ रक्त संचरण ठीक से होता है।
- यह आसन गर्भावस्था में कब्ज की समस्या को ठीक करने में मदद करता है।
- गर्भावस्था में पाचन क्रिया ठीक करने में सहायता करता है।
तिर्यक ताड़ासन(Tiryaka Tadasana)
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिये दोनों पैरों में डेढ़ से दो फिट का अन्तर रखें।
- दोनों हाथों को कमर के बगल में रखें
- शरीर को स्थिर करें और वजन दोनों पैरों पर समान रूप से सन्तुलित करें।
- हाथों को सिर के ऊपर उठाएं।
- उंगलियों को आपस में फंसा लें और हथेलियों को ऊपर की ओर मोड़ें।
- सांस छोड़ते हुए अपने शरीर को कमर से दाहिनी तरफ मोड़ें जितना सम्भव हो।
- इसमें कमर से निचला हिस्सा स्थिर रहेगा।
- इसके बाद सांस भरते हुए पूर्वत स्थिति में आये और सांस छोड़ते हुए बाई तरफ शरीर को कमर से झुकायें।
- यह हमारा एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- इस आसन का अभ्यास गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार तीन से चार चक्र में कर सकती है।
लाभ
- इस आसन से गर्भवती महिलाओं की पेट के निचले हिस्से की मांसपेशियाँ मजबूत होती है।
- पेट और कमर में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से होता है।
- आँतों की क्रियाशीलता बड़ती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के पैर, जाँघ,हिप्स, घुटनों,कंधों, कोहनी, कलाई, गर्दन, मेरुदण्ड की मांसपेशियाँ मजबूत , लचीली और थकान रहित होती है।
- इसके अभ्यास से शरीर की जकड़न, अकड़न और मसल तनाव को कम करने में सहायता मिलती है।
उत्थित त्रिकोणसन(Utthit Trikonasana)
उत्थित त्रिकोणसन
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास करते समय दोनों पैरों में दो से तीन फिट का अन्तर रखें या अपनी सुविधानुसार पैरो में अन्तर रख सकते है।
- इसके बाद सांस भरते हुए दोनों हाथों को कंधों के समानांतर ऊपर उठायें।
- सर्वप्रथम सांस छोड़ते हुए दाहिनी तरफ अपने शरीर को कमर से मोड़ें और दाहिने हाथ से दाहिने पंजे को पकड़े, बाया हाथ अपने सिर के पास रखें।
- हाथों के साथ साथ कमर का ऊपरी हिस्सा दाहिनी तरफ झुकेगा।
- कमर से निचला हिस्सा जमीन पर स्थिर रहेगा।
- गर्भवती महिलायें ध्यान दे जितना उनके लिए संभव हो उतना ही शरीर को मोड़ें अनावश्यक अधिक तनाव न डालें।
- इसके बाद सांस भरते हुए अपने शरीर को पूर्वत लाए और सांस छोड़ते हुए बाई तरफ अभ्यास को करें इसमें बाये हाथ से बायें पंजे को पकड़ें।
- यह हमारा एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ
- इस आसन को गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार दो से तीन बार दोहरा सकती है।
लाभ
- गर्भवती महिलाओं को इस आसन के अभ्यास से पेल्विक क्षेत्र में लचीला पन बढ़ता है, यहाँ की मांसपेशियाँ मजबूत होती है साथ ही साथ ब्लड का सर्कुलेशन ठीक से होता है जो प्रसव काल में प्रसव वेदना को कम करने में मदद करता है।
- इस आसन के अभ्यास से जाँघ, हिप्स, कमर का निचला हिस्सा, मेरुदंड के हिस्से में रक्त संचरण होता है और इस क्षेत्र की मांसपेशियां लचीली और मजबूत होती है।
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं को शरीर में क्रैंप्स ( ऐठन) से सम्बन्धित समस्याएँ को ठीक करने में मदद मिलती है।
अर्ध हस्तोत्थानासन(Ardha Hastothanasana)
- गर्भवती महिलायें अर्ध हस्तोत्थानासन या अर्ध चंद्रासन का अभ्यास करने के लिए दोनों पैरों में एक फिट का अन्तर रखें।
- इसके बाद दोनों हाथों से कमर और हिप्स के क्षेत्र को पकड़ें।
- सांस भरते हुए जितना सम्भव हो पीछे की तरफ मोड़ें।
- ध्यान रखें कमर से शरीर का ऊपरी हिस्सा पीछे की तरफ जाएगा और बाकी कमर से निचला हिस्सा सीधा जमीन पर स्थिर रहेगा।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आये।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- इसको अपनी क्षमतानुसार दो से तीन बार किया जा सकता है।
लाभ
- इस आसन को करने से गर्भवती महिलाओं के कमर दर्द में राहत मिलती है।
- इस आसन से पेट की मांसपेशियाँ खिंचती है जिससे पेट में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से होता है।
- यह आसन स्पाइन के आकार को ठीक करता है जिससे गर्भावस्था के दौरान बड़े वजन से जो कमर में अत्यधिक दबाव पड़ता है कुछ महिलाओं में कमर आगे की तरफ झुक जाती है और कमर में दर्द होने लगता है उस स्थिति को ठीक करने में यह आसन बहुत ही उपयोगी माना गया है।
- यह आसन मेरुदंड, गर्दन, कंधों के दर्द को ठीक करता है और इनको लचीला बनाने में मदद करता है।
कुर्सी आसन(chair Pose)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें दोनों पैरों में थोड़ा सा अन्तर रखें, शरीर को सीधा रखें।दोनों हाथों को कंधे के बराबर सामने की तरफ उठाए।हाथों को जमीन के समानांतर रखें।
- सांस भरते हुए दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें जितना संभव हो, घुटने पंजे के आगे नहीं जाना चाहिए ।हिप्स को पीछे की तरफ खिंच कर रखें।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारम्भिक स्थिति में वापस आ जाये।
- यह एक चक्र सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें अपनी सुविधानुसार दो से तीन बार अभ्यास को दोहरा सकते है।
लाभ
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के पैर और कमर का भाग मजबूत हो जाता है।
- घुटनों और जाँघों की ताकत बढ़ती है।
- इस आसन से कमर की मजबूती बड़ती है।
- तनाव कम होता है और एकाग्रता बड़ती है।
उत्कटासन(Utkatasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें दोनों पैरो में एक फिट का अन्तर रखें और सीधा खड़े हो जाये
- दोनों हाथों को सिर के ऊपर सीधा ले जायें और आपस में दोनों हथेलियों को स्पर्श करें।
- दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें जितना सम्भव हो उतना मोड़ें किन्तु घुटने पंजों के बाहर नहीं जाना चाहिए।
- गर्भवती महिलाएँ इस आसन के अभ्यास में साँसें सामान्य रखें।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें उत्कटासन का अभ्यास एक से दो चक्र में कर सकती है।
लाभ
- इस आसन का अभ्यास गर्भवती महिलाओं के टखने,जंघा, घुटने, पिण्डली और मेरुदण्ड को मजबूत और लचीला बनाने का कार्य करता है।
- जो गर्भवती महिलायें फ्लैट पैर की समस्या से जूझ रही है उनको इस समस्या से आराम मिलता है।
- यह आसन गर्भावस्था के दौरान शारीरिक और मानसिक सन्तुलन को बनाने में मदद करता है।
- यह आसन पेट के अंगों , डायफ्राम और हृदय की मांसपेशियों को उत्तेजित करने का कार्य करता है।
- यह आसन गर्भवती महिलाओं की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को विकसित करता है।
उत्कट कोणासन १ (Goddess pose)
- इस आसन के अभ्यास के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम समतल जमीन पर मैट बिछा कर खड़े हो जायें।
- दोनों पैरों के बीच दो से तीन फिट की दूरी बना लें, पंजों को बाहर की तरफ मोड़ें और एड़ी को अन्दर की तरफ करें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरो को घुटनों से धीरे धीरे मोड़ें और कूल्हों ( हिप्स ) को नीचे की तरफ झुकायें जितना सम्भव हो।
- गहरी सांस ले और दोनों हाथों को अपने कंधों के समानांतर सीधा करें।
- छाती को फैलाते हुए दोनों कंधों को दाहिने और बाये एक सीध में खींचें।
- कुछ समय रोकने के पश्चात धीरे धीरे अपनी पूर्वत अवस्था में वापस आ जाये यह हमारा एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार दो से तीन बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन से गर्भवती महिलाओं में जाँघों ,कूल्हों, घुटनों, टखनों, की मासपेसियाँ मजबूत और लचीली होती है तथा ठीक से रक्त संचार होता है।
- यह आसन पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाता है साथ ही साथ ब्लड सर्कुलेशन इन मांसपेशियों में ठीक से करता है जो प्रसव काल में गर्भवती महिलाओं के लिए उपयोगी साबित हो सकता है और सामान्य प्रसव में सहायक बन सकता है।
- यह आसन चिंता, तनाव, व अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं को कम करता है जो गर्भवती महिलाओं के लिए इस अवस्था में बहुत ही आवश्यक है।
नोट- गर्भवती महिलायें पहली तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
उत्कट कोणासन नमस्ते मुद्रा(Utkata Konasana Namaste Pose)
- इस आसन के अभ्यास के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम समतल जमीन पर मैट बिछा कर खड़े हो जायें।
- दोनों पैरों के बीच दो से तीन फिट की दूरी बना लें, पंजों को बाहर की तरफ मोड़ें और एड़ी को अन्दर की तरफ करें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरो को घुटनों से धीरे धीरे मोड़ें और कूल्हों ( हिप्स ) को नीचे की तरफ झुकायें जितना सम्भव हो।
- गहरी सांस ले और दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा लायें।
- छाती को फैलाते हुए दोनों कंधों को दाहिने और बाये एक सीध में खींचें।
- कुछ समय रोकने के पश्चात धीरे धीरे अपनी पूर्वत अवस्था में वापस आ जाये यह हमारा एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार दो से तीन बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन से गर्भवती महिलाओं में जाँघों ,कूल्हों, घुटनों, टखनों, की मासपेसियाँ मजबूत और लचीली होती है तथा ठीक से रक्त संचार होता है।
- यह आसन पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाता है साथ ही साथ ब्लड सर्कुलेशन इन मांसपेशियों में ठीक से करता है जो प्रसव काल में गर्भवती महिलाओं के लिए उपयोगी साबित हो सकता है और सामान्य प्रसव में सहायक बन सकता है।
- यह आसन चिंता, तनाव, व अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं को कम करता है जो गर्भवती महिलाओं के लिए इस अवस्था में बहुत ही आवश्यक है।
नोट- गर्भवती महिलायें पहली तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
तिर्यक उत्कटकोणासन ( Side goddess pose )
- इस आसन के अभ्यास के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम समतल जमीन पर मैट बिछा कर सीधा खड़े हो जायें।
- दोनों पैरों के बीच दो से तीन फिट की दूरी बना लें, पंजों को बाहर की तरफ मोड़ें और एड़ी को अन्दर की तरफ करें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरो को घुटनों से धीरे धीरे मोड़ें और कूल्हों ( हिप्स ) को नीचे की तरफ झुकायें जितना सम्भव हो।
- गहरी सांस ले और दोनों हाथों को अपने कंधों के समानांतर सीधा करें।
- छाती को फैलाते हुए दोनों कंधों को दाहिने और बाये एक सीध में खींचें।
- इसके बाद अपने दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर दाहिने जंघा में रखें और बाया हाथ अपने सिर के पास रखें।
- ध्यान रखें कमर से ऊपरी हिस्सा दाहिनी तरफ झुकेगा।
- कुछ समय रोकने के पश्चात धीरे धीरे अपनी पूर्वत अवस्था में वापस आ जाये और फिर इसी तरह बाई और का अभ्यास करें इसमें आपको बाई और झुकना है तथा बाए हाथ की कोहनियों को मोड़कर बाये जंघा को पकड़ें जितना सहेज हो कुछ समय तक रोकें इसके पश्चात धीरे धीरे अपने पूर्वत अवस्था में आ जायें।
- यह हमारा एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार दो से तीन बार दोहरा सकती है।
नोट-गर्भवती महिलाएँ पहले तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
वृक्षासन(Vrikshasana)
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम सीधे खड़े हो जाये, दोनों पैरों में थोड़ा सा अन्तर रखने।
- दाहिने घुटने को मोड़ें , दाहिने पैर के पंजे को बाई जाँघ पर जितना संभव हो सके ऊपर टीकाएँ।
- इसमें ध्यान रखें कि एड़ी ऊपर की तरफ होगी और पंजे नीचे की तरफ होंगे।
- बाये पैर पर सारे शरीर का वजन सन्तुलित करके सीधा खड़े हों।
- जब शरीर का सन्तुलन ठीक से बन जाये तब दोनों हाथों को अपने सिर के ऊपर उठाए और सीधा रखते हुए नमस्कार मुद्रा में दोनों हाथों को रखें।
- इस आसन को सांस भरते हुए करना है और आँखों की दृष्टि सामने किसी एक बिन्दु पर केंद्रित करें जिससे आसन को सन्तुलित करने में आसानी होगी।
- इसके पश्चात इसी प्रकार दूसरे पैर से सभी स्टेप्स को दोहरायें।
- आसन के दौरान गर्भवती महिलायें सामान्य रूप से सांस लेती रहें।
- इसके बाद धीरे से वापस आ जायें यह एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ।
- गर्भवती महिलाएँ इस आसन को एक या दो बार अपनी सुविधानुसार दोहरा सकती है।
लाभ
- यह आसन जाँघों , पिंडली, टखनों, और मेरुदंड को लचीला तथा मजबूत बनाता है जो की गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक माना गया है।
- पेल्विस क्षेत्र, ग्रोइन और आंतरिक जाँघों में खिचाव लता है और रक्त संचार ठीक से करने में मदद करता है जो प्रसव काल में सहायक है।
- इस आसन से गर्भवती महिलाओं का तनाव कम करने में मदद मिलती है।
- इस आसन से एकाग्रता बढ़ती है और सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है जो माता और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए उपयोगी माना गया है।
नोट- गर्भवती महिलायें पहले तिमाही में इस आसन को न करें और अन्तिम तिमाही में इस आसन का अभ्यास कुर्सी या दीवार के सहयोग से करें।
विपरीत परसोत्तानासन(Parsottan back banding)
- इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें समतल जमीन पर मैट बिछा कर सीधे खड़े हो जाएँ।
- इसके बाद अपने बायें पैर को आगे की ओर और दाहिने पैर को पीछे की और खींचें और सीधे खड़े हो जायें।
- इसके पश्चात सांस भरते हुए पीछे झुकें और अपने बाये हाथ से दाहिने जाँघ को पकड़े और दाहिना हाथ सिर के बगल में सीधा रखें, कमर से शरीर का ऊपरी हिस्सा पीछे की तरफ झुकायें जितना सम्भव हो।
- इस आसन में कुछ समय तक रोकें जितना सम्भव हो इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाये और इसी तरह दूसरे पैर अर्थात् दाहिने पैर से अभ्यास को दोहराएँ।
लाभ
- यह आसन जाँघ, आंतरिक जंघा, पेल्विस क्षेत्र, पेट के निचले हिस्से को लचीला और मजबूत बनाने का कार्य करता है साथ ही यह गर्भवती महिलाओं के लोअर एब्डोमन क्षेत्र में और पेल्विस क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से करता है जिससे यहाँ की मांसपेशियाँ मजबूत होती है जो प्रसव काल में सहायता करती है और प्रसव वेदना को कम करती है।
- इस आसन से स्पाइन की अकड़न ठीक होती है जिससे कमर दर्द में राहत मिलती है जो की आम बात है गर्भावस्था के दौरान।
- यह आसन गर्भवती महिलाओं की एकाग्रता बढ़ाने में सहायक है।
परिवृत्त त्रिकोणासन(Parivrat trikonasana)
•इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम किसी समतल जमीन पर मैट डाल ले और सीधे खड़े हो जाएँ।
•इसके बाद दोनों पैरो में तीन से साढ़े तीन फिट का अन्तर रखें।
•अपने बाये पैर को पैतालिश से पचास दर्जे अन्दर को मोड़ें और दाहिने पैर को नब्बे दर्जे बाहर की तरफ मोड़ें।बाई एड़ी के साथ दाईं एड़ी संरेखित करें।
•धड़ को दाहिनी ओर नब्बे दर्जे तक मोड़ें।येसा करने के बाद धड़ को आगे की तरफ झुकायें।ध्यान रखें कि आप कूल्हों के जोड़ों से झुकाए न की पीठ के जोड़ से।
•अब सांस भरते हुए बाये हाथ को सामने से लेते हुए दाये पंजे के बाहरी तरफ भूमि में टिका दें।यदि आपके लिये यह संभव न हो तो हाथ को घुटने या एड़ी को पकड़ सकते है।
•इसके बाद दाहिने हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर गर्दन को दाये ओर मोड़ते हुए दाहिने हाथ को देखें।
•कुछ समय इसको रोके इसके पश्चात पूर्वत अवस्था में वापस आ जाये।
•दाहिनी ओर करने के बाद ये सारे स्टेप्स बाई ओर भी करें यह आपका एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
•इसको अपनी क्षमतानुसार एक या दो बार दोहराया जा सकता।
लाभ
•यह आसन पैरो में खिंचाव पैदा करता है जिससे पैर मजबूत होते है जो गर्भवती महिला के लिए उपयोगी माना गया है।
•कूल्हों , आंतरिक जंघा और मेरुदण्ड में खिचाव उत्पन्न करता है साथ साथ इन अंगों को लचीला बनाने में सहायक है।
•इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं को कमर दर्द में राहत मिलती है।
•यह आसन पेट के अंगों को उत्तेजित करता है जिससे पेट के अंगों में ठीक से ब्लड सर्कुलेट होता है।
•यह आसन गर्भावस्था के दौरान शारीरिक सन्तुलन को बढ़ाता है।
नोट - ध्यान रखें गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास बहुत ही सावधानीपूर्वक करें इसके अभ्यास में पेट पर दबाव नहीं आना चाहिए।पहले तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
परसोत्तान विपरीत नमस्कारासन( Parsottan viparit namaskar) asana
- इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें समतल जमीन पर मैट बिछा कर सीधे खड़े हो जाएँ।
- इसके बाद अपने बायें पैर को आगे की ओर और दाहिने पैर को पीछे की और खींचें और सीधे खड़े हो जायें।
- इसके पश्चात सांस भरते हुए पीछे झुकें और अपने दोनों हाथों को पीछे नमस्कार मुद्रा में ले जाये , अपने हाथों को पीछे से नमस्कार मुद्रा में जितना संभव हो उतना सिर की तरफ ले जाने का प्रयास करें। कमर से शरीर का ऊपरी हिस्सा पीछे की तरफ झुकायें जितना सम्भव हो।
- इस आसन में कुछ समय तक रोकें जितना सम्भव हो इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाये और इसी तरह दूसरे पैर अर्थात् दाहिने पैर से अभ्यास को दोहराएँ सारे स्टेप्स समान होंगे जो अपने बाये पैर से किए थे।
लाभ
- यह आसन जाँघ, आंतरिक जंघा, पेल्विस क्षेत्र, पेट के निचले हिस्से को लचीला और मजबूत बनाने का कार्य करता है साथ ही यह गर्भवती महिलाओं के लोअर एब्डोमन क्षेत्र में और पेल्विस क्षेत्र में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से करता है जिससे यहाँ की मांसपेशियाँ मजबूत होती है जो प्रसव काल में सहायता करती है और प्रसव वेदना को कम करती है।
- इस आसन से स्पाइन की अकड़न ठीक होती है जिससे कमर दर्द में राहत मिलती है जो की आम बात है गर्भावस्था के दौरान।
- यह आसन गर्भवती महिलाओं की एकाग्रता बढ़ाने में सहायक है।
परसोत्तान नमस्कारासन(parsottan namaskar asana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें समतल जमीन पर मैट बिछा कर सीधे खड़े हो जाएँ।
- इसके बाद अपने बायें पैर को आगे की ओर और दाहिने पैर को पीछे की और खींचें और सीधे खड़े हो जायें।
- इसके पश्चात सांस भरते हुए कमर को सीधा करें और अपने दोनों हाथों को पीछे नमस्कार मुद्रा में ले जाये , अपने हाथों को पीछे से नमस्कार मुद्रा में जितना संभव हो उतना सिर की तरफ ले जाने का प्रयास करें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए कमर से शरीर का ऊपरी हिस्सा आगे की तरफ नब्बे डिग्री के एंगल में झुकाए जितना सम्भव हो।
- इस आसन में कुछ समय तक रोकें जितना सम्भव हो सांस सामान्य रखें इसके बाद सांस भरते हुए अपनी प्रारंभिक अवस्था में आ जाये और इसी तरह दूसरे पैर अर्थात् दाहिने पैर से अभ्यास को दोहराएँ सारे स्टेप्स समान होंगे जो अपने बाये पैर से किए थे।
मलासन(Malasana)
- मलासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें समतल जमीन पर एक योगा मैट बिछा लें और उसपर खड़े हो जाएँ।
- अपने दोनों पैरों में एक से डेढ़ फिट का अन्तर रखें।
- इसके बाद अपने दोनों हाथों को उठाये और छाती के सामने आपस में जोड़े या नमस्ते मुद्रा में रखें।
- अब धीरे धीरे नीचे की ओर बैठने का अभ्यास करें और मल त्याग करने वाली स्थिति में आ जाये, यदि अभ्यासी के घुटने मजबूत नहीं है या नीचे बैठने में मुस्किल हो रही हो तो कुर्सी का सहयोग लेकर नीचे बैठने की कोसिस करे।
- दोनों पैरों के पंजे बाहर की तरफ इतना फैलाए की बैठने में आसानी रहे और एड़ियाँ थोड़ा सा अन्दर की तरफ होंगी।
- अपनी दोनों जाँघों को धड़ या शरीर के ऊपरी हिस्से से अधिक चौड़ाई में रखें।
- सांस सामान्य रखते हुए कमर सीधा रखते हुए, अपनी दोनों कोहनियों को जाँघ में फसा लें और नमस्कार मुद्रा में दोनों हाथों को रखें।
- दोनों जाँघ और घुटनों के मध्य में अपने पेट को रखें जिससे पेट में किसी भी प्रकार का दबाव न उत्पन्न हो।
- ध्यान रखें गर्भवती महिलायें इस आसन को करने के दौरान पेट पर दबाव नहीं आना चाहिए इसलिए सावधानीपूर्वक इस आसन का अभ्यास करें।
- कुछ समय रोकने के पश्चात धीरे से खड़े हो जाये।यह आपका एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ
- मलासन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक या दो चक्र में किया जा सकता है।
लाभ
- यह आसन गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही उपयोगी माना जाता है क्योंकि यह हमारे पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियों को लचीला बनाता है, ब्लड सर्कुलेशन ठीक से होता है और यहाँ की मासपेसियाँ मजबूत बनती है जो सामान्य प्रसव होने में सहायक माना गया है।
- यह आसन पेट के निचले हिस्से में रक्त संचार करता है और गर्भवती महिलाओं की कब्ज की समस्या को ठीक करने में मदद करता है।
- इस आसन से पाचन शक्ति मजबूत होती है और भूख खुलकर लगती है।
- यह आसन पेट और आँतों को मजबूत करके उनकी कार्य क्षमता बढ़ाता है।
- जाँघ, घुटने, टखने, कमर और पिंडलियों की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाने का कार्य करता है जो गर्भवती महिलाओं के लिए आवश्यक है।
- यह गर्भाशय को लचीला बनाने और रक्त संचार ठीक से करने में मदद करता है जो प्रसव काल के दौरान नॉर्मल डिलीवरी में सहायक माना गया है।
नोट-ध्यान दें गर्भवती महिलाएँ पहले तिमाही में मलासन का अभ्यास न करें।
तितली आसन(butterfly posture)
- गर्भवती महिलाएँ तितली आसन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम समतल जमीन पर एक मैट बिछा लें इसके बाद उस मैट में बैठ जाए सुखासन में या दोनों पैरों को सीधा करके दण्डासन की स्थिति में।
- जब आप दंडासन या सुखासन में बैठे हो स्पाइन सीधी रखें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों को घुटने से मोड़कर अन्दर की तरफ अर्थात हिप्स की तरफ खींचें और दोनों हाथों से अपने दोनों पंजों को पकड़ लें और जितना सम्भव हो अपने पैरों को जाँघो की तरफ खिंचने की कोशिश करें।यदि गर्भवती महिलाओं को इस अवस्था में आने के लिए मुस्किल हो रही हो तो हिप्स के नीचे कुसन का सहयोग ले सकते है बैठने में।
- इसके बाद अपने दोनों घुटनों को ऊपर – नीचे करते हुए साँसों में ध्यान दें।
- घुटनों को ऊपर ले जाते समय सांस को ले और नीचे जमीन की तरफ घुटना ले जाते हुए सांस को छोड़ें।
- गर्भवती महिलाओं को इस आसन का अभ्यास दो से तीन मिनट तक कर सकते है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के हिप्स , घुटनों, जाँघ, आंतरिक जाँघ का क्षेत्र, पिंडलियों का भाग और कमर के निचले हिस्से में लचीलापन आता है, इन अंगों की मजबूती बढ़ती है और रक्त संचार ठीक से होता है जिससे पैर मजबूत और स्वस्थ होते है।
- इस आसन के अभ्यास से पेल्विस और ग्रोइन क्षेत्र की मासपेसियाँ मजबूत और लचीली बनती है साथ ही रक्त का प्रवाह इन अंगों में ठीक से होता है जिससे प्रसव काल में प्रसव वेदना को कम करने में सहायता मिलती है और सामान्य प्रसव के लिए सहायक माना गया है।
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के गर्भाशय का भाग लचीला और स्वस्थ होता है जो गर्भस्थ शिशु के विकास में सहायता करता है।
- इस आसन से गर्भस्थ माँ के कब्ज की समस्या दूर होती है।
पारिव्रत जानु दूरसंचार(Parivratta Janu Sirsasana)
परिवृत्त जानु शीर्सासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें समतल जमीन पर एक मैट बिछा लें और मैट में बैठ जायें दोनों पैरों को आगे करके या दण्डासन की स्थिति में।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों में दो से तीन फिट का अन्तर रखें और अपने दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए इस पैर की एड़ी और पंजों को बाये पैर के आंतरिक जाँघ में स्पर्श करने का प्रयास करें।
- बाया पैर घुटने से सीधा और थोड़ा सा बाई तरफ रहेगा।
- सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाए।
- सांस छोड़ते हुए बाये हाथ से दाहिने घुटने या पिंडलियों के क्षेत्र को पकड़े जहां तक सम्भव हो और दाहिने हाथ को बाये पैर के पंजों की तरफ ले जाने का प्रयास करें यदि सम्भव है तो पकड़ भी सकते है नहीं तो जहां तक पहुँच पाये उस स्थान पर अपने आप को स्थिर रखने की कोशिश करें।
- इसके बाद अपने कमर से छाती और सिर को दाहिने कंधे की तरफ थोड़ा सा ऊपर की तरफ घुमाये और कुछ समय तक रोकने का प्रयास करें।
- गर्भवती महिलायें साँसों को सामान्य रखें।
- इसके बाद धीरे से वापस आ जायें पैरो को सीधा करें और वही स्टेप्स दूसरे पैर अर्थात बाये पैर को मोड़कर करें।
- इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक या दो बार दोहराया जा सकता है।
लाभ
- इस आसन से पेट की मासपेशीयाँ मजबूत होती है।
- इस आसन से पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ लचीली और मजबूत होती है साथ ही इन मांसपेशियों में ठीक से ब्लड फ्लो पहुचता है जिससे ये मांसपेशियाँ ठीक से कार्य करती है और प्रसव काल में सामान्य प्रसव के लिए सहायक सिद्ध होती है तथा प्रसव वेदन को कम करती है।
- यह आसन पेट और कमर के निचले हिस्से में ब्लड फ्लो ठीक करता है जो गर्भवती माँ के साथ साथ गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए उपयोगी माना गया है।
- यह आसन पैर को लचीला और मजबूत बनाता है।
- यह आसन हमारे पाचन शक्ति को बढ़ाता है और कब्ज को ठीक करता है।
- गर्भवती महिलाओं के मेरुदण्ड के खिचाव , अकड़न और दर्द को ठीक करने में मदद करता है।
नोट- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास पहली तिमाही में न करें।
अर्ध भूनमन आसन(Ardh bhunaman Asana)
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम समतल जमीन पर एक मैट बिछा लें।
- इस मैट पर बैठ जायें, दोनों पैरों को सामने की तरफ रखें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों में तीन से साढ़े तीन फिट का अन्तर रखें, दोनों पैरों के घुटने सीधे रहेंगे, दोनों एड़ी जमीन से स्पर्श करेंगी और दोनों पंजे आकाश की ओर होंगे।
- ध्यान रखें इस आसन को करने के लिए कुसन का उपयोग हिप्स के नीचे किया जा सकता है जिससे आसन करने में आसानी होगी।
- अब दोनों हाथों को आकाश की ओर सांस भरते हुए खींचें और सांस छोड़ते हुए आगे झुकते हुए यदि संभव है तो अपने दोनों पैरों के पंजे या घुटने पकड़े जीतना आपके लिये संभव हो अनावश्यक अधिक दबाव न दें।
- ध्यान रखें कि पेट दोनों जंघा के बीच में इस प्रकार रखना है कि पेट पर दबाव न पड़े।
- सांस सामान्य रखें और कुछ समय तक रोके इसके बाद सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर पूर्वत खींचे और फिर हाथों को विश्राम की अवस्था में छोड़ दें तथा कुछ समय अपने आप को आरामदायक अवस्था में छोड़ दें।
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक से दो बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन को करने से गर्भवती महिलाओं को कब्ज से राहत मिलती है।
- पेट की मांसपेशियाँ मजबूत होती है।
- इस आसन के अभ्यास से पाचन शक्ति बड़ती है।
- यह आसन जाँघ, आंतरिक जंघा, जंघा मूल, पिंडलियों, हिप्स, पेट के निचले हिस्से की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाता है।
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के पेल्विस क्षेत्र की मसोएशियाँ मजबूत और लचीली होती है साथ ही इन मसोएशियों में रक्त संचार ठीक से होता है जो सामान्य प्रसव में उपयोगी साबित होता है।
- यह आसन भूख को बदता है।
- इस आसन को करने से स्पाइन मजबूत और लचीली होती है।
नोट- ध्यान रखें गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास में पेट पर दबाव न दें उतना ही आगे शरीर को झुकायें जहां तक पेट पर दबाव न पड़े।
परिवृत्त मेरुवक्रासन(Parivratt Meruvakrasana)
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम समतल जमीन पर एक मैट बिछा लें।
- इस मैट पर बैठ जायें, दोनों पैरों को सामने की तरफ रखें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों में तीन से साढ़े तीन फिट का अन्तर रखें, दोनों पैरों के घुटने सीधे रहेंगे, दोनों एड़ी जमीन से स्पर्श करेंगी और दोनों पंजे आकाश की ओर होंगे।
- ध्यान रखें इस आसन को करने के लिए कुसन का उपयोग हिप्स के नीचे किया जा सकता है जिससे आसन करने में आसानी होगी।
- अब दोनों हाथों को आकाश की ओर सांस भरते हुए खींचें और सांस छोड़ते हुए अपना दाहिना हाथ कमर की दाहिनी तरफ दाहिनी जंघा के बाहर या घुटने पर रखें और अपने शरीर को कमर से दाहिनी तरफ मोड़ें जितना सम्भव हो।
- ध्यान दे शरीर को इतना ही मोड़ें की आपके पेट में दबाव उत्पन्न न हो।
- इस आसन को करते समय दृष्टि सामने की तरफ बनाने रखें।
- इस अभ्यास में बया हाथ ऊपर की तरफ सिर के नजदीक सीधा होगा।कमर से संपूर्ण ऊपरी हिस्सा दाहिनी तरफ मुड़ेगा।
- कुछ समय तक इस स्थिति में रोके सांस सामान्य रखें।
- इसके पश्चात यह सारे स्टेप्स दूसरी तरफ ( बाई ओर) दोहराएँ।
- सांस सामान्य रखें और कुछ समय तक रोके इसके बाद सांस भरते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर पूर्वत खींचे और फिर हाथों को विश्राम की अवस्था में छोड़ दें तथा कुछ समय अपने आप को आरामदायक अवस्था में छोड़ दें।
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक से दो बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन को करने से गर्भवती महिलाओं को कब्ज से राहत मिलती है।
- पेट की मांसपेशियाँ मजबूत होती है।
- इस आसन के पेट की साइड मसल्स मजबूत और लचीली बनती है।
- इस आसन के अभ्यास से पाचन शक्ति बड़ती है।
- यह आसन जाँघ, आंतरिक जंघा, जंघा मूल, पिंडलियों, हिप्स, पेट के निचले हिस्से की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत बनाता है।
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के पेल्विस क्षेत्र की मसोएशियाँ मजबूत और लचीली होती है साथ ही इन मसोएशियों में रक्त संचार ठीक से होता है जो सामान्य प्रसव में उपयोगी साबित होता है।
- यह आसन भूख को बदता है।
- इस आसन को करने से स्पाइन मजबूत और लचीली होती है।
गोमुखासन(Gomukhasana)
- इस आसन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें एक योगा मैट बिछा लें और बैठ जायें।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों को सामने की तरफ सीधा रखें।
- इसके बाद अपने बाये पैर को घुटने से इस तरह मोड़ें की बाये पैर की एड़ी दाहिने हिप्स में स्पर्श करे।
- अब दाहिने पैर को बाये पैर के ऊपर से इस प्रकार मोड़ें की दाहिने पैर की एड़ी बाई हिप्स में स्पर्श करे।
- कमर और गर्दन सीधी रखें, दृष्टि सामने की तरफ रखें।
- इसके पश्चात अपने दाहिने हाथ को सिर के ऊपर कोहनी से पीछे की तरफ ले जायें और बाये हाथ को कंधे के नीचे से पीछे की तरफ ले जाये, आपस में दोनों हाथों को पीछे से खींचकर पकड़ें।
- अपने दाहिने हाथ को इतना खींचे की दाहिने हाथ की कोहनी सिर के पीछे पहुँच जाये किन्तु अनावश्यक दबाव न दें जितना सम्भव हो उतना ही प्रयास करें।
- कुछ समय तक सांसों को सामान्य रखते हुए इस मुद्रा में रोक कर रखें।
- इसके पश्चात यह प्रक्रिया दूसरी तरफ दोहराएँ इस अवस्था में बया पैर ऊपर और दया पैर नीचे होगा तथा बाया हाथ ऊपर और दाहिना हाथ नीचे होगा कुछ समय के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाये।
- यह गोमुखासन का एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ इसको एक या दो बार गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन को करने से कंधों , गर्दन , सर्वाइकल का दर्द ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह आसन हमारी एकाग्रता बढ़ाता है।
- यह आसन कंधों और हाथों को मजबूत बनाता है।
- इस आसन से हाथ मजबूत होते है।
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के स्पाइन की आकृति ठीक होती है और मेरुदण्ड को सीधा रखने में सहायता मिलती है।
नोट- ध्यान रखें तीसरी तिमाही में गर्भवती महिलाओं का पेट बड़ा हो जाता है क्योंकि इस समय तक गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास हो जाता है इसीलिये गोमुखासन का अभ्यास वज्रासन या सुखासन में बैठकर करें पैरो को आराम दायक अवस्था में रखें केवल हाथों को आपस में गोमुख अवस्था में पीछे पकड़ें।
मेरु वक्रासन(Meru Vakrasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलाएँ सर्वप्रथम एक योगा मैट बिछा लें।
- इस मैट में कमर सीधी करके दंडासन में बैठ जायें, दोनों पैरों को सीधा सामने की तरफ रखें।
- अब अपने दाहिने पैर के घुटने को सीधा ऊपर की तरफ मोड़ें तथा एड़ी और पंजे दाहिने हिप्स के पास होंगे, ध्यान रखें गर्भवती महिलायें पैरों को ज्यादा नहीं मोड़ें उतना ही मोड़ें की आपके पेट में दबाव न पड़ें।
- बाया पैर सीधा रखें।
- अब अपने दाहिने हाथ से दाहिने पैर का टखना पकड़ें और सांस छोड़ते हुए अपने मेरुदण्ड को कमर से बायी तरफ घूमायें।
- कमर इतनी घुमाएँ की बाया कंधा पीछे की तरफ और दाहिना कंधा आगे की तरफ हो जाये।
- बाये हाथ को कमर के पीछे टिका के जमीन पर जिससे अभ्यास में आसानी हो जाये।
- अब सामान्य सांस के साथ कुछ समय तक इस अवस्था में बने रहें इसके बाद सांस भरते हुए पूर्वत अवस्था में आ जायें।
- अब सारे स्टेप्स दूसरी तरफ दोहराएँ ।दोनों तरफ सम्पन्न करने के बाद कुछ समय विश्राम करें दंडासन में, यह गोमुखासन का एक चक्र सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलाएँ अपनी क्षमतानुसार इस आसन का अभ्यास एक या दो चक्र में दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के कमर दर्द की समस्या में राहत मिलती है क्योंकि इस आसन से पर्याप्त मात्रा में स्पाइन स्ट्रेच हो जाती है और मेरुदण्ड पर ब्लड सर्कुलेट हो जाता है।
- यह गर्भस्थ महिला के पैर की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
- इससे कब्ज की समस्या ठीक होती है, पैंक्रियास को सक्रिय करता है जो हमारे पाचन तंत्र को मजबूत करता है।
- पेट की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली होती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं में गर्दन दर्द, सर्वाइकल की समस्या, कंधों का दर्द ठीक करने में सहायता मिलती है और साथ साथ इस अंगों को मजबूत बनाने में यह आसन मदद करता है।
नोट- ध्यान दें गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के दौरान तीसरी तिमाही में पेट अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इस समय गर्भस्थ शिशु का पूर्ण विकास हो जाता है तो पैरो को अन्दर की तरफ अधिक न मोड़ें नहीं तो पेट में दाबाव पड़ सकता है।इस आसन को करते समय पैर थोड़ा सा पेट के बाहर की तरफ रखें जिससे आसन को करने में आसानी रहेगी।
अर्ध उष्ट्रासन(Ardha Ushtrasana)
- इसके पश्चात सांस भरते हुए अपने दोनों घुटने के बल सीधा खड़े हो जाये और दोनों हाथों से पीछे कमर ,हिप्स या दोनों एड़ियों के भाग को पकड़ें और जितना सम्भव है कमर से पीछे की तरफ शरीर को झुकायें।
- दृष्टि पीछे की ओर रखें और सांस सामान्य रखें, दोनों कोहनी की दूरी आपस में कंधों के बराबर रखें।कुछ समय तक इस अवस्था में बने रहें इसके पश्चात सांस छोड़ते हुए पुनः वज्रासन में वापस आ जायें और विश्राम करें।
- यह अर्ध उष्ट्रासन का एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- कुछ समय तक विश्राम करने के बाद एक या दो चक्र में गर्भवती महिलाएँ अपनी क्षमतानुसार अभ्यास को दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन से हमारी कमर, गर्दन और कंधों के दर्द में राहत मिलती है।
- यह आसन हमारे पाचन क्रिया को ठीक करता है।
- इससे पेट की मांसपेशियों में खिंचाव और रक्त संचार ठीक से होता है।
- इससे पेट की मांसपेशियाँ मजबूत होती है।
- यह आसन गर्भस्थ महिलाओं के कंधे और स्पाइन की आकृति ठीक करने में मदद करता है।
शशांकासन(Shashankasana)
- गर्भवती महिलाएँ इस आसन के अभ्यास के लिये सबसे पहले एक योगा मैट बिछा लें, इसके पश्चात उस मैट पर अपने दोनों घुटनों को मोड़कर वज्रासन में बैठ जायें।
- ध्यान दें दोनों घुटनों में इतना अन्तर रखने की आगे झुकने पर पेट दोनों घुटनों के बीच में आ जाये और किसी प्रकार का पेट में दबाव न पड़े।
- अब दोनों घुटनों में अन्तर करके अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर आकाश की तरफ खींचें, कमर से ऊपर पूरा शरीर सीधा रखें।
- अब सांस छोड़ते हुए आगे झुकें और दोनों हाथों को आगे जमीन पर टिका दें, हाथों को कोहनी से सीधा रखें।
- अब अपने सिर को नीचे जमीन पर टीकाएँ यदि सम्भव है तो नहीं तो अर्ध स्थिति में भी रख सकते है यह अपने पेट के ऊपर निर्भर है कि पेट का अकार कितना है।
- हिप्स को एड़ी से थोड़ा सा उठा कर रखें जिससे पेट पर दबाव न पड़े।
- इस स्थिति में सांस सामान्य रखें।
- कुछ समय इस अवस्था में रखने के बाद धीरे धीरे हाथों का सहयोग लेकर जमीन से वापस अपनी पूर्वत अवस्था में आ जाये, यह हमारा एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।कुछ समय के लिए विश्राम करें इसके बाद इसको गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार एक या दो बार अभ्यास को दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से शारीरिक और मानसिक थकान दूर होती है।
- यह आसन हमारे पेट की मांसपेशियों को मजबूत और लचीला बनाता है।
- पेल्विस क्षेत्र को लचीला और मजबूत बनाता है।
- गर्भवती महिलाओं की कब्ज की समस्या को ठीक करने में सहायता करता है।
- रक्त संचार पेट, मस्तिष्क और पैरों में ठीक से होता है।
- यह आसन गर्भस्थ शिशु के विकास में सहायक माना गया है।
- पेट के आंतरिक अंगों में ब्लड के फ्लो को पहुचता है जो गर्भस्थ शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास में उपयोगी माना गया है।
- यह आसन आँतों को सक्रिय करता है।
- इस आसन से पाचन शक्ति बड़ती है।
- इस आसन से गर्भवती महिलाओं के डायफ्राम और फेफड़ों में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में पहुँचती है जिससे शरीर को ऑक्सीजन अधिक मिलती है यह ऑक्सीजन ब्लड के माध्यम से पूरे शरीर में जाती है जिससे शरीर को पोषण प्राप्त होता है और शरीर की कार्यक्षमता बढ़ती है जो गर्भस्थ शिशु और गर्भवती माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
एक हस्त पाद प्रसारित उष्ट्रासन(Ek Hast Pad Prasarit Ushtrasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योग मैट बिछा लें और उसमे अपने दोनों घुटनों को मोड़कर वज्रासन में बैठ जायें।
- इसके पश्चात अपने शरीर को घुटनों के बल खड़े हो जाये बाये पैर को आगे की तरफ घुटनों से सीधा कर ले और दाहिने पैर को मोड़ कर रखें।
- इसके बाद सांस भरते हुए अपने शरीर को पीछे मोड़ते हुए दाहिने हाथ से दाहिने पैर का टखना या एड़ी पकड़ें और हिप्स को ऊपर की तरफ खींचें जिससे संपूर्ण शरीर एक सीध में हो सके।
- इसके बाद अपने बाये हाथ को सिर के पास सीधा रखें।
- इसके बाद कुछ समय तक इस अवस्था में अपने आप को रोककर रखें।इसके बाद धीरे धीरे अपने हिप्स को नीचे करके पैर को मोड़ें और अपने पूर्वत स्थिति में वापस आ जाये।
- इसके बाद दूसरी तरफ से ये सभी स्टेप्स को दोहरायें, दोनों तरफ दायी और बाई ओर से सम्पन्न होने के पश्चात कुछ समय तक अपने आप को विश्राम की अवस्था में रखें, इसके बाद इस आसन को अपनी क्षमतानुसार एक या दो बार किया जा सकता है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से कमर की मांसपेशियाँ मजबूत और दुरुस्त होती है।
- इसके अभ्यास से पैर और हाथों की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है।
- यह आसन हमारे शारीरिक सन्तुलन को बनाने में मदद करता है।
नोट- इस आसन का अभ्यास गर्भवती महिला सावधानीपूर्वक करें और योग गुरु की देखरेख में अभ्यास करें अन्यथा सन्तुलन बिगड़ने का खतरा हो सकता है।
चन्द्रासन(Chandrasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें एक योग मैट बिछा ले उस मैट पर वज्रासन में बैठ जायें।
- इसके बाद अपने दोनों घुटनों के बल खड़े हो जाये, दोनों हाथों को आगे रखें। •अब दाहिना पैर को दोनों हाथों के बीच में आगे की तरफ रखें, बायाँ पैर पीछे बिल्कुल घुटने से सीधा रखने का प्रयास करें।
- अब सांस भरते हुए दाहिने पैर का सहयोग ले और दोनों हाथों को ऊपर की तरफ उठाए और आपस में दोनों हाथों को नमस्कार मुद्रा में रखें, कमर से शरीर को पीछे की तरफ मोड़ें, यह आकृति चंद्रमा के समान देखने में लगेगी, इस स्थिति में कुछ समय तक रोककर रखें।
- गर्भवती महिलायें इस स्थिति में सांस सामान्य रखें।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए धीरे से हाथों को नीचे जमीन पर रखें और बायें पैर को आगे लायें दोनों हाथों के बीच में और बायें पैर से भी सारे स्टेप्स करें जो दाहिने से किए थे।
- इसके पश्चात पुनः वज्रासन में बैठ जाए यह हमारा एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस अभ्यास को सावधानीपूर्वक एक या दो बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के अगले हिस्से को अच्छा खिंचाव मिलता है।
- जाँघ , घुटने, आंतरिक जाँघ, पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीला होती है।
- यह कमर दर्द को ठीक करने में सहायक है।
- पेट के निचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेट करने में मदद करता है।
नोट- गर्भवती महिलाएँ पहली तिमाही में चंद्रासन का अभ्यास न कर।
उत्थित पार्श्वकोणासन(Uttha Parsvakonasana)
- इस आसन को करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योगा मैट बिछा लें, इसके बाद उस मैट में खड़े हो जाये।
- इसके पश्चात अपने दोनों पैरों में तीन से चार फिट का अन्तर रखें।
- अब दाहिने पैर के पंजे को दाहिनी तरफ घुमाएँ, दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए अपने कंधे के बराबर सीधा रखें।
- अब अपने दाहिने पैर को नब्बे डिग्री के एंगल में मोड़ें और अपने शरीर को दाहिनी तरफ झुककर दाहिने हाथ को दाहिने पैर के पीछे रखें।पेट और छाती का हिस्सा सामने की तरफ होगा और शरीर का दाहिना हिस्सा, दाहिनी जंघा से स्पर्श करें।बया हाथ हवा में आकाश की तरफ हो, बाये पैर को पीछे की तरफ खींचे जिससे संपूर्ण शरीर एक सीध में आ सके।
- ध्यान दे गर्भवती महिलायें पेट पर दबाव न दें इस आसन को करते समय पेट आगे की ओर रखें।अभ्यास के दौरान सांस सामान्य रखें।
- इस स्थिति में कुछ समय तक रोकें इसके बाद धीरे धीरे पैर सीधा कर लें और सीधा खड़े हो जाये।
- इसके पश्चात अपने बायें पैर के पंजे को बाई तरफ घुमाए और बाई तरफ से सारे स्टेप्स करें जो दाहिने से किए थे।दोनों तरफ से सम्पन्न होने के पश्चात धीरे से वापस आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार एक या दो चक्र में अभ्यास कर सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं के जाँघ, आंतरिक जाँघ, ग्रोइन, पेल्विस क्षेत्र, हैमिट्रिंग , घुटना, पेट का निचला हिस्सा, पिंडलियाँ,कूल्हों, कंधों, छाती और रीड की हड्डी में खिचाव उत्पन्न करता है।
- यह कमर दर्द से राहत दिलाता है खासतौर से दूसरे तिमाही में।
- पेट के निचले हिस्से में रक्त संचार करता है।
- कब्ज को ठीक करता है साथ ही पाचन क्रिया मजबूत करने में सहायता करता है।
- शरीर की स्टेमिना बढ़ाता है।
- यह आसन गर्भवती महिलाओं के पैरों, घुटनों, जाँघ, पिंडलियों को मजबूत और ताकतवर बनाता है।
नोट- ध्यान दें गर्भवती महिलायें पहली तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
मार्जरी आसन(Cat Cow Pose)
मार्जरी आसन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें सबसे पहले फर्श में एक योगा मैट, कार्पेट,चटाई या दरी बिछा दें।
- बिछे हुए मैट पर अपने घुटनों को मोड़कर कर बैठ जाए इसमें दाहिने पैर(right leg) की एड़ी(heel),दाहिने नितंब(hip) पर और बायें पैर(left leg) की एड़ी(heel),बायें नितंब(hip) पर स्पर्श करें, यह मुद्रा वज्रासन की स्थिति मानी जाती है।
- अब नितंबों को ऊपर उठाए और घुटनों के बल खड़े हो जायें।
- आगे झुकें और दोनों हाथों को अपने कंधों के नीचे मैट पर सपाट रखें।
- इसमें उँगलियाँ आगे की तरफ होना चाहिए और हाथ घुटनों के सीध में रखें,हाथ और जंघा(thigh)फर्श से लंबवत होना चाहिए।
- दोनों हाथों की दूरी कंधों(shoulders)के बराबर होना चाहिए।
- अपने दोनों घुटनों को हिप्स जॉइंट से थोड़ा सा अधिक अन्तर रखें।
- आपके दोनों हाथ(arms) और कोहनी(elbows) सीधे होना चहिये।
- अपने दोनों घुटने और ऊपर की तरफ नितंब का भाग एक सीध में नब्बे डिग्री का कोण बनना चाहिए।
- कोसिस करें कि हाथ और घुटने एक सीध में रहें यदि आप असहेज महसूस कर रहे हो तो इस स्थिति में घुटनों में थोड़ा फासला अपने सुविधानुसार रखा जा सकता है।
- आपकी छाती फर्श के समानन्तर होना चाहिए,इस मुद्रा की अकृति बिल्ली के समान दिखाई देना चाहिए।
- यह प्रारंभिक अवस्था मानी गई है।
- अब दोनों हाथों और घुटनों में दबाव डालें, श्वास भरते हुए अपने सिर और नितम्बों(hips)को ऊपर की ओर खींचे साथ साथ रीड की हड्डी को नीचे की तरफ दबाएँ ताकि पीठ अवतल हो जाये
- इस स्थिति में पेट को पूरा फैलाए ,फेफड़ों और डायफ्रॉम अधिकतम मात्रा में हवा से भरें।
- इस स्थिति में कुछ समय के लिये सांस रोकें।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए सिर और नितंब को नीचे की तरफ करें और स्पाइन को ऊपर की तरफ खींचे,सांस छोड़ने के अन्त में पेट को अन्दर करे।
- ध्यान दें गर्भवती महिलायें पेट पर अधिक दबाव न दें।
- इस अवस्था में सिर हमारे दोनों हाथों के बीच जाँघों की ओर होगा।
- रीड की हड्डी के आर्च और पेट के थोड़ा सा संकुचन पर जोर देते हुए कुछ समय के लिये सांस को रोके किन्तु गर्भावस्था में महिलायें पेट पर अधिक दबाव नहीं दे सकती इसीलिए पेट को अधिक न खींचें।
- फिर सांस भरते हुए पूर्वत अवस्था में वापस आ जायें।
- यह हमारा एक चक्र संपन्न हुआ।
- इसको गर्भवती महिलायें अपनी सुविधानुसार आठ से दस चक्र में अभ्यास कर सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं की स्पाइन लचीली बनती है।
- इस आसन से कमर का दर्द ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह आसन पेट की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत करता है साथ ही पेट के सभी अंगों में रक्त कार्क्यूलेट करता है।
- गर्दन, कंधे, हाथ, पैर और घुटनों की मजबूती बढ़ाता है।
- पेट के निचले हिस्से को मजबूत और स्वस्थ करने में मदद करता है।
- कब्ज को ठीक करता है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
टाइगर पोज़ (व्याघ्रासन)
- सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिये मैट पर वज्रासन की स्थिति में बैठ जायें।
- इसके बाद मार्जरी-आसन (बिल्ली-गाय मुद्रा) में आ जायें और आगे की ओर देखें।
- अपने दोनों हाथों को सीधे कंधों के नीचे रखें।
- दोनों पैरों के घुटने हिप जॉइंट के नीचे या थोड़ा सा अन्तर करके रख ले जिससे पेट पर दबाव न आए, पेट का निचला हिस्सा दोनों जाँघों के बीच में आराम से आ जाये बिना किसी दबाव के।
- अपने दाहिने पैर को ऊपर और पीछे फैलाते हुए सीधा करें।
- सामने देखें और सांस भरते हुए अपने बाये हाथ को कंधे के बराबर सीधा सामने की तरफ खींचे, हाथ कोहनी से बिल्कुल सीधा होगा।
- गर्भवती महिलायें इस स्थिति में कुछ देर तक अपनी साँसों को सामान्य रखें और आसन को स्थिर रखने का प्रयास करें।
- इसके पश्चात अपने बाये हाथ को और दाहिने पैर के घुटने को नीचे जमीन पर रखें।
- अब इसी प्रकार दूसरे पैर से समस्त चरणों को दोहराएं।
- यह व्याघ्रासन का एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास आठ से दस चक्र में कर सकती है
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से गर्भवती महिलाओं की स्पाइन लचीली बनती है।
- इस आसन से कमर का दर्द ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह आसन पेट की मांसपेशियों को लचीला और मजबूत करता है साथ ही पेट के सभी अंगों में रक्त कार्क्यूलेट करता है।
- गर्दन, कंधे, हाथ, पैर और घुटनों की मजबूती बढ़ाता है।
- पेट के निचले हिस्से को मजबूत और स्वस्थ करने में मदद करता है।
- कब्ज को ठीक करता है और पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
वीर भद्रासन (Veer Bhadrasana)1
वीर भद्रासन
- इस आसन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक मैट बिछा लें और उसमे सीधे खड़े हो जाये ।
- अब अपने दाहिने पैर को तीन से चार फिट आगे की तरफ रखें, बाया पैर पीछे स्थिर रखें।
- इसके बाद अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए सिर के ऊपर आपस में जोड़ें या नमस्कार मुद्रा बनायें दोनों हाथ कोहनी से सीधे रहेंगे तथा सामने की तरफ देखें , कमर से ऊपर का हिस्सा सीधा रहेगा। सांस छोड़ें और अपने दाहिने घुटने को नब्बे डिग्री तक मोड़ें, इसे अपने टखने के ऊपर रखें, ध्यान रखें घुटना इतना ही मोड़ें की पंजे के आगे न जाये। मुद्रा में स्थिरता प्राप्त करने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो अपने पैरों और टाँगों को थोड़ा सा हिलाएँ।
- इस अवस्था में पेट और छाती का हिस्सा सामने की तरफ रहेगा जिस दिशा में अपना दाहिना घुटना है।
- कुछ समय तक इस स्थिति में अपने आपको स्थिर रखें।
- इसके पश्चात धीरे धीरे अपने दाहिने पैर को पीछे खींचे और पूर्वत अवस्था में आ जाये।
- इसके बाद बाँया पैर सामने की तरफ ले जायें और दाहिना पैर पीछे व्यवस्थित रखें।
- सारे स्टेप्स करें जो दाहिने पैर से किए थे।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इसको एक या दो चक्र में अपनी सुविधानुसार दोहरा सकती है।
वीर भद्रासन( Veer Bhadrasana)२
- इस आसन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक मैट बिछा लें और उसमे सीधे खड़े हो जाये ।
- अब अपने दाहिने पैर को तीन से चार फिट आगे की तरफ रखें, बाया पैर पीछे स्थिर रखें।
- इसके बाद अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाते समय अपने कंधों को नीचे रखें तथा कंधों के बराबर हाथों को उठाये दाहिना हाथ आगे की तरफ और बाया हाथ पीछे की तरफ होगा तथा अपनी गर्दन को लंबा रखें ताकि वे फर्श के समानांतर हों। सांस छोड़ें और अपने दाहिने घुटने को नब्बे डिग्री तक मोड़ें, इसे अपने टखने के ऊपर रखें। मुद्रा में स्थिरता प्राप्त करने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो अपने पैरों और टाँगों को थोड़ा सा हिलाएँ।
- कमर से शरीर का ऊपरी हिस्सा सीधा रहेगा , दोनों हाथ सामने की तरफ कंधों के बराबर रखें एवं दृष्टि सामने की तरफ पेट का हिस्सा थोड़ा सा बाये घूमेगा।
- कुछ समय तक इस स्थिति में अपने आपको स्थिर रखें।
- इसके पश्चात धीरे धीरे अपने दाहिने पैर को पीछे खींचे और पूर्वत अवस्था में आ जाये।
- इसके बाद बाँया पैर सामने की तरफ ले जायें और दाहिना पैर पीछे व्यवस्थित रखें।
- सारे स्टेप्स करें जो दाहिने पैर से किए थे।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इसको एक या दो चक्र में अपनी सुविधानुसार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से पैर की मांसपेशियाँ मजबूत होती है।
- इस आसन से जंघा , घुटना, अन्तरित जंघा, पेल्विस क्षेत्र का हिस्सा मजबूत होता है।
- पेट का हिस्से की मांसपेशियाँ लचीली और मजबूत होती है।
- यह आसन सामान्य प्रसव के लिए सहायक है।
- इस आसन का अभ्यास दूसरी और तीसरी तिमाही के लिए उपयोगी माना गया है जो नॉर्मल डिलिवरी के लिये सहायक है।
नोट-ध्यान दे गर्भवती महिलायें पहली तिमाही में इस आसन का अभ्यास न करें।
सेतु बंधासन(Setu Bandhasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक मैट बिछाये, और अपने मैट पर लेट जाये , दोनों पैरों को सीधा रखें।इसके बाद अपने दोनों घुटनों को मोड़ों। अपनी एड़ियों को अपने नितम्बों के नजदीक लाएं जितना सम्भव है।
- जैसे ही आप टैलबोन को ऊपर की और उठाते हैं और नितम्बों को ऊपर उठाते हैं, सांस बाहर छोड़ें।
- अपनी जांघों और भीतरी पैरों को समानांतर रखें।
- अपनी उंगलियों को इंटरलॉक करें और अपने हाथों को अपने पेल्विस के नीचे रखें।
- जांघों को ऊपर उठाएं और फर्श तक समानांतर रखें।
- अपने घुटनों को एड़ी के ऊपर सीध में रखें।
- अपने छाती को ठोड़ी की ओर उठाएं।
- इस मुद्रा में अपने क्षमतानुसार कुछ सेकंड तक बने रह सकते हैं, साँसों को सामान्य रखें इस अवस्था में।
- आसन से बाहर आने के लिए सांस छोड़े और रीढ़ को धीरे धीरे नीचे लाएं।
- यह एक चक्र सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस अभ्यास को एक से दो बार अभ्यास किया जा सकता है।
लाभ
•इस आसन से कमर लचीली बनती है।
•इससे पैर की मासपेसियाँ मजबूत होती है।
•चेस्ट और पेट की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली होती है।
•इस आसन से जाँघ की आन्तरिक मसल्स मजबूत और लचीली बनती है।
उदराकर्षणासन(Udarakarshanasana)
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम एक योगा मैट बिछाये और उस मैट में पैर सीधा करने लेट जायें।
- अब दोनों हाथों को अपने कंधे के बराबर सीधा रखें।
- दोनों पैरों को घुटने से अन्दर की तरफ मोड़ें, दोनों पैरों की एड़ियाँ हिप्स के नजदीक ले जाने का प्रयास करें जितना सम्भव हो।
- दोनों पैरों में एक से डेढ़ फिट का आपस में अन्तर रख लें।इस स्थिति में सांस भरें।
- अब इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपने दोनों पैरों को दाहिनी तरफ कमर से मोड़ें और सिर को गर्दन से बाई तरफ मोड़ें जितना सम्भव हो वैसे पूर्ण स्थिति में दोनों घुटने दाहिनी तरफ और सिर को बाये कंधे की तरफ जमीन से स्पर्श कराने का प्रयास करें।
- इसके बाद सांस भरते हुए दोनों पैरों के घुटनों को मोड़ें हुए ऊपर लायें और सांस छोड़ते हुए बाई तरफ मोड़ें तथा सिर को दाहिनी तरफ ले जायें।इसके बाद पुनः पूर्वत अवस्था में आ जाये यह हमारा एक चक्र का अभ्यास हुआ, इसको गर्भवती महिलायें आठ से दस बार दोहरा सकती है।
लाभ
- इस आसन के अभ्यास से पेट की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली बनती है।
- यह आसन कब्ज को ठीक करने में मदद करता है।
- इस आसन से आँतों की क्रियाशीलता बड़ती है।
- यह पेट के निचले हिस्से और स्पाइन में रक्त संचार करता है।
- यह आसन गर्भवती महिलाओं की कमर दर्द की समस्या को ठीक करने में सहायक माना गया है।
- यह पाचन शक्ति को मजबूत करता है।
- इससे पैर, जाँघ, घुटने, गर्दन का दर्द ठीक होता है साथ ही इन अंगों में ब्लड सर्कुलेट होता है।
नोट- इस आसन का अभ्यास पहली तिमाही में न करें।
पवन मुक्तासन(Pawan Muktasana)
पवन मुक्तासन
- इस आसन के अभ्यास के लिये एक योगा मैट में सीधे लेट जायें, दोनों पैरों को सीधा रखें, हाथों को कमर के दोनों तरफ रखें और साँसो को सामान्य रखें।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपने दाहिने पैर को घुटने से मोड़ते हुए, दोनों हाथों से पकड़ें और पेट के बगल से छाती की तरफ खींचे, ध्यान दें पैर को इस प्रकार दाहिनी तरफ रखें कि पेट पर दबाव न आए।इस अवस्था में बाया पैर सीधा रहेगा।
- इसके बाद सांस भरते हुए अपने दाहिने पैर को सीधा करें और कुछ समय तक इसी अवस्था में रोकें।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए दूसरे पैर अर्थात बाए पैर को घुटने से मोड़ें और दोनों हाथों से पकड़ कर चेस्ट के पास ले जाये जो क्रिया आपने दाहिने तरफ से की थी उसी को बाई तरफ से दोहराएँ।इसके बाद सांस भरते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- अपनी सुविधानुसार गर्भवती महिलायें एक या दो चक्र दोहरा सकती है।
लाभ
- इसके अभ्यास से पेट के निचले हिस्से की मासपेशीयाँ मजबूत और लचीली बनती है।
- यह आसन हमारे पैर और घुटनों को लचीला बनाता है तथा इनमें ब्लड सर्कुलेट ठीक से करता है।
- अक्सर गर्भवती महिलाओं में क्रैंप्स की समय रहती है इस आसन से इस समस्या में आराम मिलता है।
- इसके अभ्यास से पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली बनती है। •गर्भवती महिलाओं में इस आसन को करने से कब्ज की समस्या दूर होती है।
- यह आसन पाचन शक्ति को मजबूत करता है।
- इस आसन से आँतों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
- यह आसन कमर, पैर, घुटनों के दर्द में लाभकारी माना गया है।
नोट- ध्यान दें गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास करते समय पेट पर दबाव न दें।
अर्ध हलासन(Ardha Halasana)
अर्ध हलासन
- इस आसन के अभ्यास के लिये एक योगा मैट में सीधे लेट जायें, दोनों पैरों को सीधा रखें, हाथों को कमर के दोनों तरफ रखें और साँसो को सामान्य रखें।
- इसके बाद सांस भरते हुए अपने दाहिने पैर को घुटने से सीधा रखते हुए नब्बे डिग्री ऊपर उठाए अर्थात आकाश की ओर तथा दोनों हाथों से पैर को पकड़ें, ध्यान दें पैर को इस प्रकार दाहिनी तरफ रखें कि पेट पर दबाव न आए।इस अवस्था में बाया पैर सीधा जमीन पर नीचे स्पर्श करेगा।
- इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपने दाहिने पैर को सीधा रखते हुए जमीन पर ले आयें और कुछ समय तक इसी अवस्था में रोकें।
- यह गर्भवती महिलाओं में क्रैंप्स ,अकड़न, ऐंठन की समस्या को ठीक करने में मदद करता है।
- इसके बाद सांस भरते हुए दूसरे पैर अर्थात बाए पैर को घुटने से सीधा रखते हुए नब्बे डिग्री पर रोकें और दोनों हाथों से पकड़ कर रखें जो क्रिया आपने दाहिने तरफ से की थी उसी को बाई तरफ से दोहराएँ।इसके बाद सांस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में वापस आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- अपनी सुविधानुसार गर्भवती महिलायें एक या दो चक्र दोहरा सकती है।
लाभ
- इसके अभ्यास से पेट के निचले हिस्से की मासपेशीयाँ मजबूत और लचीली बनती है।
- यह आसन हमारे पैर और घुटनों को लचीला बनाता है तथा इनमें ब्लड सर्कुलेट ठीक से करता है।
- इसके अभ्यास से पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीली बनती है।
- गर्भवती महिलाओं में इस आसन को करने से कब्ज की समस्या दूर होती है।
- यह आसन पाचन शक्ति को मजबूत करता है।
- इस आसन से आँतों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
- यह आसन कमर, पैर, घुटनों के दर्द में लाभकारी माना गया है।
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम अपने योगा मैट पर बायें करवट ले कर लेट जाये।बाये हाथ का सिर में टेक दें ताकि सन्तुलन बनाने में आसानी रहे।दोनों पैरों को सीधा रखें, कमर को थोड़ा सा पीछे की तरफ रखें ताकि आसन करते वक्त सरलता रहे।
- इसके बाद अपने दाहिने पैर को नब्बे डिग्री या जितना सम्भव हो उतना ऊपर आकाश की तरफ उठायें और दाहिने हाथ से पकड़ ले हाथ जहां तक पहुँच रहा हो पंजा या घुटना जो भी पकड़ सकें आसानी पूर्वक, दृष्टि सामने की तरफ रखें, गर्दन सीधा रखें
- इस आसन के दौरान सांस सामान्य रखें।
- कुछ समय तक इस आसन को रोकें, इसके बाद धीरे धीरे अपने दाहिने पैर को नीचे बाये पैर के ऊपर रखें जो प्रारंभिक अवस्था थी।
- अब बायें करवट ले कर लेट जाये और पहले वाली प्रक्रियाँ को दोहराएँ जो अपने दाहिने पैर से की थी और फिर वापस आ जाये।
- यह गर्भवती महिलाओं का एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- इस आसन का अभ्यास एक या दो बार दोहरा सकते है।
लाभ- इस आसन के अभ्यास से पैर के दर्द में राहत मिलती है।
- यह आसन पैर के क्रैम्प , अकड़न, ऐंठन को ठीक करने में मदद करता है जो की अक्सर गर्भावस्था में समस्या बनी रहती है महिलाओं को।
- इससे पैर की स्ट्रेचिंग खुलती है तथा पैर लचीला और मजबूत बनता है।
- यह पेल्विस क्षेत्र और ग्रोइन क्षेत्र को मजबूत तथा लचीला बनाता है जो नॉर्मल डिलिवरी के लिये आवश्यक है।
नोट- ध्यान दें गर्भवती महिलायें इस आसन का अभ्यास पहली तिमाही में न करें।
हनुमानासन(Hanumanasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम अपने योगा मैट पर बायें करवट ले कर लेट जाये।बाये हाथ का सिर में टेक दें ताकि सन्तुलन बनाने में आसानी रहे।दोनों पैरों को सीधा रखें, कमर को थोड़ा सा पीछे की तरफ रखें ताकि आसन करते वक्त सरलता रहे।
- इसके बाद अपने दाहिने पैर को नब्बे डिग्री या जितना सम्भव हो उतना ऊपर आकाश की तरफ उठायें और दाहिने हाथ से पकड़ ले हाथ जहां तक पहुँच रहा हो पंजा या घुटना जो भी पकड़ सकें आसानी पूर्वक, दृष्टि सामने की तरफ रखें, गर्दन सीधा रखें
- इस आसन के दौरान सांस सामान्य रखें।
- कुछ समय तक इस आसन को रोकें, इसके बाद धीरे धीरे अपने दाहिने पैर को नीचे बाये पैर के ऊपर रखें जो प्रारंभिक अवस्था थी।
- अब बायें करवट ले कर लेट जाये और पहले वाली प्रक्रियाँ को दोहराएँ जो अपने दाहिने पैर से की थी और फिर वापस आ जाये।
- यह गर्भवती महिलाओं का एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- इस आसन का अभ्यास एक या दो बार दोहरा सकते है।
- इस आसन के अभ्यास से पैर के दर्द में राहत मिलती है।
- यह आसन पैर के क्रैम्प , अकड़न, ऐंठन को ठीक करने में मदद करता है जो की अक्सर गर्भावस्था में समस्या बनी रहती है महिलाओं को।
- इससे पैर की स्ट्रेचिंग खुलती है तथा पैर लचीला और मजबूत बनता है।
- यह पेल्विस क्षेत्र और ग्रोइन क्षेत्र को मजबूत तथा लचीला बनाता है जो नॉर्मल डिलिवरी के लिये आवश्यक है।
हनुमानासन(Hanumanasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योगा मैट में वज्रासन में बैठ जायें और अपनी साँसों को सामान्य करें।
- इसके पश्चात दोनों घुटनों के बल खड़े हो जाये और अपने दाहिना पैर को आगे की तरफ रखें
- हथेलियों को जमीन पर दाएं पंजे के दोनों ओर रखें।
- धीरे-धीरे दाएं पंजे को आगे बढ़ाएं। साथ ही शरीर के भार को हाथों के सहारे संभालें।
- दाएं पंजे को अधिक से अधिक आगे की ओर व बाएं पंजें को अधिक से अधिक पीछे की ओर ले जाते हुए बिना जोर लगाए पैरों को सीधा करने का प्रयास करें।
- अंतिम अवस्था में, कूल्हों को नीचे लाएं, जिससे कि कूल्हे और दोनों पैर एक सीध में जमीन पर आ जाएं।
- आंखें बंद कर लें, शरीर को आराम दें और हाथों को जोड़ते हुए पीछे की ओर लेकर जाएं।
- ध्यान दें गर्भवती महिलायें उतना ही अपने आप को खीचे जितना सम्भव हो।
- अपनी क्षमता के अनुसार इस अवस्था को बनाये रखें।
- फिर पूर्वत अवस्था में धीरे-धीरे वापस आ जाएं।
- इसके पश्चात पिछले वाले बायें पैर को आगे की तरफ लाएं और दाहिने पैर को पीछे की तरफ ले जायें और इस आसन के सभी दाहिने पैर के स्टेप्स को दोहराएं।
- साँसो को सामान्य रखें, इसके बाद धीरे धीरे पूर्वत अवस्था में। वापस आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक या दो चक्र में किया जा सकता है।
लाभ- इस आसन के अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के अगले हिस्से को अच्छा खिंचाव मिलता है।
- जाँघ , घुटने, आंतरिक जाँघ, पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीला होती है।
- यह आसन तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह आसन शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
- यह कमर दर्द को ठीक करने में सहायक है।
- इस आसन के अभ्यास से सामान्य प्रसव में सहायक माना गया है तथा प्रसव वेदना को कम करने में सहायक माना गया है।
- पेट के निचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेट करने में मदद करता है।
नोट- गर्भवती महिलाएँ पहली तिमाही में हनुमानासन का अभ्यास न करें।राजकपोतासन(Rajkapotasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलाएँ सर्वप्रथम समतल जमीन पर योग मैट बिछाकर घुटनों के बल खड़े हो जाएं और फिर आगे की तरफ झुकते हुए हाथों को जमीन पर रख दें तथा बाजुओं को सीधा रखें।
- इसके पश्चात दाहिने घुटने को आगे दाईं कलाई तक ले जाएं फिर दाएं पैर को बाएं घुटने के आगे रख दें और दाएं घुटने को जमीन के साथ सटा दें.
- अब धीरे-धीरे बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं और आराम से नीचे बैठ जाएं।
- फिर लंबी गहरी सांस लेते हुए बाएं पैर को घुटने से मोड़ें।
- इसके बाद जितना संभव हो सके सिर को पीछे की ओर ले जाएं, ताकि सिर पैर के नजदीक आ सके ।
- अब हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और कोहनियों से मोड़ते हुए बाएं पैर को बायी कोहनी के बीच में फसाएँ और दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर सिर के ऊपर से आपस में दोनों हाथों को पकड़ें और सिर को पीछे की तरफ घुमाएँ।
- कुछ देर इसी अवस्था में रहें और सामान्य गति से सांस लेते रहें।
- इसके पश्चात धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आ जाएं।
- अब इस प्रकार दूसरे पैर से सारी प्रक्रिया को दोहराएँ।
- इसके बाद धीरे से पूर्वत अवस्था में वापस आ जायें।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलाएँ अपनी क्षमतानुसार इस आसन का अभ्यास एक या दो चक्र में सम्पन्न कर सकती है।
लाभ- इस आसन के अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के पिछले हिस्से को अच्छा खिंचाव मिलता है।
- जाँघ , घुटने, आंतरिक जाँघ, पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीला होती है।
- यह आसन तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह कमर दर्द को ठीक करने में सहायक है।
- इस आसन के अभ्यास से सामान्य प्रसव में सहायक माना गया है तथा प्रसव वेदना को कम करने में सहायक माना गया है।
- पेट के निचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेट करने में मदद करता है।
नोट- गर्भवती महिलाएँ पहली तिमाही में राजकपोतासन का अभ्यास न करें।
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योगा मैट में वज्रासन में बैठ जायें और अपनी साँसों को सामान्य करें।
- इसके पश्चात दोनों घुटनों के बल खड़े हो जाये और अपने दाहिना पैर को आगे की तरफ रखें
- हथेलियों को जमीन पर दाएं पंजे के दोनों ओर रखें।
- धीरे-धीरे दाएं पंजे को आगे बढ़ाएं। साथ ही शरीर के भार को हाथों के सहारे संभालें।
- दाएं पंजे को अधिक से अधिक आगे की ओर व बाएं पंजें को अधिक से अधिक पीछे की ओर ले जाते हुए बिना जोर लगाए पैरों को सीधा करने का प्रयास करें।
- अंतिम अवस्था में, कूल्हों को नीचे लाएं, जिससे कि कूल्हे और दोनों पैर एक सीध में जमीन पर आ जाएं।
- आंखें बंद कर लें, शरीर को आराम दें और हाथों को जोड़ते हुए पीछे की ओर लेकर जाएं।
- ध्यान दें गर्भवती महिलायें उतना ही अपने आप को खीचे जितना सम्भव हो।
- अपनी क्षमता के अनुसार इस अवस्था को बनाये रखें।
- फिर पूर्वत अवस्था में धीरे-धीरे वापस आ जाएं।
- इसके पश्चात पिछले वाले बायें पैर को आगे की तरफ लाएं और दाहिने पैर को पीछे की तरफ ले जायें और इस आसन के सभी दाहिने पैर के स्टेप्स को दोहराएं।
- साँसो को सामान्य रखें, इसके बाद धीरे धीरे पूर्वत अवस्था में। वापस आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास पूर्ण हुआ।
- इस आसन का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार एक या दो चक्र में किया जा सकता है।
- इस आसन के अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के अगले हिस्से को अच्छा खिंचाव मिलता है।
- जाँघ , घुटने, आंतरिक जाँघ, पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीला होती है।
- यह आसन तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह आसन शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाता है।
- यह कमर दर्द को ठीक करने में सहायक है।
- इस आसन के अभ्यास से सामान्य प्रसव में सहायक माना गया है तथा प्रसव वेदना को कम करने में सहायक माना गया है।
- पेट के निचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेट करने में मदद करता है।
राजकपोतासन(Rajkapotasana)
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलाएँ सर्वप्रथम समतल जमीन पर योग मैट बिछाकर घुटनों के बल खड़े हो जाएं और फिर आगे की तरफ झुकते हुए हाथों को जमीन पर रख दें तथा बाजुओं को सीधा रखें।
- इसके पश्चात दाहिने घुटने को आगे दाईं कलाई तक ले जाएं फिर दाएं पैर को बाएं घुटने के आगे रख दें और दाएं घुटने को जमीन के साथ सटा दें.
- अब धीरे-धीरे बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं और आराम से नीचे बैठ जाएं।
- फिर लंबी गहरी सांस लेते हुए बाएं पैर को घुटने से मोड़ें।
- इसके बाद जितना संभव हो सके सिर को पीछे की ओर ले जाएं, ताकि सिर पैर के नजदीक आ सके ।
- अब हाथों को ऊपर की ओर उठाएं और कोहनियों से मोड़ते हुए बाएं पैर को बायी कोहनी के बीच में फसाएँ और दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर सिर के ऊपर से आपस में दोनों हाथों को पकड़ें और सिर को पीछे की तरफ घुमाएँ।
- कुछ देर इसी अवस्था में रहें और सामान्य गति से सांस लेते रहें।
- इसके पश्चात धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आ जाएं।
- अब इस प्रकार दूसरे पैर से सारी प्रक्रिया को दोहराएँ।
- इसके बाद धीरे से पूर्वत अवस्था में वापस आ जायें।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलाएँ अपनी क्षमतानुसार इस आसन का अभ्यास एक या दो चक्र में सम्पन्न कर सकती है।
- इस आसन के अभ्यास से संतुलन की भावना विकसित होती है और शरीर के पिछले हिस्से को अच्छा खिंचाव मिलता है।
- जाँघ , घुटने, आंतरिक जाँघ, पेल्विस क्षेत्र की मांसपेशियाँ मजबूत और लचीला होती है।
- यह आसन तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह कमर दर्द को ठीक करने में सहायक है।
- इस आसन के अभ्यास से सामान्य प्रसव में सहायक माना गया है तथा प्रसव वेदना को कम करने में सहायक माना गया है।
- पेट के निचले हिस्से में ब्लड सर्कुलेट करने में मदद करता है।
बद्ध कोणासन(Baddha Konasana)
- इस आसन का अभ्यास करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योगा मैट पर नीचे सीधे लेट जायें, दोनों पैरों को सीधा रखें और दोनों हाथों को कमर के दोनों तरफ सीधा रखें।
- ध्यान दें गर्भवती महिलाओं को यदि सीधा लेटने में मुस्किल हो रहा हो तो एक कमर के नीचे कुसन रख सकती है जिससे आसन करने में आसानी रहेगी।
- इसके बाद अपने दोनों पैरों को घुटने से अन्दर की तरफ मोड़ें, दोनों पैरों की एड़ियाँ हिप्स के पास ले जाने का प्रयास करें यदि सम्भव हो तो।
- दोनों पैरों के पंजे और एडियाँ आपस में स्पर्श करेंगी, अब दोनों घुटनों में आपस में अन्तर बढ़ायें अर्थात दाहिना घुटना कमर की दाहिनी तरफ जमीन की तरफ और बाया घुटना कमर की बाई तरफ जमीन की ओर ले जाने का प्रयास करें।
- दोनों घुटनों को दाहिनी और बाई तरफ जमीन में स्पर्श करने कि प्रयास करें किन्तु जितना सम्भव हो उतना ही दोनों पैरों को खींचे अनावश्यक अधिक तनाव न दें।
- अब दोनों हाथों को दोनों जाँघ पर दाहिने हाथ को दाहिनी जाँघ और बाएँ हाथ को बायीं जाँघ पर रखें तथा दोनों हाथों की कोहनी मोड़कर जमीन में स्पर्श कराने की कोशिश करें।
- इस अवस्था में सांस सामान्य होगी।
- कुछ समय तक इस स्थिति में अपने आपको रोकें इसके बाद धीरे धीरे पैर सीधा करें और अपनी पूर्वत अवस्था में आ जाये।
- यह एक चक्र का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस आसन के अभ्यास का समय अपनी क्षमतानुसार बढ़ाया जा सकता है।
लाभ
- गर्भवती महिलाओं के लिए यह आसन बहुत ही हितकारी और उपयोगी माना गया है।
- यह आसन मुख्यतः जाँघ, आन्तरिक जाँघ, पेल्विक और ग्रोइन क्षेत्र में प्रभाव डालता है इन अंगों को लचीला और मजबूत बनाता है साथ ही इन अंगों में रक्त संचार करने में मदद करता है।
- गर्भवती महिलाओं के नॉर्मल डिलीवरी के लिए यह आसन बहुत ही उपयोगी माना गया है।
- यह कमर और पेट की मांसपेशियों को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है।
- यह आसन तनाव कम करने में सहायक है।
- इस आसन के अभ्यास से साँसों में नियंत्रण प्राप्त होता है।
प्राणायाम(Pranayam)
गर्भावस्था में प्राणायाम का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान माना गया है, इसका अभ्यास करने के लिए किसी भी आरामदायक आसन में बैठ जायें, यदि आप मैट पर अभ्यास कर रहे है तो सुखासन में अपने हिप्स के नीचे एक पतला कुशन लगा सकते है जिससे आपकी कमर सीधी रहेगी और बैठने में सुविधा होगी,सुखासन में यदि घुटने मोड़ना मुस्किल हो तो पैर सीधे करने बैठ सकते है, वज्रासन में भी बैठ सकते है या फिर यदि इन सभी आसनों में मुस्किल हो तो कुर्सी में बैठ कर प्राणायाम किया जा सकता है , गर्भावस्था के समय गहरी सांस लेना और आरामदायक सांस भरने की तकनीक काफी मुस्किल हो जाती है क्योंकि गर्भस्थ महिलाओं में निरन्तर पेट बढ़ता जाता है जिससे सांस भरना मुस्किल होता जाता है साँसों को भरने में मेहनत लगती है और सांस छोटी होती जाती है जिससे ऑक्सीजन गर्भस्थ महिला और गर्भस्थ शिशु तक ठीक से नहीं पहुँच पाती है किन्तु जब हम प्राणायाम का अभ्यास करते है तब सांस गहरी लेना सीखते है जिससे सांस हमारे शरीर के अन्दर जाती है जब हम गहरी सांस भरते है तब फफड़े , डायफ्राम और श्वसन नलिकाएँ पूर्णतः सक्रिय होते है उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, शरीर में अधिक मात्रा में ऑक्सीजन गर्भस्थ माँ और शिशु तक पहुँचती है जिससे दोनों का विकास होता है।गर्भावस्था के दौरान प्राणायाम का अभ्यास करने से अनेक प्रकार के लाभ देखें गये है ,गर्भावस्था के दौरान कौन कौन से प्राणायाम करना चाहिए और उनके महिलाओं में क्या क्या लाभ है इस लेख में आगे विस्तार से वर्णन किया गया है, प्राणायाम महिलाओं में सभी पहलुओं में महत्वपूर्ण माने गये है। गर्भावस्था में होने वाले तनाव को कम करने के लिए प्राणायाम महत्वपूर्ण है। यह माँ को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से साहयक माना गया है और शिशु को सकारात्मक प्रभाव पहुँचाने में मदद करता है।प्राणायाम से सही तरीके से श्वास लेना सीखते है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचने में मदद करता है, जिससे उसका सही विकास होने में सहायता मिलती है।
यह शारीरिक समर्थन प्रदान करके माँ को गर्भ के बोझ का सामना करने में मदद करता है और उसे सुविधा महसूस कराता है।ध्यान और प्राणायाम माँ को मानसिक स्थिति को स्थिर रखने में मदद करता है, जिससे गर्भावस्था का समय आनंदमय बनाने में सहायता मिलती है। योगिक प्रणायाम शिशु के सुन्दर विकास में मदद करता है और उसकी स्वस्थता को बनाए रखने में सहारा प्रदान करता है।इस लेख में आगे गर्भावस्था में कौन कौन से प्राणायाम करना चाहिए इसका वर्णन किया गया है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम(Anulom Vilom Pranayam)
अनुलोम विलोम प्राणायाम
अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास हमेशा खाली पेट करें अत्यधिक लाभ के लिए, इस प्राणायाम के करने के लिए गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम एक योग मैट या किसी भी सुरक्षित और सुविधाजनक स्थान में बैठ जाए।गर्भावस्था के दौरान यदि आपको बैठने में मुस्किल हो तो हिप्स के नीचे कुसन लगा सकते है या पीछे कमर में टेक या फिर कुर्सी में बैठकर अभ्यास कर सकते है।
- गर्भवती महिलायें अनुलोम विलोम करने के लिए सुखासन, वज्रासन या पैर में थोड़ा सा अन्तर करके पैर सीधे करके पीछे टेक लगा कर बैठ सकते है जिससे पेट और कमर में दबाव उत्पन्न न हो।
- इसके पश्चात अपने दोनों हाथों को दोनों घुटनों में रखें ज्ञान मुद्रा, शांति मुद्रा या प्राण मुद्रा में और दोनों आँखों को बंद करें , गहरी सांस भरें और गहरी साँसों में ध्यान दें कुछ समय के लिए।
- जब आपका मन स्थिर हो जाये और साँसें सामान्य हो जाये तब अपने दाहिने हाथ से तर्जनी और मध्यमा उँगली को अंगूठे के रूट में स्पर्श कराये जिससे प्रणव मुद्रा बन जाएगी।
- अब अपने दाहिने हाथ को नासिका के पास ले जाये और दाहिने हाथ के अंगूठे से नासिका के दाहिने छिद्र को और अनामिका, कनिष्ठा अंगुली से बायें नासिका छिद्र को स्पर्श करें।
- इसके पश्चात दाहिनी नासिका को बंद करें दाहिने अंगूठे से और बाई नासिका से गहरी सांस भरें सांस गहरी और पेट तक जाएगी, सांस भरते हुए पेट बाहर की तरफ फुलाएँ किन्तु अनावश्यक दबाव न दें जो सहज और आसान हो उतना ही सांस भरें।
- सांस भरने के पश्चात सांस बायीं नासिका छिद्र को कनिष्ठा और अनामिका उँगली से बंद कर लें और दाहिने अंगूठे को दूर करते हुए दाहिनी नासिका से सांस छोड़ दें , इसके बाद दाहिनी नासिका से गहरी सांस भरकर बायीं नासिका से सांस छोड़ दें ।
- यह एक चक्र का अभ्यास हुआ।
- इस प्रकार लगातार अभ्यास करते रहें।इस अभ्यास को गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार धीरे धीरे दस से पंद्रह मिनट का अभ्यास कर सकती है।
लाभ
- अनुलोम विलोम प्राणायाम के अभ्यास से गर्भावस्था में माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों का मानसिक और शारीरिक विकास होता है।
- इस प्राणायाम के करने से पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन रूपी प्राण शक्ति शरीर में प्रवेश करती है जिससे श्वसन तंत्र मजबूत और स्वस्थ होते है।
- इस प्राणायाम से गर्भस्थ माँ और शिशु को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचती है जो उन दोनों के स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है।
- इसके अभ्यास से फेफड़े , डायफ्राम और श्वसन नलिकाएँ मजबूत होती है क्योंकि पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन भरते के कारण इनकी कार्य क्षमता विकसित होती है।
- इसके अभ्यास से अधिक से अधिक रक्त शुद्ध होता है और शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिलता है।
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं का तनाव और अवसाद को कम करता है।
- यह प्राणायाम रोगप्रतिरोधक बढ़ाता है।
- इससे गर्भवती महिलाओं का हृदय स्वस्थ होता है और ब्लड सर्कुलेशन ठीक होता है।
- इससे पाचन क्रिया ठीक होती है।
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं के मन को शांत करता है।
- इस प्राणायाम को करने से रक्त चाप नियंत्रित रहता है।
- यह प्राणायाम गर्भावस्था के दौरान होने वाली सांस की समस्या को ठीक करता है।
- यह प्राणायाम गर्भावस्था में होने वाली कब्ज की समस्या को ठीक करने में मददगार है।
उदरीय श्वसन(Abdomen breathing)
उदरीय श्वसन
- इस आसन के अभ्यास के लिये गर्भवती महिलायें किसी भी सुखासन या वज्रासन में बैठ जायें और अपने दोनों आँखों को बंद करें।
- इसके बाद अपने दाहिने हाथ को चेस्ट( छाती ) में और दायें हाथ को पेट पर रख लें।
- इसके पश्चात गहरी श्वास भरें और गहरी सांस छोड़ें, सांस भरते हुए पेट बाहर की तरफ और सांस छोड़ते हुए पेट अन्दर की तरफ जाएगा, ध्यान दें सांस कही भी नहीं रोकना है, केवल गहरी सांस भरें और छोड़ें।
- साँसों के साथ अपने मन को स्थिर करने का प्रयास करें।
- सांस भरते हुए सोचे कि मेरे अन्दर प्राण शक्ति बढ़ रही है, में स्वस्थ हो रही हूँ, में खुश हू, बेबी स्वस्थ और निरोग है और सांस छोड़ते हुए महसूस करिए की मेरी थकान दूर हो रही है, तनाव कम हो रहा है, नकारात्मक विचार कम हो रहें है।
- इस प्रकार से दस से पंद्रह मिनट इस अभ्यास को गर्भवती महिलायें कर सकती है।
लाभ
- इस प्राणायाम के अभ्यास से पेट और छाती की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है।
- इससे शरीर में अधिक से अधिक ऑक्सीजन पहुँचती है।
- तनाव कम होता है साथ ही मन शांत होता है।
- सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है जो माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए बहुत ही आवश्यक है
- रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
- उच्च रक्त चाप कम होता है।
- पेट और चेस्ट के सभी अंगों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुँचती है।
- इसके अभ्यास से गर्भस्थ माँ और शिशु दोनों स्वस्थ और निरोग होते है।
- नॉर्मल डिलीवरी के लिए यह प्राणायाम सहायक माना गया है।
नोट- गर्भवती महिलायें प्राणायाम में कुम्भक न लगाये।
भ्रामरी प्राणायाम(Bhramari Pranayam)
भ्रामरी प्राणायाम
- गर्भवती महिलाएँ भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम सुखासन, वज्रासन या जो भी आपको सुखद लगे उसमे बैठ जायें।
- इसके बाद दोनों आंखें बंद कर पूरे शरीर को शिथिल करें, संपूर्ण अभ्यास के दौरान दांतों को परस्पर अलग तथा मुँह को बंद रखते है और गहरी श्वास को सही तरीके से भरें और छोड़ें। जिससे कम्पन को स्पष्ट तरीके से सुना जा सके तथा उसको मस्तिष्क में अनुभव भी किया जा सके।
- जबड़ों को ढीला रखें।
- सांस लेते समय आंतरदृष्टि को बनाए रखें।
- इसके पश्चात दोनों हाथों को अपने कंधों के समानान्तर फैलायें, इसके बाद दोनों कोहनियों को मोड़कर , दाहिने हाथ के अंगूठे दाहिना कान और बायें हाथ के अंगूठे से बायाँ कान बंद करें तथा दाहिने और बायें हाथों की अंगुलियों से दाहिनी और बाईं आँख बंद करें ताकि बाहर की आवाजें प्रवेश न करें, इसके पश्चात अपनी सजगता को मस्तिष्क के केंद्र पर एकाग्र करें, जहाँ आज्ञा चक्र उपस्थित है।अपने संपूर्ण शरीर को स्थिर रखें।अब गहरी सांस भरें और सांस छोड़ते हुए भ्रामरी की ध्वनि उत्पन्न करें , भौरे जैसा नाद उत्पन्न करें, जिस प्रकार भौंरा बोलता है उसी प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होगी,गुंजन की ध्वनि पूरे रेचक में स्थिर, गहरी, सम और अखण्ड होनी चाहिए।रेचक पूर्णतः नियंत्रित होना चाहिए तथा उसकी गति मंद होना चाहिए। इस ध्वनि के कारण ही इस प्राणायाम का नाम भ्रामरी पड़ा है।
- "म्" या "भ्रामरी" के ध्वनि में लंबा श्वास लें और इसे सुनिश्चित रूप से बाहर निकालें।यह एक आवृत्ति का अभ्यास सम्पन्न हुआ।
- रेचक पूर्ण होने पर गहरी श्वास भरें और अभ्यास की पुनरावृत्ति करें।
- आवाज कोमल एवं मधुर होनी चाहिए, जिससे खोपड़ी गुंजायमान हो जाये।ध्वनि का स्वर उच्च होना आवश्यक नहीं है किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि मस्तिष्क में ध्वनि तरंगों की अनुभूति होनी चाहिए।यह अभ्यास चेतना को अंतर्मुखी बनाने के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
लाभ
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशु के मानसिक और शारीरिक स्वस्थ में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों को स्वस्थ रखने के लिए सहायक माना जाता है।
- यह गर्भवती महिलाओं के रक्त चाप को नियंत्रित करने में मददगार है।
- यह मन को शांत करता है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं की शारीरिक और मानसिक थकान दूर करने में मदद मिलती है।
- गर्भस्थ माँ की एकाग्रता बढ़ाने में मदद करता है।
- इससे गर्भस्थ शिशु में सकारात्मक ध्वनि पहुँचती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों में शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
- इसका सकारात्मक प्रभाव तंत्रिका तंत्र पर पड़ता है जो गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के लिए आवश्यक है।
- यह हमारे हार्मोन्स का स्राव ठीक से करने में मदद करता है।
- यह प्राणायाम हमारे ग्रंथियों को सक्रिय करने में मदद करता है साथ ही उनकी कार्य क्षमता बढ़ाने में मदद करता है।
- यह प्राणायाम गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु में रक्त संचरण ठीक से करता है।
- इसका अभ्यास क्रोध, चिंता एवं अनिद्रा का निवारण कर तथा रक्तचाप को घटाकर प्रमस्तिष्कीय तनाव एवं परेशानी को दूर करता है।
- इस प्राणायाम से तनाव कम होता है , एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक चेतना का विस्तार होता है।
- यह प्राणायाम शरीर के ऊतकों के स्वस्थ होने की गति को बढ़ाता है तथा प्रसव के पश्चात इसका अभ्यास किया जा सकता है।
- यह गर्भवती महिलाओं के आवाज को सुधारता एवं मजबूत बनाता है तथा गले के रोगों का निवारण करता है।
- इस प्राणायाम को गर्भवती महिलायें प्रसव काल के अंतिम दिनों तक अभ्यास में ला सकती है।
शीतली प्राणायाम(Sheetali Pranayam)
शीतली प्राणायाम
- किसी भी आरामदायक ध्यान मुद्रा में दोनों हाथों को घुटनों पर चिन या ज्ञान मुद्रा में रखकर बैठ जायें।
- अब जीभ को बिना तनाव के जितना हो सके मुँह से बाहर फैलाएँ।
- इसके बाद जीभ के किनारों को ऊपर की ओर घुमाएं ताकि यह एक ट्यूब जैसी आकृति बन जाए।
- अब मुड़ी हुई जीभ के अन्दर से सांस धीरे धीरे अंदर खींचें।
- सांस लेने के अंत में जीभ को अंदर करके , मुंह को बंद कर लें इसके बाद नाक से धीरे धीरे सांस को छोड़ें।
- पूरे समय योगिक श्वास का अभ्यास करें।
- साँस भरते समय तेज़ हवा के समान ध्वनि उत्पन्न होनी चाहिए।
- जीभ, होंठ और मुँह के अग्र भाग में बर्फीली ठंडक का एहसास होगा।
- यह शीतली प्राणायाम का एक चक्र का अभ्यास हुआ है.
लाभ
- यह अभ्यास शरीर और दिमाग को ठंडा करता है।
- गर्भावस्था में इस प्राणायाम का अभ्यास करने से अजीर्ण, कफ और पित्त की बीमारी नहीं होती है।
- यह जैव प्रेरण और तापमान नियमन से सम्बद्ध मस्तिष्क केंद्रों को प्रभावित करता है।
- इसके अभ्यास से मानसिक और भावनात्मक उत्तेजनाओं को शान्त करने में मदद मिलती है तथा संपूर्ण शरीर में प्राण के प्रवाह को प्रोत्साहित करता है।
- इस प्राणायाम का अभ्यास शारीरिक गर्मी को कम करने के लिए लाभप्रद माना गया है और साथ साथ यह मन को शान्त करने में सहायता करता है, गर्मियों के दौरान इस प्राणायाम का अभ्यास करके गर्भवती महिलायें पूर्णतः लाभ उठा सकती है।
- इसके अभ्यास से मांसपेशियों में शिथिलता आती है और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
- सोने से पहले ट्रैंक्विलाइज़र( प्रशांतक) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह प्राणायाम भूख और प्यास पर नियंत्रण देता है और संतुष्टि की भावना पैदा करता है
- यह रक्तचाप और पेट में एसिडिटी को कम करने में मदद करता है।
- गर्मियों के दिनों में अधिक पसीना बहना, अधिक प्यास लगना, या शरीर में बहुत गर्मी और बेचैनी का अनुभव होता है इस समस्या का निवारण इस प्राणायाम से सम्भव है।
- इसके अभ्यास से पाचन क्रिया ठीक होती है।
- यह प्राणायाम पेट की गर्मी को शान्त करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से गर्मी के कारण मुँह और जीभ में उत्पन्न छाले ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह प्राणायाम तनाव, चिंता, थकान, अवसाद को कम करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से अनिद्रा की समस्या ठीक करने में मदद मिलती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं का चिड़चिड़ा स्वभाव ठीक होता है।
- इसके अभ्यास से मन की अशान्ति को ठीक किया जा सकता है।
नोट- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम का अभ्यास सर्दियों के मौसम में न करें, जिन महिलाओं को अस्थमा, सांस की समस्या, जुकाम, निम्न रक्त चाप की समस्या है वो भी इस अभ्यास को न करें।
उज्जयी प्राणायाम(Ujjayi Pranayam)
यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही उपयोगी माना गया है आगे इस लेख में बताया गया है कि इस प्राणायाम का अभ्यास कैसे करें
- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम को करने के लिए सुखासन या किसी भी सुविधाजनक आसन में बैठ जायें।दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
- इसके बाद दोनों नासिकाओं से गहरी सांस भरते हुए कण्ठ को संकुचित कर सूक्ष्म ध्वनि उत्पन्न करते हुए हृदय एवं गले से वायु को खिचना है।
- जब कण्ठ को संकुचित करते है तब श्वसन नली का छिद्र छोटा हो जाता है और जब वायु उस छोटे छिद्र से प्रवेश करती है उस दौरान बच्चे के कोमल खर्राटे के सदृश ध्वनि उत्पन्न होती है।
- इस अभ्यास के दौरान पेट का भी संकुचन होगा।
- इसके पश्चात दोनों नासिकाओं से सांस को वैसी ही ध्वनि करते हुए रेचक के माध्यम से श्वास को धीरे धीरे बाहर निकालें।
- यह एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार चार से पाँच मिनट कर सकती है।
लाभ
गर्भवती महिलाओं के लिए उज्जयी प्राणायाम कई तरह के लाभ प्रदान करता है:
- उज्जयी प्राणायाम माँ को तनाव मुक्ति करने में मदद करता है, जो गर्भावस्था के दौरान बढ़ सकता है।
- यह प्राणायाम तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ बनाने तथा मन को शान्त करने में मदद करता है।
- यह प्राणायाम शिशु के साथ सही तरीके से श्वास लेने का तकनीक करके उनके स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम का मानसिक स्तर पर शिथिलीकारक प्रभाव पड़ता है।
- उज्जयी प्राणायाम से रक्त संचरण में सुधार होता है, जिससे माँ और शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
- यह प्राणायाम अनिद्रा को दूर करने में सहायक माना गया है जो इस दौरान गर्भवती महिलाओं की मुख्य समस्या मानी गई है।
- यह मानसिक स्थिति को स्थिर करने में मदद करता है और गर्भावस्था के दौरान महिला को प्राकृतिक रूप से स्थिर रखने में सहायक माना गया है।
- इसका अभ्यास उच्च रक्त चाप से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए भी सहायक माना गया है एवं रक्त चाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से माँ के शारीरिक समर्थन या सामर्थ्य में सुधार होता है, जिससे गर्भ के बोझ का सामना करना आसान होता है।
- यह शरीर में सप्त धातुओं रक्त, अस्थि, मज्जा, वसा, वीर्य, त्वचा, एवं मांस के दोषों का निवारण करने में सहायक माना गया है।
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास में सहायक माना गया है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं को कफ, कब्ज, आँव, आँत का फोड़ा, जुकाम, बुखार और यकृत आदि रोग नहीं होते है।
नोट- गर्भवती महिलाएँ उज्जयी प्राणायाम के अभ्यास के दौरान कुम्भक का उपयोग न करें।
शीतकारी प्राणायाम(Sheetkari Pranayam)
- इस प्राणायाम के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम किसी भी आरामदायक ध्यान मुद्रा में बैठ जायें।
- दोनों आंखें बंद करें और पूरे शरीर को आराम दें।
- इसके बाद दांतों को आपस में हल्के से एक साथ स्पर्श करायें ।
- अब होंठों को अलग करें अर्थात होंठों को खोलें।दांतों को उजागर करें।
- इसके बाद दांतों के माध्यम से धीरे-धीरे गहराई से सांस भरें।साँसों को पेट तक खींचें, श्वास के अंत में, मुंह बंद कर लें।
- इसके पश्चात नियंत्रित तरीके से दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे सांस बाहर छोड़ें।
- यह एक चक्र का अभ्यास हुआ है.
- इसको गर्भवती महिलायें अपनी क्षमतानुसार पाँच से छः मिनट तक कर सकती है।
लाभ
- यह अभ्यास शरीर और दिमाग को ठंडा करता है।
- गर्भावस्था में इस प्राणायाम का अभ्यास करने से अजीर्ण, कफ और पित्त की बीमारी नहीं होती है।
- यह जैव प्रेरण और तापमान नियमन से सम्बद्ध मस्तिष्क केंद्रों को प्रभावित करता है।
- इसके अभ्यास से मानसिक और भावनात्मक उत्तेजनाओं को शान्त करने में मदद मिलती है तथा संपूर्ण शरीर में प्राण के प्रवाह को प्रोत्साहित करता है।
- इस प्राणायाम का अभ्यास शारीरिक गर्मी को कम करने के लिए लाभप्रद माना गया है और साथ साथ यह मन को शान्त करने में सहायता करता है, गर्मियों के दौरान इस प्राणायाम का अभ्यास करके गर्भवती महिलायें पूर्णतः लाभ उठा सकती है।
- इसके अभ्यास से मांसपेशियों में शिथिलता आती है और मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
- सोने से पहले ट्रैंक्विलाइज़र( प्रशांतक) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह प्राणायाम भूख और प्यास पर नियंत्रण देता है और संतुष्टि की भावना पैदा करता है।
- यह रक्तचाप और पेट में एसिडिटी को कम करने में मदद करता है।
- गर्मियों के दिनों में अधिक पसीना बहना, अधिक प्यास लगना, या शरीर में बहुत गर्मी और बेचैनी का अनुभव होता है इस समस्या का निवारण इस प्राणायाम से सम्भव है।
- इसके अभ्यास से पाचन क्रिया ठीक होती है।
- यह प्राणायाम पेट की गर्मी को शान्त करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से गर्मी के कारण मुँह और जीभ में उत्पन्न छाले ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह प्राणायाम दांतों को मजबूत बनाने में मदद करता है।
- इसके अभ्यास से भावनात्मक और मानसिक बाधाओं पर काबू प्राप्त होती है।
- यह प्राणायाम तनाव, चिंता, थकान, अवसाद को कम करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से अनिद्रा की समस्या ठीक करने में मदद मिलती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं का चिड़चिड़ा स्वभाव ठीक होता है।
- इसके अभ्यास से मन की अशान्ति को ठीक किया जा सकता है।
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं में रक्त चाप को नियंत्रित कर प्रसव रिस्क को कम करता है।
- यह प्राणायाम प्रसव की तैयारी में सहायता करता है।
- यह प्राणायाम हार्मोनल उतार चढ़ाव को नियंत्रित करता है।
- यह प्राणायाम स्पष्ट और चौकस दिमांग को प्रोत्साहित करता है जिससे मूड में उतार चढ़ाव कम होता है जो प्रत्येक गर्भस्थ महिलाओं की समस्या मानी जाती है।
- यह प्राणायाम चिंता, तनाव, अवसाद और चिड़चिड़ापन को कम करने में मदद करता है , जो गर्भवती महिलाओं के लिए काफी लाभप्रद माना गया है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।
- इस प्राणायाम से ऊर्जा , सहनशक्ति और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है।
नोट- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम का अभ्यास सर्दियों के मौसम में न करें, जिन महिलाओं को अस्थमा, सांस की समस्या, जुकाम, निम्न रक्त चाप की समस्या है वो भी इस अभ्यास को न करें।
चंद्र भेदी प्राणायाम(Chandra Bhedi Pranayam)
चंद्र भेदी प्राणायाम एक प्राणायाम तकनीक है जो गर्भवती महिलाओं को श्वास को नियंत्रित करने में मदद करती है और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करती है। यह हिन्दी शब्द "चंद्र" का अर्थ है चंद्रमा, जिससे इसका नाम प्राप्त हुआ है क्योंकि इसका अभ्यास चंद्र नाड़ी या चंद्र स्वर से किया जाता है ओर चंद्रमा के गुण धर्म प्राप्त होते है, इसका अभ्यास गर्मियों के समय में बहुत ही उपयोगी माना गया है जो हमारे शरीर की गर्मी और थकान को कम करने में मदद करता है, तापमान को नियंत्रित करता है,शरीर के डीहाइड्रेशन को ठीक करता है, शरीर में पानी का संतुलन बनाता है,अनिद्रा , ग़ुस्सा और चिड़चिड़ापन को ठीक करने में मदद करता है,स्मर्ण शक्ति को तीव्र करता है। इसके अभ्यास की तकनीक इस लेख में आगे बतायी गई है:
- इस प्राणायाम के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम गर्भवती महिलायें सुविधाजनक आसन में बैठ जाए।सुखासन या पद्मासन का चयन कर सकते है।मेरुदंड को सीधा रखें।
- इसके बाद दोनों आँखों को सहेजता से बंद करें और दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
- अब सांस को धीरे से बाहर निकालें और फिर धीरे से अंदर लें।
- इसके बाद अपने दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा को मोड़ कर अंगूठे के जड़ पर रखे और अपने दाहिने अंगूठे से दाहिनी नाक बंद करे।
- इसके पश्चात बाई नासिका अर्थात चंद्र नाड़ी से गहरी सांस भरें जितना संभव हो, सांस पेट तक ले जायें।
- सांस भरने के पश्चात कनिष्ठा और अनामिका से बाई नासिका बंद करके दाहिनी अर्थात सूर्य नाड़ी से धीरे धीरे सांस छोड़ दें।
- ध्यान दें पूरक और रेचक का समय समान रखने का प्रयास करें अर्थात जितना सांस भरने में समय लगे उतना ही समय छोड़ने में दें।
- इस अभ्यास में प्रत्येक भर सांस को चंद्र नाड़ी( बायें स्वर) से सांस भरना है और सूर्य नाड़ी(दाहिने स्वर) से सांस को छोड़ देना है।
- बायें नासिका से सांस लेना और दाहिनी नासिका से सांस छोड़ना यह चंद्र भेदी प्राणायाम का एक चक्र का अभ्यास संपन्न हुआ।
- इस अभ्यास को गर्मियों में दस से पंद्रह मिनट किया जा सकता है।
लाभ:
- यह प्राणायाम स्मर्ण शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है जिसका प्रभाव गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों पर पड़ता है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।
- यह श्वास को संतुलित करके शारीरिक और मानसिक संतुलन में मदद करता है।
- यह प्राणायाम तनाव, चिंता, थकान, अवसाद को कम करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से अनिद्रा की समस्या ठीक करने में मदद मिलती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं का चिड़चिड़ा स्वभाव ठीक होता है।
- इसका अभ्यास व्यक्ति को आत्मसमर्थन और सकारात्मकता में सहारा प्रदान करने में मदद करता है।
- यह रक्तचाप और पेट में एसिडिटी को कम करने में मदद करता है।
- गर्मियों के दिनों में अधिक पसीना बहना, अधिक प्यास लगना, या शरीर में बहुत गर्मी और बेचैनी का अनुभव होता है इस समस्या का निवारण इस प्राणायाम से सम्भव है।
- इसके अभ्यास से पाचन क्रिया ठीक होती है।
- यह प्राणायाम पेट की गर्मी को शान्त करने में मदद करता है।
- इसके अभ्यास से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- इस प्राणायाम से तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- यह शरीर के अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
नोट- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम का अभ्यास सर्दियों के मौसम में न करें, जिन महिलाओं को अस्थमा, सांस की समस्या, जुकाम, निम्न रक्त चाप की समस्या है वो भी इस अभ्यास को न करें।
समावृत्ति प्राणायाम(Samavratti Pranayam)
समावृत्ति प्राणायाम एक शांति और सामंजस्य का अभ्यास है जो गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही आवश्यक और उपयोगी माना गया है इसमें श्वास को समान लंबाई और गहराई से लिया जाता है। इसे "सम" जो समान और "वृत्ति" जो अवृत्ति या अवधि को संदर्भित करता है,इस प्राणायाम में समान आवृत्ति या अवधि में साँसों को भरते है और छोड़ते है इसीलिए इसे समावृत्ति प्राणायाम कहा जाता है। यह प्राणायाम मानसिक स्थिति को स्थिर करने, तनाव को कम करने, शरीर में ऑक्सीजन को बढ़ाने, रक्त संचार ठीक करने,रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने,प्रतिरक्षा तंत्र(Immune system) को मजबूत करने में सहायक है, सांस की गहराई तक ले जाने में मदद करता है।इससे गहरी श्वसन सन्तुलित होती है और मानव अस्तित्व की एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है।इस प्राणायाम करने की तकनीक इस लेख में आगे बतायी गई है
पहली विधि
गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम सुखासन या पद्मासन में बैठ जायें।
- कमर, गर्दन एक सीध में रखें,जिससे पेट में दबाव न आए, गर्भवती महिलायें इस दौरान हिप्स के नीचे कुसन लगा कर बैठ सकती है या कुर्सी में बैठ कर भी अभ्यास किया जा सकता है।
- दोनों आँखों को सहेजता से बंद कर लें और अपने साँसों में ध्यान दें।
- अब दोनों नासिकाओं से धीरे धीरे सांस भरे चाहे तो साँसो की गिनती करते जाये ,इसमें ध्यान दे सांस उतनी ही गहरी लेंगे जितना संभव हो, आपके पेट और मस्तिष्क पर अनावश्यक तनाव या दबाव उत्पन्न न हो इसीलिए सांस उतनी ही भरना है जो आपके लिये आसान हो।
- साँसों को पेट तक खिचने की कोशिश करे बिना किसी दबाव और तनाव के।
- इसके बाद मुख से साँसों को धीरे धीरे छोड़ते जायें समान अवधि में जितना समय आपने सांस भरने में दिया था या गिनती की थी , उतना ही समय (अवधि) आपको सांस छोड़ने (रेचक) में देना है।
- यदि हमने सांस पाँच सेकंड तक भरा या पाँच गिनती तक सांस ली( पूरक किया) तो रेचक( सांस छोड़ना) भी समान अवधि में होगा।
- समान अवधि में सांस को भरना है और छोड़ना भी है।
- प्रत्येक गर्भवती महिलाओं की सांस लेने छोड़ने की आवृति या अवधि अलग अलग हो सकती है।इसीलिए अपनी क्षमतानुसार अभ्यास को करें।
- दोनों नासिकाओं से पूरक करना अर्थात सांस को भरना और मुख से रेचक अर्थात सांस को छोड़ना एक चक्र(आवृति) का अभ्यास हुआ।
- गर्भवती महिलायें इस प्राणायाम को पाँच मिनट से तीस मिनट तक का अभ्यास कर सकती है।
- गर्भवती महिलाओं के लिए यह प्राणायाम सबसे सरल और प्रभावी माना गया है।
दूसरी विधि
- किसी भी आरामदायक आसन में बैठकर, दोनों हाथों को घुटने में ज्ञान मुद्रा या चिन मुद्रा में रखें।
- कमर और गर्दन एक सीध में रखें, जिससे ऊर्जा का प्रवाह संपूर्ण शरीर में हो सके।
- इसके बाद दोनों आँखों को सहेजता से बंद करें और मन और शरीर को स्थिर करने का प्रयास करें।
- हल्की मंद मुस्कान बना कर रखें , चेहरे में किसी भी प्रकार का तनाव न आने दें।
- विचारों को धीरे धीरे कम करने का प्रयास करें।
- अब अपने मन को साँसों में केंद्रित करें।
- इसके बाद दोनों नासिकाओं से गहरी सांस भरें(पूरक) ध्यान दें सांस भरने के दौरान आप गिनती कर सकते है।सांस भरते समय पेट बाहर की तरफ जाएगा।पेट तक सांस भरें।
- इसके पश्चात दोनों नासिकाओं से समान अवधि में धीरे धीरे सांस को छोड़े(रेचक करें) ।इस समय पेट अन्दर की तरफ जाएगा।
- जितने अवधि में आपने पूरक किया है उतनी ही समान अवधि में आपको रेचक अर्थात साँसों को छोड़ना है।
- इसको इस तरह से भी समझ सकते है कि यदि आपने सांस को पाँच सेकंड लिया है या पूरक किया है तो पाँच सेकंड सांस को छोड़ना है या रेचक करना है।
- नासिका से ही साँसों को भरेंगे और छोड़ेंगे समान अवधि में।
- यह भी ध्यान देंगे कि सांस भरने के दौरान और सांस छोड़ते के दौरान ही गिनती करना है इस अभ्यास में गर्भवती महिलायें कुम्भक या सांस रोकने का अभ्यास नहीं करेंगी।केवल गहरी सांस भरना है और छोड़ना है।
- समान अवधि में एक बार सांस भरना और छोड़ना एक आवृत्ति या चक्र का अभ्यास माना जाएगा।
- गर्भवती महिलायें इसको पाँच मिनट से तीस मिनट तक इस अभ्यास को कर सकती है।यह बहुत ही ताकतवर प्राणायाम माना गया है।जो प्रत्येक महिला के लिए जरुरी है।
इस प्राणायाम के अनगिनत लाभ बताये गये है जो प्रत्येक गर्भवती महिलायें कर सकती है
लाभ
- इस प्राणायाम के अभ्यास से श्वसन तंत्र मजबूत होता है।
- यह प्राणायाम फेफड़े, डायफ्राम और श्वसन नलिकाओं को मजबूत करता है।
- श्वसन तंत्र की क्रियाशीलता को बढ़ाता है।
- इसके अभ्यास से फेफड़ों और डायफ्राम में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में पहुँचती है जिससे इन अंगों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
- यह प्राणायाम गर्भवती महिलाओं को प्रसव के समय प्रसव वेदना को कम करने में सहायता करता है।
- इस प्राणायाम से गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है।
- समावृत्ति प्राणायाम तनाव को कम करने में सहायक माना गया है साथ ही साथ मानसिक स्थिति को सुधार सकता है।
- इसका अभ्यास मानव अस्तित्व की एकाग्रता को बढ़ा सकता है और ध्यान में रहने में मदद करता है।
- सांस को समान लंबाई और गहराई से लेने से श्वास की नियंत्रण क्षमता में सुधार होता है जो इस अवस्था में प्रत्येक महिला के लिए आवश्यक है।
- इस प्राणायाम से शांति, सकारात्मकता, और सामंजस्य महसूस होता है।
- इसके अभ्यास से प्रसव में आराम मिलता है।
- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से प्रसव की तैयारी में मदद मिलती है और प्रसव के लिए महिला का शरीर विकसित हो जाता है।
- यह प्राणायाम हार्मोनल उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से भावनात्मक और मानसिक बाधाओं पर नियंत्रण प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
- यह प्राणायाम रक्त चाप को नियंत्रित कर प्रसव सम्बन्धित समस्याओं को कम करने में मदद करता है।
- यह मानसिक फोकस बढ़ाता है।
- गर्भवती माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों की याददाश्त को मजबूत करने में मदद करता है।
- यह शरीर के अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से अधिक मात्रा में ऑक्सीजन हमारे शरीर में आती है और कार्बनडाइऑक्साइड या विषाक्त तत्व शरीर से बाहर निकलते है।
- इस प्राणायाम से संपूर्ण शरीर में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से होता है।
- यह प्राणायाम माँ और गर्भस्थ शिशु की सुंदरता को बढ़ाता है।
- यह प्राणायाम तनाव, चिंता, थकान, अवसाद को कम करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से अनिद्रा की समस्या ठीक करने में मदद मिलती है।
- इसके अभ्यास से गर्भवती महिलाओं का चिड़चिड़ा स्वभाव ठीक होता है।
- इसके अभ्यास से मन की अशान्ति को ठीक किया जा सकता है।
- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से प्रसव रिस्क को कम करने में सहायता मिलती है।
- इस प्राणायाम से तंत्रिका तंत्र में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- इस प्राणायाम से ऊर्जा , सहनशक्ति और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है।
- इस प्राणायाम के माध्यम से प्रतिरक्षा तंत्र , सहानुभूतिपूर्ण तंत्रिका तंत्र (sympathetic nervous system) और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र(parasympathetic nervous system) में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- यह प्राणायाम पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से आँतों की कार्यक्षमता विकसित होती है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से गैस , एसिडिटि, अपच, कफ आदि समस्याओं को ठीक करने में सहायता मिलती है।
- समावृत्ति प्राणायाम कब्ज को ठीक करने में मदद करता है।
- यह प्राणायाम गर्भावस्था के दौरान होने वाले लगभग लगभग सभी समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम से माँ और गर्भस्थ शिशु को अधिक से अधिक ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
प्राण मुद्रा(Prana Mudra)
गर्भवती महिलाओं के लिए प्राण मुद्रा एक प्रभावी योग मुद्रा मानी गई है,इस मुद्रा को सहयोगी या सपोर्टिंग मुद्रा भी कहा जाता है।यह प्राण शक्ति को बढ़ाने का कार्य करती है और संपूर्ण शरीर में ऊर्जा को प्रवाहित करने का कार्य करती है,इस मुद्रा को ऊर्जा बढ़ाने वाली मुद्रा कहते है इसीलिये यदि को अन्य आसन, प्राणायाम या मुद्रा के पहले इसका अभ्यास करते है तो उसका लाभ दो गुना और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि यह सपोर्टिंग मुद्रा के नाम से भी जानी जाती है।इस मुद्रा का अभ्यास गर्भधारण, गर्भावस्था के दौरान, और प्रसव के समय महिलाओं को लाभ पहुँचाने का कार्य करती है।गर्भवती महिलाएँ ध्यान दे आसन , प्राणायाम और अन्य मुद्राओं का अभ्यास करने के पूर्व प्राण मुद्रा का अभ्यास अवश्य करें जिससे की गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु को मानसिक और शारीरिक स्तर में अधिक से अधिक लाभ मिल सके ,इस मुद्रा को निम्न प्रकार से किया जा सकता है
- इस मुद्रा के अभ्यास के लिये सर्वप्रथम किसी भी सुविधाजनक आसन सुखासन या पद्मासन में बैठ जायें।
- कमर और गर्दन एक सीध में रखें जिससे प्राण शक्ति का प्रवाह संपूर्ण स्पाइन में हो सके क्योंकि स्पाइन के क्षेत्र में ही चक्र उपस्थित होते है जो संपूर्ण शरीर के अंगों को और मन को नियंत्रित करते है।
- दोनों आँखों को सहेजता से बंद करें और दोनों हाथों को घुटनों पर रखें।
- अब अपने दोनों हाथों की उँगली कनिष्ठा(Small finger) और अनामिका(Ring finger) की टिप को अंगूठे की टिप से स्पर्श करायें।बाकी मध्यमा और तर्जनी सीधी रखें।
- ध्यान दें उँगलियों को केवल अंगूठे से स्पर्श करना है अधिक दबाना नहीं है।
- इसके बाद गहरी सांस भरे और गहरी सांस छोड़े, सांस को पेट तक ले जाने का प्रयास करें।यह क्रम निरन्तर अभ्यास के दौरान दोहराते रहें।
- साँसों पर ध्यान दें या साँसों के आने जाने पर अपना मन केंद्रित करें।
- इस मुद्रा का अभ्यास एक मिनट से प्रारंभ करें और तीस मिनट तक इसका अभ्यास किया जा सकता है।
- इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान बीच बीच में विश्राम किया जा सकता है।
लाभ
- प्राण मुद्रा में रहने से प्राणायाम के लिए शक्ति में वृद्धि होती है जो गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त है।
- इस मुद्रा का अभ्यास न्यूरोमस्कुलर कंट्रोल में मदद करता है, जिससे प्रसव के समय योगिक न्यूरोमस्कुलर कंट्रोल की अभ्यास कर सकती हैं।
- प्राण मुद्रा से तनाव को कम करने में मदद की जा सकती है, जिससे गर्भधारण और गर्भावस्था का समय सान्त्वना से भरा हो सकता है।
- यह मुद्रा गर्भवती महिलाओं के थकान को दूर करने में मदद करता है।
- यह मुद्रा रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करती है।
- यह मुद्रा श्वसन तंत्र को मजबूत बनाने में सहायक मानी गई है।
- यह मुद्रा मानसिक स्थिति को स्थिर करने और सकारात्मकता को बढ़ाने में मदद करती है।
- प्राण मुद्रा सुप्त प्राण शक्ति और महत्वपूर्ण ऊर्जा को जागृत करती है तथा इसे पूरे शरीर में वितरित या प्रवाह करती है, जिससे शक्ति, साहस, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- यह मुद्रा गर्भस्थ महिला और शिशु के मानसिक और शारीरिक विकास को बढ़ावा देने में मदद करती है।
- इसके अभ्यास से गर्भस्थ माँ और शिशु निरोग्यता को प्राप्त होते है।
- यह मुद्रा प्राणिक प्रणाली, नाड़ियों ,चक्रों और शरीर में प्राण के सूक्ष्म प्रवाह के बारे में जागरूकता विकसित करता है।
- शरीर के प्रत्येक अंगों में प्राण शक्ति को प्रवाहित करने में मदद करती है।
- इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत हो जाता है जिससे प्रसव रिस्क को कम करने में सहायता मिलती है।
- यह मुद्रा शारीरिक , मानसिक , भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप विकास करने में मदद करती है।
- शरीर के आन्तरिक विकास के लिए यह मुद्रा बहुत ही उपयोगी मानी जाती है।
- यह मुद्रा मांसपेशियों के ऐंठन को ठीक करने में मदद करती है।
- यह महिलाओं की प्रतिरक्षा प्रणाली की शक्ति को बढ़ाने में सहयोग करती है।
- इस मुद्रा से तनाव, चिंता, अवसाद, अनिद्रा जैसी अनेक प्रकार की समस्या को ठीक करने में मदद मिलती है।
- इस मुद्रा से कब्ज और एसिडिटि को ठीक करने में मदद मिलती है।
- यह मुद्रा पेट के जलन को ठीक करने में मदद करता है।
- यह मुद्रा किसी भी तरह की विटामिन ,विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन डी, विटामिन ई की डेफिशियेंसी या कमी को दूर करने में सहायता करती है।
- यह मुद्रा शरीर में ऊर्जा बढ़ाने का कार्य करती है।
- यह मुद्रा शरीर के अंगों की कार्यक्षमता बढ़ाने में सहयोगी मानी गई है।
- यह मुद्रा एकाग्रता को बढ़ाने में सहयोग करती है।
- यह मुद्रा ब्रह्मांडीय ऊर्जा को अवशोषित करने में सहायक मानी गई है।
- यह हमारे अन्दर बुद्धि को तीव्र करने और सोचने समझने की क्षमता को विकसित करने में सहायक मानी गई है।
- यह मुद्रा प्रेगनेंसी के दौरान हार्मोनल उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने में मददगार है।
- इसके अभ्यास से भावनात्मक और मानसिक समस्याओं में काबू प्राप्त किया जा सकता है।
- यह रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- यह मुद्रा हमारे शरीर के अवशिष्ट पदार्थों को बाहर करने में मदद करती है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से सकारात्मकता बढ़ती है।
- इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से प्रसव काल में प्रसव वेदना को कम करने में अर्थात लेबर पेन को कम करने में सहायता मिलती है।
- इसके अभ्यास से स्वस्थ और निरोग बच्चे को जन्म देने में सहायता मिलती है।
ज्ञान मुद्रा(Gyana Mudra)
ज्ञान मुद्रा
ज्ञान मुद्रा बुद्ध, एकाग्रता, सीखने और ज्ञान की एक शक्तिशाली मुद्रा है। ज्ञान शब्द का अर्थ ज्ञान या बुद्धिमत्ता है। इसलिए ज्ञान मुद्रा सहज ज्ञान के लिए मुद्रा है। इसे चेतना के मानसिक भाव के रूप में भी जाना जाता है।
प्राचीन काल से शांति और आध्यात्मिक लाभ के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता रहा है।यह मुद्रा मन को शान्त करने के साथ साथ मन को स्थिर और एकाग्रता भी करने का कार्य करती है।इस मुद्रा का उपयोग प्राणायाम के साथ भी किया जा सकता है।इसको ध्यानात्मक मुद्रा भी कह सकते है जो ध्यान करने में हमारी सहायता करती है।गर्भावस्था में हार्मोनल परिवर्तन के कारण महिलाओं का मन बदलता रहता है, मूड स्विंग होता रहता है और चिड़चिड़ापन, तनाव , अनिद्रा, अशान्ति, पैदा हो जाती है यह मुद्रा मन को स्थिर करता है, चिड़चिड़ापन दूर करता है, अनिद्रा , तनाव, अवसाद को ठीक करने में मदद करती है।
- सर्वप्रथम एक आरामदायक ध्यान मुद्रा में बैठ जायें ।दोनों हाथों को घुटने पर रखें , दोनों आँखों को सहजता से बंद कर लें, शरीर और मन को शांत करने का प्रयास करे, शरीर की हलचल को धीरे धीरे कम करने का प्रयास करे।
- इसके बाद अपने दोनों हाथों की तर्जनी को मोड़कर अंगूठे से स्पर्श कराये, तर्जनी और अंगूठे की आपस में टिप स्पर्श होगी, बाकी दोनों हाँथों की अन्य उँगलियाँ कनिष्ठा, अनामिका और मध्यमा सीधी रहेंगी।
- प्रत्येक हाथ की अन्य तीन उंगलियों को सीधा करें ताकि वे आराम से और थोड़ा अलग हो जाएं।
- दोनों हाथों को घुटनों पर रखें और हथेलियाँ ऊपर की ओर होंगी। हाथों और बांहों को आराम दें।
- गहरी सांस भरे और गहरी सांस छोड़ें साँसों पर अपने मन को केंद्रित करें।
- ज्ञान मुद्रा का अभ्यास प्रत्येक दिन एक मिनिट से पाँच मिनिट तक करने का प्रयास करें।
लाभ
- ज्ञान मुद्रा मस्तिष्क के कार्यों को सुधारने, यादशक्ति को बढ़ाने , बुद्धि को तीव्र करने का कार्य करती है।
- यह मुद्रा तनाव को दूर करती है और मन को शान्त करने में मदद करती है।
- गर्भवती महिलाओं की अनिद्रा की समस्या इस मुद्रा के अभ्यास से ठीक करने में मदद मिलती है।
- इस मुद्रा का अभ्यास करने से मानसिक और आध्यात्मिक विकास को बढ़ाने में मदद मिलती है।
- यह पीनियल ग्रंथि को उत्तेजित करने में मदद करता है पीनियल ग्रंथि मानव शरीर में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पिट्यूटरी ग्रंथि की गतिविधि की जाँच करता है और हमारे सोने-जागने के चक्र (सर्कैडियन चक्र), और शरीर में पानी और कार्बोहाइड्रेट चयापचय (जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है) को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह मुद्रा संपूर्ण तंत्रिका तंत्र में रक्त के प्रवाह में सुधार करने का कार्य करता है।
- इस मुद्रा का अभ्यास प्रत्येक दिन करने से क्रोध और उन्माद की समस्या से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को मदद मिल सकती है।
- यह मुद्रा गर्भस्थ माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों में बौद्धिक क्षमता का विकास करने में मदद करती है।
- यह मुद्रा याददाश्त बढ़ाने में सहायक है।
- यह मुद्रा गर्भवती माँ को गर्भस्थ शिशु से आंतरिक रूप से जोड़ने का कार्य करती है।
- यह मुद्रा माँ को गर्भस्थ शिशु से भावनात्मक रूप से जुड़ने का कार्य करती है।
- यह मुद्रा रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करती है।
शान्ति मुद्रा(Shanti Mudra)
शांति मुद्रा जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि यह मुद्रा मन को शान्त करती है, चित्त को स्थिर करती है।क्योंकि इस मुद्रा में पाँचों उँगलियाँ( चार उँगलियाँ और अंगूठा) स्पर्श करते है जो आयुर्वेद में पाँच तत्व को प्रतीक है इसीलिए इस मुद्रा को पंचमहाभूत मुद्रा भी कहते है इसमें मन शान्त होने के साथ साथ पाँचों तत्वों का संतुलन भी होता है।इस मुद्रा से पाँच तत्व जल,पृथ्वी,आकाश, वायु और अग्नि तत्व उपस्थित होते है जो आपस में स्पर्श करते है और पाँचों तत्वों को सन्तुलित करने में सहायक होते है।इस मुद्रा को कैसे करना है इसका विस्तार से इस लेख में आगे बताया गया है
विधि
- सर्वप्रथम किसी भी ध्यानात्मक या सुविधाजनक आसन में बैठ जायें।
- कमर और गर्दन एक सीध में रखे का प्रयास करें।
- दोनों आँखों को कोमलता से बंद करें।
- दोनों हाथों को अपने दोनों घुटनों में रखें।
- इसके बाद अपने दोनों हाथों की पाँचों उँगलियों की टिप या अग्र भाग को आपस में स्पर्श कराये।कनिष्ठा( जल तत्व), अनामिका(पृथ्वी तत्व), मध्यमा(आकाश तत्व), तर्जनी(वायु तत्व) और अंगूठा(अग्नि तत्व) ये आयुर्वेद में पाँच तत्व माने गये है और इन्हीं पाँच तत्वों से शरीर बना है जब इस मुद्रा को करते है तो हमारे पाँचों तत्व संतुलित हो जाते है क्योंकि शरीर में जब तत्वों की कमी हो जाती है तभी उस तत्व की कमी या अधिकता के कारण रोग उत्पन्न हो जाते है किंतु यह मुद्रा इन पाँचों तत्वों को संतुलित करके शरीर और मन को स्वस्थ और निरोग बनाने में अहम भूमिका निभाने का कार्य करती है।
- हथेलियाँ आकाश की ओर होंगी।
- इसके बाद गहरी सांस भरें और छोड़ें।
- दोनों हाथों को सहेज रूप से रखें।
- सांस भरते समय पेट बाहर और सांस छोड़ते समय पेट अन्दर ले जाये बिना किसी अनावश्यक दबाव के।
- अब अपनी साँसों में ध्यान केंद्रित करें।
- यह मुद्रा तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।
- इस मुद्रा का अभ्यास पाँच मिनट से धीरे धीरे तीस मिनट तक बढ़ायी जा सकती है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है।
- इस मुद्रा का अभ्यास दिन में किसी भी समय किया जा सकता है।
- खाना खाने के पश्चात भी इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।
शान्ति मुद्रा, जो ध्यान मुद्रा भी कहा जाता है, यह एक योग मुद्रा है जो शांति और समाधान को बढ़ावा देने में सहायता करती है। इसके लाभ इस लेख में आगे बताये गये हैं:
लाभ
- शान्ति मुद्रा का अभ्यास मानसिक चिंता और तनाव को कम करने में मदद करती है।
- इस मुद्रा का अभ्यास करने से ध्यान को बढ़ावा मिलता है और मानसिक स्थिति में स्थिरता आती है।
- यह मुद्रा प्राणशक्ति को संतुलित करने में मदद करती है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- शान्ति मुद्रा के अभ्यास से नींद में सुधार होता है, क्योंकि यह मानसिक चिंता को कम करने में मदद करता है।
- गर्भावस्था में होने वाले तनाव, चिंता, घबराहट, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, मूडस्विंग जैसी समस्याओं को ठीक करने में मदद करती है।
- इसके अभ्यास से आत्मविश्वास और आत्मसंयम जाग्रत होता है।
- यह मुद्रा प्रसव काल में सहायक मानी गई है।
- यह महिलाओं को धैर्यवान बनाने में मदद करती है।
- इससे माँ अपने गर्भस्थ शिशु से भावनात्मक रूप से अधिक जुड़ाव महसूस करती है।
- यह मुद्रा रक्त चाप को नियंत्रित करने में सहायक है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से महिलाओं में हार्मोनल संतुलन बनाये रखने में मदद मिलती है।
- इससे हैप्पी हार्मोन्स का स्राव होता है जो इस अवस्था में प्रसन्न और खुश रखने में मददगार माना गया है।
- इससे माँ और गर्भस्थ शिशु में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- मन में अच्छे और सकारात्मक विचार उत्पन्न होते है जो गर्भस्थ माँ और शिशु दोनों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
नोट गर्भवती महिलायें यदि इस मुद्रा को अधिक समय तक बैठ कर नहीं कर सकती तो इस मुद्रा को अपने बेड पर लेटकर भी किया जा सकता है।
ध्यान(Meditation)
मैडिटेशन एक मानसिक अभ्यास है जिसमें व्यक्ति ध्यान केंद्रित करने के लिए बैठता है और मन की गतिविधियों को शांत करता है। किसी विषय या वस्तु पर मन को केंद्रित करना, एकाग्र करना या चिंतन करने की प्रक्रिया को ध्यान कहा जाता है।जब ध्यान में प्रत्यक्ष अनुभूति होने लग जाये तब उस अवस्था को वास्तविक ध्यान कहते है।जिस प्रकार हम अपनी आँखों के सामने एक पदार्थ को स्पष्ट देख सकते है उसी प्रकार यदि हम अपने मन के सूक्ष्म अनुभवों को अन्तश्चक्षु के सामने मनहाँ दृष्टि के सामने स्पष्ट कर सके, तो इस अवस्था को ध्यान की अवस्था कहा जाएगा।इसका उद्देश्य मानसिक शांति, आत्मजागरूकता, और स्वस्थ मानसिकता को प्रोत्साहित करना है।गर्भावस्था के दौरान ध्यान का अभ्यास करने के लिए इस लेख में आगे विधि का वर्णन किया गया है
ध्यान की विधि
- गर्भवती महिलायें सर्वप्रथम किसी भी सुविधाजनक आसन या स्थिति में बैठ जायें।
- कमर और गर्दन एक सीध में रखें।
- दोनों हाँथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा या शांति मुद्रा में रख लें, गर्भवती महिलायें ध्यान दें ज्ञान मुद्रा या शान्ति मुद्रा इस लेख में ऊपर बतायी गई है अभ्यास के लिये उसको पहले देख लें कि किस प्रकार करनी है।
- अब दोनों आँखों को कोमलता से बंद करें।
- शरीर और चेहरे को तनाव रहित करें।
- इसके बाद गहरी सांस भरें और छोड़ें, सांसों में ध्यान को केंद्रित करे।
- मुस्कुराता हुआ चेहरा।
- कुछ समय तक श्वास पर ध्यान या अपने गर्भस्थ बेबी के मूवमेंट पर या नासिका के अग्र भाग पर मन को स्थिर करने का प्रयास करें।
- इस अभ्यास को गर्भवती महिलाएँ अपनी क्षमतानुसार पंद्रह मिनट से तीस मिनट तक कर सकती है।
गर्भावस्था के दौरान ध्यान का बहुत ही महत्वपूर्ण योग दान माना गया है क्योंकि इस समय महिलाओं को शारीरिक रूप से मजबूती की आवश्यकता तो होती ही है साथ साथ मानसिक रूप से भी स्वस्थ और मजबूत होना आवश्यक माना गया है।ध्यान एक येसी पद्धति है जो मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को विकसित करने में सहायक माना गया है, इस दौरान महिलाओं को अपने स्वस्थ के साथ साथ गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखना आवश्यक है इसीलिए माँ को सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ होना अति आवश्यक है क्योंकि जब माँ स्वस्थ और खुश होगी तभी स्वस्थ शिशु का विकास होगा और स्वस्थ बच्चे का जन्म होगा इसीलिए सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए ध्यान का बहुत ही महत्वपूर्ण योग दान माना गया है इस लेख में ध्यान के विभिन्न प्रकार से लाभ बताये गये हैं
- गर्भावस्था में हार्मोनल परिवर्तनों के कारण तनाव बढ़ सकता है, ध्यान से इसे कम किया जा सकता है।
- गर्भावस्था में अच्छी नींद बहुत महत्वपूर्ण है, जो माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों के स्वस्थ पर प्रभाव डालती है। ध्यान से मानसिक चंचलता को शांत करने के कारण नींद में सुधार होता है।
- ध्यान के माध्यम से गर्भावस्था के दौरान सकारात्मक भावनाएं प्रोत्साहित की होती हैं, जो गर्भिणी के और बच्चे के लिए अच्छा माना गया है।
- ध्यान से मां के शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, जैसे कि मांसपेशियों की खिचाकों को कम करना।
- ध्यान से माँ के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है तनाव, चिंता, अवसाद, नकारात्मकता, चिड़चिड़ापन, मूडस्विंग जैसी अनेक समस्याओं को ठीक करने में सहायता मिलती है।
- ध्यान से माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
- इसके अभ्यास से कार्यक्षमता बढ़ती है।
- इसके अभ्यास से शारीरिक और मानसिक क्रियाशीलता बढ़ती है।
- ध्यान के नियमित अभ्यास से गर्भस्थ शिशु का ठीक से विकास होता है।
- ध्यान के माध्यम से मां अपने गर्भस्थ शिशु के साथ अधिक जुड़ने में सहायक हो सकती है।
- ध्यान के अभ्यास से गर्भस्थ महिला प्रसव काल में प्रसव वेदना को सहने का सामर्थ्य प्राप्त होता है क्योंकि वह मानसिक रूप से मजबूत हो जाती है।
- ध्यान के अभ्यास से सुख शांति प्राप्त होती है जो इस अवस्था में माँ और शिशु के लिए अति आवश्यक माना गया है।
- ध्यान से मानसिक चिंता और तनाव कम जाता हैं, जिससे स्ट्रेस का सामना करना आसान होता है।ध्यान से मानसिक स्वस्थ्था में सुधार हो सकता है, जैसे कि अधिक चेतना, सकारात्मक भावनाएं, और आत्मजागरूकता का विकास।
- ध्यान का अभ्यास करने से ब्लड प्रेशर कम हो सकता है,रक्त चाप पर नियंत्रण प्राप्त होता है।
- इसके अभ्यास से अनिद्रा की समस्या दूर होती है तथा नींद में सुधार होता है।
- ध्यान से आत्मा को ऊर्जावान और शांतिपूर्ण महसूस हो सकता है, जो दिनचर्या में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- ध्यान से मानसिक स्थिति में सुधार होकर सामाजिक और पेशेवर जीवन में अधिक संतुलितता और सफलता हो सकती है।
- ध्यान के द्वारा हैप्पी हार्मोन्स का स्राव होता है।
- इसके अभ्यास से शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करने में मदद मिलती है।
- इसके अभ्यास से शरीर को तर्वताजा करने में सहायता मिलती है।
- ध्यान मन को एकाग्र और स्थिर करने में सहायक है।
प्रेगनेंसी एक महिला के गर्भाधान की स्थिति है जब एक शुक्राणु और एक अंडाणु आपस में मिलकर गर्भाधान करके भ्रूण का निर्माण करते है जिससे गर्भ में बच्चा बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। यह गर्भधान के बाद एक सामान्य गर्भावस्था की अवधि लगभग 40 सप्ताह (280 दिन) होती है, जो तीन तीन महीनों ( पहली तिमाही, दूसरी तिमाही और तीसरी तिमाही) में विभाजित होता है।इन तीनों तिमाही में ही गर्भस्थ शिशु का विकास होता है,इसीलिए गर्भवती माँ को बहुत ही सावधानीपूर्वक उस समय को उपयोग में लाना चाहिए येसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे स्वयं को और गर्भस्थ शिशु को कोई भी नुकसान हो, क्योंकि शिशु का विकास इस दौरान होता है यदि कोई भी असावधानी रखेंगे तो गर्भस्थ शिशु के विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा मानसिक और शारीरिक रूप से कोई भी दुर्बलता उत्पन्न हो सकती है।इस कारण इस अवस्था को महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव माना गया है क्योंकि स्वयं का ध्यान रखने के साथ साथ गर्भस्थ शिशु का भी ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है।गर्भवती महिला इस दौरान शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों का सामना करती है, और बच्चे का सही विकास होता है। प्रेगनेंसी के दौरान, स्त्री को सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उसका स्वस्थ गर्भवस्था हो सके और शिशु को सही रूप से पोषण मिले। नियमित चेकअप, सही आहार, व्यायाम, और स्त्री को उचित आत्मसमर्पण महत्वपूर्ण हैं।प्रीनेटल योगा गर्भावस्था के दौरान मातृ और शिशु के लिए शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य को समर्थन करने में मदद करने का एक शानदार तरीका है।प्रीनेटल योगा से शारीरिक लाभ होता है, जैसे कि स्ट्रेचिंग, स्थायिता, और श्वास के अभ्यास से मां की शारीरिक क्षमता में सुधार होता है। ये आसन गर्भवती महिला को स्थानीय और आत्मिक स्थिति में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।इससे आत्मिक स्थिति में सुधार होता है और तनाव को कम करने में मदद मिलती है, जिससे मां और शिशु दोनों के लिए शांति बनी रहती है।इस लेख में हमने विस्तार से बताया है कि प्रेगनेंसी क्या है, गर्भावस्था के दौरान हमें किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए , कौन कौन सी सावधानियाँ गर्भावस्था में रखना आवश्यक है जिससे गर्भस्थ माँ और शिशु दोनों का ठीक से विकास हो सके, गर्भावस्था के दौरान क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?, गर्भावस्था में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए? इसके विषय में भी उल्लेख किया गया था जिससे महिलाओं को जानकारी मिल सके की गर्भावस्था में कौन से कामों से परहेज़ करें जिससे स्वयं का और बच्चे का नुकसान न पहुँचे।इसमें गर्भावस्था में खाने के विषय में भी बताया है क्योंकि येसी बहुत सारी चींजे है जिनसे गर्भवती माँ को परहेज करना चाहिए।गर्भावस्था में एक बहुत ही सन्तुलित और हेल्थी डाइट की आवश्यकता होती है क्योंकि माँ और शिशु दोनों को ही पोषण की आवश्यकता होती है , माँ के भी शरीर का विकास होता है , प्रसव के लिए शरीर का विकास होता है और साथ ही गर्भस्थ शिशु का भी संपूर्ण विकास चल रहा होता है इसीलिए जो माँ आहार के माध्यम से पोषण लेती है उससे ही स्वयं का और शिशु का पोषण संभव होता है।इस कारण सन्तुलित आहार की बहुत जरूरत होती है।इस दौरान जीवन शैली भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि समय से यदि आप सो रहे हो, समय से उठा रहे हो , समय से खाना खा रहे हो, समय से व्यायाम योग कर हो तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है , शरीर की क्रियाएँ ठीक से चलती रहती है किन्तु यदि हम आलस्य करते है तो हमारे शरीर का मैकेनिज्म गड़बड़ा जाता है और अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।प्रत्येक महिलाओं को गर्भावस्था में डॉक्टर से परामर्श लेकर यदि को मेडिकली समस्या नहीं है तो प्रीनेटल योग अभ्यास करना चाहिए जिससे आपका और गर्भस्थ शिशु का ठीक से विकास हो सके।इस लेख में प्रीनेटल योग का विस्तार पूर्वक आपने अध्ययन किया जिसमें बताया गया था कि आसन , प्राणायाम, मुद्रा और ध्यान का माँ और शिशु में शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक रूप से विकास के लिए कितना आवश्यक है।जिसका अभ्यास करके माँ और शिशु दोनों स्वस्थ रहेंगे और माँ को सामान्य प्रसव में सहायता मिलेगी।,शिशु का भी पोषण ठीक से होगा।इस लेख में हमनें उल्लेख शिक्षित होने वाले उचित श्वास तकनीकें और प्राणायाम मां और शिशु के लिए सुधारक हो सकते है। गर्भवती महिलाओं को अच्छा आहार और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में शिक्षा मिलती है, जो उनके और शिशु के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
नोट-प्रीनेटल योग का अभ्यास किसी सुयोग्य विशेषज्ञ की देख रेख में ही प्रारम्भ करें, समय समय पर डॉक्टर से परामर्श लेते रहे, समय समय में चेकअप कराते रहें, डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के बिना कोई भी दबाई न लें।